शिवजी एक ऐसे भगवान हैं जो भक्तों के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय है। यही वजह है कि भारत में हर गली-मोहल्लों में आपको शिव मंदिर देखने को मिल जाते हैं। कहते हैं कि जो शख्स शिवजी को प्रसन्न कर देता है वह जीवन में बहुत कामयाब बन जाता है। उसे फिर न पैसों की कमी होती है और न ही दुखों का टेंशन होता है। उसकी लाइफ सेट हो जाती है।
शिवजी को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूजा-पाठ करना, जल चढ़ाना, भोग लगाना, फूल चढ़ाना इत्यादि चीजें करते हैं। इसी के साथ यदि आप रोज महामृत्युंजय मंत्र ( Mahamrityunjay mantra) का जाप करें तो आपको बहुत लाभ होगा। शिवपुराण की माने तो रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का रोज जाप करने से जीवन के कई कष्ट दूर हो जाते हैं। तो चलिए जानते हैं इसके और क्या-क्या लाभ होते हैं।
आर्थिक तंगी से छुटकारा
कई बार ऐसा होता है कि हम बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी पैसों की आवक नहीं होती है। बल्कि जो पैसा आता है वह भी व्यर्थ खर्चों में चला जाता है। ऐसा जीवन में धन से जुड़े दोष के चलते होता है। इस दोष को वास्तु शास्त्र या ज्योतिष से जुड़े उपायों को कर दूर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि आप रोज शिव पूजा के दौरान 11 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करे तो आपको धन से जुड़ी समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। फिर आप आर्थिक तंगी को नहीं झेलोगे।
बीमारियों से आजादी
कुछ लोग अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं। उन्हें आए दिन कोई न कोई शारीरिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है। वहीं कुछ अपनी पुरानी बीमारी को लेकर दुखी रहते हैं। उन्हें इससे छुटकारा नहीं मिलता है। इन समस्याओं के हल के लिए आप रोज महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिवजी को खुश कर सकते हैं। इससे वे आपकी बीमारी को दूर कर देंगे। आपको सेहतमंद रखेंगे। लंबी उम्र प्रदान करेंगे।
संतान सुख
कुछ बदनसीब लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें संतान का सुख नहीं मिल पाता है। वे इसके लिए कई सालों तक इंतजार करते हैं। लेकिन उनकी सूनी कोख नहीं भरती है। ऐसे में आप महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर संतान का सुख भोग सकते हैं।
शिवजी के आशीर्वाद से महिलाओं को माँ बनने का सुख प्राप्त होता है। एक और अच्छी बात ये है कि इस मंत्र के जाप से आप बुरी संतान को भी अच्छी संतान बना सकते हो। मतलब यदि आपकी संतान है, लेकिन वह आप से अच्छे से पेश नहीं आती, तो भी ये मंत्र फायदा करता है।
महामृत्युंजय मंत्र: ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
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