जब भीड़ ने मिलकर शत्रुघ्न को पीटा, पार्क में यह एक गलती पड़ी थी भारी.


शत्रुघ्न सिन्हा 72 साल के हो गए हैं। 9 दिसंबर 1945 को पटना. बिहार में जन्मे शत्रुघ्न की लाइफ के वैसे तो कई किस्से मशहूर हैं। लेकिन आज हम आपको उनका वह किस्सा बता रहे हैं, जिसमें लोगों ने उनकी जमकर पिटाई कर दी थी। आखिर क्या है यह किस्सा डालते हैं एक नजर…

– बात 1970-71 की है। अंधेरी (मुंबई) स्थित लल्लूभाई पार्क के एक गेस्ट हाउस में साउंड रिकॉर्डिस्ट सुरेश कथूरिया, फिल्मकार शक्ति सामंत के चीफ असिस्टेंट प्रवीण रॉय, निर्माता सतीश खन्ना और प्रचारक आर. आर. पाठक सहित फिल्मी दुनिया के कई होनहारों का जमावड़ा हुआ करता था। इनमें स्ट्रगलर से लेकर कामयाबी की ओर बढ़ रहीं हस्तियां तक शामिल थीं।

– कुछ समय बाद इस टीम में शत्रुघ्न सिन्हा भी जुड़ गए, जो पुणे के फिल्म संस्थान से आकर बॉलीवुड में स्ट्रगल कर रहे थे। शत्रु और पाठक की मुलाकात प्रेमेंद्र (फिल्म ‘होली आई रे’ फेम) ने कराई थी। खैर, गेस्ट हाउस में एक साथ रहते हुए शत्रु और पाठक के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी। इस पूरी टीम में से तब पाठक की ही इनकम (करीब 6 हजार रुपए मासिक) ठीक-ठाक थी।

– सुना है कि शत्रु के संघर्ष में कोई रुकावट न आए, यह सोचकर पाठक हर सुबह अपने तकिए के नीचे 15 रुपए रख देते थे। इन दोनों में एक बात यह भी तय हो चुकी थी कि शाम को पार्क में इकट्‌ठे होंगे। फिर रात का खाना साथ में ही खाएंगे।

– इसी वादे के चलते पाठक उस शाम जब पार्क में पहुंचे, तब वहां भारी भीड़ देखकर थोड़ा ठिठक गए। यह देखकर उनकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा कि शत्रु को कुछ लोग पीट रहे हैं। अचानक एक दुकानदार उन्हें बचाने के लिए बीच में जा घुसा।

स्ट्रगल के दौरान शत्रु इतने दुबले थे कि कोई टीबी पेशेंट लगते थे, जिस पर पीतल के बड़े बक्कल वाला मोटा-सा बेल्ट।

– बड़बोले तो वे पहले से रहे हैं। शत्रु की पर्सनैलिटी भी तब बहुत अलग थी। होंठ के बगल वाला ऊपरी हिस्सा कटा ही था, जबकि बड़ी-बड़ी मूंछ और दाढ़ी में शत्रु उन दिनों वाकई खतरनाक लगते थे। वे चलते भी इस तरह थे, मानो जेल से अभी-अभी छूटकर आए हों।

– ऐसे में शत्रु ने ज्यों ही शेखी बघारी- ‘मैं ही रमन राघव हूं’, स्थानीय लोगों ने उन्हें घेर लिया। चूंकि शत्रु को लोग पहचानते भी नहीं थे, लिहाजा उनके हाव-भाव और डायलॉग्स से सब मान बैठे कि जनाब सही कह रहे हैं। बस, शत्रु को उन सबने धुनना शुरू कर दिया।

– लेकिन भला हो उस दुकान वाले का, जो पार्क के बाहर बीड़ी-सिगरेट बेचा करता था। शत्रु को वह पहचानता था। असल में शत्रु के रूम पार्टनर वहां से उधार खरीददारी करते थे, साथ ही वह शत्रु के बड़बोलेपन से वाकिफ भी था। आखिर वह हट्‌टा-कट्‌टा दुकानदार दिलेरी का प्रदर्शन करते हुए बीच में आ कूदा- ‘अरे, यह एक्टर है… स्ट्रगल कर रहा है।’

– शत्रु भैया की किस्मत अच्छी थी कि लोगों ने दुकानदार की बात मानकर उन्हें छोड़ दिया।
कौन था रमन राघव, पढ़ें आगे की स्लाइड्स…

– रमन राघव एक हत्यारा था, जिसकी दहशत उन दिनों खूब रहती थी। राघव के बारे में आम धारणा यह थी कि रात को फुटपाथ पर सोए गरीब और भिखारी लोगों को वह पहले मारता है, फिर उनका खून जरूर पीता है।

– इसके अलावा इस स्टोनमैन की खासियत यह भी थी कि वह अपराध करने के लिए हर रात एक नया इलाका चुनता था। यही नहीं, वह इलाके की घोषणा भी पहले से कर देता था। अब संयोग कह लें या कि शत्रु की बदकिस्मती, राघव का उस रात टार्गेट अंधेरी था। जिसकी वजह से वहां के लोग सुबह से ही बेहद डरे हुए थे। ऐसे में जब शत्रु ने पार्क में पहुंचकर खुद को रमन राघव बताया तो सब उन पर टूट पड़े।

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