रतन टाटा के जाते ही एक झटके में उजड़ी 38 हजार लोगों की जिंदगी, दिवाली से पहले रातों-रात गई नौकरी..

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Ratan Tata : दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का 9 अक्टूबर देर रात निधन हो गया था. पद्म विभूषण से प्रतिष्ठित रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रात साढ़े 11 बजे अंतिम सांस ली. रतन टाटा के निधन पर पूरे देश में दुख की लहर है. उनके निधन से उनके सारे कर्मचारी भी काफी दुखी हैं.

कर्मचारियों के हित में सदैव सोचने वाले रतन टाटा (Ratan Tata) अपने कर्मचारियों को एक परिवार की तरह ही मानते थे. वह उनके सहयोग के लिए हमेशा आगे रहते थे. ऐसा ही किस्सा आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिससे आपको भी उन पर फक्र महसूस होगा.

Ratan Tata थे दरियादिली शख्सियत

Ratan Tata

दरअसल में 1991 में रतन टाटा (Ratan Tata) को टाटा संस की जिम्मेदारी मिली थी. उस वक्त ऐसा आरोप लगाया गया था कि जेआरडी टाटा ने अपने परिवार के लोगों पर ही भरोसा दिखाकर गलती कि हैं. जबकि उनके पास और भी काबिल लोग थे. लेकिन रतन टाटा ने लोगों कि इस बात को गलत साबित कर दिया था. रतन टाटा (Ratan Tata) भविष्य में एक सबसे सफल प्रचारक साबित हुए और उन्होंने टाटा ग्रुप को नई पहचान दी. रतन टाटा ने एक साक्षात्कार में अपने जीवन की कई बड़ी कहानियों का जिक्र किया था.

अपने कर्मचारियों को मानते थे अपना परिवार

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इसी साक्षात्कार में उन्होंने खुद के चैलेंजिंग रोल वाले दिनों को याद किया था और इसके बारे में बात कि थी. इस इंटरव्यू में उन्होंने एक बड़ी घटना की जानकारी दी थी. जिसमें उन्होंने बताया था कि जब उन्होंने इसकी बागडोर सम्भाली थी तब टाटा स्टील ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी नहीं रही. कम्पटीशन बढ़ने और रेवेन्यू घटने की वजह से कंपनी को कई बड़े फैसले लेने पड़े थे. इसी कारण टाटा स्टील में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों को हटाने का विचार किया गया था. उस वक्त टाटा स्टील में 78 हजार कर्मचारी थे.

टाटा से निकाले 38 हजार कर्मचारियों को दी थी सैलरी

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कंपनी को बचाने के लिए इस वर्कशॉप में कर्मचारियों कि संख्या को 40 हजार कर दिया गया. यानी एक बार में 38 हजार लोगों की नौकरी खत्म होने कि कगार पर थी. यह निर्णय तब लिया गया था जब टाटा ग्रुप का विश्वास जनता पर कायम था. टाटा की छवि एक ऐसे बिजनेस ग्रुप की है जिसमें नौकरी के लिए लोग सरकारी नौकरी तक छोड़ देते थे. ऐसे में टाटा ग्रुप से कर्मचारियों ओ निकाला बेहद कठिन था. लेकिन रतन टाटा (Ratan Tata) ने अपने सूझबूझ से इसे बेहद आसन तरीके से निपटाया था.

कर्मचारियों को पूरे कार्यकाल की सैलरी दी

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रतन टाटा (Ratan Tata) ने फैसला लेते हुए एलान किया कि नौकरी से निकाले जा रहे सभी कर्मचारियों को उनकी बची हुए नौकरी का सारा वेतन मिलेगा. जिसके बाद कर्मचारियों में ख़ुशी कि लहर थी. फिर टाटा ग्रुप में नौकरी से निकाले गए 38 हजार कर्मचारियों को उनके वेतन के हिसाब से बकाया नौकरी की अवधि के बराबर पैसा दिया गया. इससे रतन टाटा ने अपनी समझ से लोगों को नौकरी से निकाले जाने के बाद भी बचा लिया था. इसके साथ ही कर्मचारियों के मन में रतन टाटा (Ratan Tata) के प्रति और सम्मान बढ़ गया था.

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