सितंबर 1987 को राजस्थान के सीकर जिले के दिवराला गाँव में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस दिन 18 वर्षीय रूप कंवर नाम की एक विवाहिता अपने मृत पति के साथ सती हो गई।
यह घटना भारत के इतिहास में दर्ज होने वाली आखिरी सती कांड के रूप में जानी जाती है। इस सती कांड ने न केवल देशभर में आक्रोश फैलाया बल्कि सती प्रथा पर गंभीर बहस और कानूनी कार्रवाइयों का भी रास्ता खोला।
सती कांड
रूप कंवर जयपुर की रहने वाली थी और उसकी शादी दिवराला के माल सिंह शेखावत से मात्र 18 वर्ष की उम्र में हुई थी। शादी के कुछ ही महीनों बाद, माल सिंह की अचानक तबियत खराब हो गई और उन्हें सीकर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालांकि उनकी हालत में थोड़े समय के लिए सुधार हुआ, लेकिन जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद रूप कंवर के सती होने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। ग्रामीणों के बीच यह अफवाह उड़ी कि वह अपनी इच्छा से अपने पति के साथ सती होना चाहती थी।
सती होने की प्रक्रिया और उसके बाद की स्थिति
जब माल सिंह का शव दिवराला पहुंचा, तो लोगों ने दावा किया कि रूप कंवर देवी का अवतार है और वह सती होना चाहती है। उसे शादी के जोड़े में सजाकर पति की चिता पर बैठा दिया गया। जब चिता जलाई गई, तो वह चीखते-चिल्लाते हुए चिता से नीचे गिर गई। इसके बावजूद, ग्रामीणों ने उसे जबरन फिर से चिता पर बैठा दिया और तब तक घी डाला गया, जब तक वह पूरी तरह जल नहीं गई। इस क्रूर घटना के बाद कुछ लोगों ने रूप कंवर को देवी के रूप में मानने लगे और उसका मंदिर भी बनवाया।
सामाजिक और कानूनी विवाद
रूप कंवर के सती होने की घटना के बाद पूरे देश में हंगामा मच गया। सती प्रथा के खिलाफ कई संगठनों, वकीलों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई। राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और हरदेव सिंह जोशी की राज्य सरकार की जमकर आलोचना हुई। मामले को बढ़ते देख, 39 लोगों के खिलाफ जयपुर हाई कोर्ट में मामला दर्ज हुआ।
हालांकि, 31 जनवरी 2004 को अदालत ने 25 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, और 10 अक्टूबर 2024 को सती निवारण विशेष अदालत ने 8 और आरोपियों को बरी कर दिया। इनमें श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह का नाम शामिल था। पुलिस और गवाहों के आरोपियों की पहचान से इनकार करने के कारण उन्हें बरी कर दिया गया।
जबरन सती कराए जाने के आरोप
रूप कंवर के सती होने को लेकर दो तरह की धारणाएं सामने आईं। कुछ लोगों का दावा था कि रूप कंवर ने अपनी मर्जी से सती होने का निर्णय लिया था। वहीं, जांच के दौरान यह भी सामने आया कि उसे जबरन सती कराया गया था। रूप कंवर की चीखों और चिता से गिरने की घटना ने इस दावे को बल दिया कि यह सब उसकी मर्जी के खिलाफ किया गया।
चुनरी महोत्सव और विवाद
रूप कंवर के सती होने के 12 दिन बाद, 16 सितंबर 1987 को, राजपूत समाज ने चुनरी महोत्सव मनाने का ऐलान किया। इस महोत्सव का उद्देश्य रूप कंवर को देवी के रूप में मान्यता देना था, लेकिन इसका देशभर में कड़ा विरोध हुआ। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने राजस्थान हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस वर्मा को पत्र लिखकर इस महोत्सव पर रोक लगाने की मांग की। हाई कोर्ट ने इसे सती प्रथा का महिमामंडन मानते हुए इस पर रोक लगाने के आदेश दिए।
महोत्सव के बाद उपजा सामाजिक आक्रोश
हालांकि कोर्ट के आदेशों के बावजूद, चुनरी महोत्सव में हजारों लोग शामिल हुए। दिवराला गाँव, जिसकी जनसंख्या लगभग 10 हजार थी, में उस दिन एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए। यहाँ तक कि कई राजनीतिक दलों के नेता भी इस आयोजन में शामिल हुए। रूप कंवर की तस्वीर ट्रक पर सजाई गई और लोग उसके नाम के जयकारे लगाने लगे।
सती प्रथा पर प्रतिबंध और कानूनी सुधार
रूप कंवर के सती होने के बाद, 1987 में भारत सरकार ने “सती निवारण अधिनियम” लागू किया, जो सती प्रथा को कानूनी रूप से प्रतिबंधित करता है। इस कानून के तहत सती प्रथा को बढ़ावा देने, उसका महिमामंडन करने, या किसी महिला को जबरन सती करने की कोशिश करने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान किया गया।
दिवराला सती कांड ने एक बार फिर सती प्रथा के अमानवीय और अत्याचारपूर्ण पहलू को उजागर किया। रूप कंवर की त्रासदी ने न केवल देश के सामाजिक ताने-बाने को झकझोर दिया, बल्कि सती प्रथा के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन का सूत्रपात भी किया। इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि परंपराओं के नाम पर किए जाने वाले ऐसे कार्यों का न केवल विरोध जरूरी है, बल्कि उन्हें पूरी तरह से समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की भी आवश्यकता है।