वाराणसी (काशी) के अदभुत श्री गौरी केदारेश्वर शिवलिंग जो कि दो भागों में बटे है और जिनके दर्शन मात्र से पंच देवो “शिव, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी एवं अन्नपूर्णा” के दर्शन का फल मिलता है
श्री केदारेश्वर जी का मंदिर वाराणसी के सोनारपुरा क्षेत्र में गंगा नदी के तट पर केदारघाट पर स्थित है, यह शिवालय पूरे साल भर दर्शनार्थियों की भीड़ से भरी रहती है। मंदिर सुबह के 4:00 बजे भक्तों के दर्शन के लिए खुल जाता है। मंदिर में जाने के बाद मन में एक अद्भुत शान्ति मिलती है | काशी में बसे महादेव के इस स्वरूप को गौरी केदारेश्वर महादेव के नाम से जाता है। काशी के केदारेश्वर महादेव 15 कला में विराजमान है। भगवान भोलेनाथ का यह स्वयंभू लिंग हरिहरात्मकशिवशक्त्यात्मक है, जो श्री गौरीकेदारेश्वर (केदारजी) नाम से प्रसिद्ध है। इस शिव लिंग के दर्शन पूजन मात्र से पांच देवों (शिव,पार्वती, विष्णु,लक्ष्मी एवं अन्नपूर्णा) के दर्शन का फल स्वतः प्राप्त होता है । सोमवार के साथ ही हर दिन यहां सुबह के शाम तक भक्तों की भारी भीड़ होती है।
इस मंदिर की मान्यता है कि, भगवान शिव स्वयं यहां भोग ग्रहण करने आते हैं। भोले के इस अनोखे स्वरूप के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु काशी आते हैं। काशी में बसे महादेव के इस स्वरूप को श्री गौरी केदारेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
श्री गौरी केदारेश्वर शिवलिंग की एक नहीं बल्कि कई महिमा है। यह शिवलिंग आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह ना होकर दो भागों में बंटा हुआ है। एक भाग में भगवान शिव माता पार्वती के साथ वास करते हैं वही दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धनगिनी माता लक्ष्मी के साथ वास करते हैं । यही नहीं इस मंदिर की पूजन विधि भी बाकी मंदिरों की तुलना में अलग है। यहां बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही ब्राह्मण चार पहर की आरती करते हैं वही इस स्वंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी जरूर लगाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां भोग ग्रहण करने आते हैं।
श्री गौरी केदारेश्वर शिवलिंग के बिषय में पुराणों में वर्णित है कि सतयुग काल में काशी के राजा मान्धाता रोजाना केदारनाथ जाकर दर्शन.पूजन करते थे। राजा की केदारनाथ में असीम विश्वास एवं श्रद्धा थी। राजा मान्धाता ने इसी स्थान पर जहाँ पर श्री गौरी केदारेश्वर शिवलिंग स्थापित है वही पर कुटिया बनाकर तपस्या करने लगे |
राजा मान्धाता के समय संपूर्ण काशी झेत् भगवान विष्णु का झेत्र हुवा करता था | राजा मान्धाता भगवान शिव के परम भक्त थे और वो रोज तपस्या करने के बाद इसी स्थान जहाँ पर आज श्री गौरी केदारेश्वर शिवलिंग है पर खिचड़ी बना कर पत्तल पर निकाल देते और फिर उस खिचड़ी के दो भाग कर दिया करते थे। शिवपुराण में वर्णन है कि राजा मान्धाता जो कि ऋषि जीवन जीते थे अपने हाथों से बनाई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर मन की गति से रोजाना पहले गौरी केदारेश्वर को खिलाने हिमालय जाते और फिर वापस आने पर आधी खिचड़ी के दो भाग कर एक हिस्सा अतिथि को देते और एक स्वयं खाते थे।
गौरी केदारेश्वर के दर्शन करते.करते राजा मान्धाता वृद्धावस्था में पहुंच गये। उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। जिसकी वजह से राजा केदारनाथ का दर्शन करने हिमालय नहीं जा सके और एक दिन अत्यधिक बीमार होने की वजह से बहुत प्रयास के बाद भी जब वो खिचड़ी बनाने के बाद हिमालय जाने में असमर्थ महसूस करने लगे तो दुखी होकर कहा कि आज मैं अपने प्रभु और माता को खिचड़ी नही खिला पाया मेरी सेवा ब्यर्थ हो गयी और बेहोश हो गए। तब हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर प्रकट हुए और खुद ही अपने हिस्से की खिचड़ी लेकर भोग लगाया।आधे हिस्से में से वहां मौजद मान्धाता ऋषि के अतिथियों को खुद शिव और पार्वती ने अपने हाथों से खिलाया। जिसके बाद ऋषि मान्धाता को जगा कर उन्हें खिचड़ी खिलाई और आशिर्वाद दिया कि आज के बाद मेरा एक स्वरूप काशी में वास करेगा।
उपनिषद की एक अन्य कथा के अनुसार सतयुग के समय हिमालय पर्वत पर सर्वभौम महाराजा मान्धाता जिनकी यश कीर्ति पुराणों में महायोगी,महादानी और अपने पिता के कुक्षिभेदन से जन्म प्राप्ति के रूप में है। शिव लिंगम् के दर्शन के लिए १०० युगों तक निरंतर तपस्या में रहे। तक जाकर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें काशी जाकर तपस्या करने के लिए आकाशवाणी से प्रेरणा दिया। इस प्रकार महाराजा मान्धाता काशी आकर तपस्या करने लगे। धनुर्मास (पौस महीना) के अन्त मकर मास के प्रारंभ में संक्रांति के विशेष पर्व के दिन उषाकाल में उन्होंने खिचड़ी बनाई और उसको दो भागों में ( एक भाग अतिथि के लिए और दूसरा स्वयं के लिए) विभक्त करके रख दिया। तब अतिथि के रुप में साक्षात् शिव जी स्वयं प्रकट हो गये, तब राजा आश्चर्यचकित रह गए, और खिचड़ी पत्थर हो गया। अतिथि रूप त्याग कर शिव जी प्रकट हुए और राजा मान्धाता से बोले –हे भक्त सुनो, यह पाषाणीय खिचड़ी ही शिव लिंग बन गया है। चारों युगों में इसके चार रुप होंगे। सत्ययुग में नवरत्नमय, त्रेता में स्वर्णमय, द्वापर में रजतमय (चाँदी का) और कलियुग में शिलामय होकर यह शुभ मनोकामनाओं को प्रदान करेगा। दो भागों के हो जाने से यह हरिहरात्मक और शिवशक्त्यात्मक हो गया है। अन्न से निर्मित होने के कारण इसमें अन्नपूर्णा निवास करेगी। इस लिंग के दर्शन पूजन से भक्त के गृह में अन्नपूर्णा सदा निवास करेगीं ।इतना कह कर भगवान इसी लिंग में अन्तध्यार्न हो गये।
काशी में स्थित श्री गौरी केदारेश्वर के मंदिर का जीर्णोद्धार महान शिव भक्तिनी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। अहिल्याबाई होल्कर ने श्री गौरी केदारेश्वर के मंदिर की व्यवस्था को सुचारु करने के लिए और श्री गौरी केदारेश्वर के पूजा पाठ के लिए साल के 365 दिन के हिसाब से 365 कमरे का धर्मशाला बनवाया और श्री गौरी केदारेश्वर के भोग प्रसाद के रूप में चावल के लिए श्री गौरी केदारेश्वर मंदिर के नाम एक बिशाल भूखंड जो की चावल की खेती के योग्य थी का रजिस्ट्री करवाया था.