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अंधविश्वास के चक्कर में गई गर्भवती महिला की जान, ताले से बंधी जंजीरों में लाए हॉस्पिटल….

अंधविश्वास के चक्कर में गई गर्भवती महिला की जान, ताले से बंधी जंजीरों में लाए हॉस्पिटल….
अंधविश्वास के चक्कर में गई गर्भवती महिला की जान, ताले से बंधी जंजीरों में लाए हॉस्पिटल….
A pregnant woman lost her life due to superstition, brought to hospital in chains tied with locks

बांसवाड़ा। दुनिया भले ही चांद पर कदम रख दिया हो। इसके बाद भी देश के कई हिस्से अभी भी अंधविश्वास (Rajasthan Superstition) की चपेट में हैं। आज भी लोग डॉक्टर की बजाय बीमारियों के इलाज के लिए तांत्रिकों के पास जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास की सीमा इतनी पार हो गई कई बार लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ जाती है। कुछ ऐसा ही मामला राजस्थान के बांसवाड़ा से सामने आया है। यहां अंधविश्वास ने एक गर्भवती महिला की जान ले ली। यहां गर्भवती महिला (22) ने जिला हॉस्पिटल में भर्ती कराने के करीब 4 घंटे बाद दम तोड़ दिया। परिजनों ने जिस समय महिला को भर्ती करवाया था। उस दौरान उसके गले और कमर पर जंजीर बंधी थी और ताला लगा हुआ था। परिजन ने बताया कि वह मानसिक तौर पर बीमार थी। इतने दिन परिजन तांत्रिक से झाड़-फूंक कराते रहे। जब महिला की हालत ज्यादा बिगड़ गई तो परिजन उसे लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। लेकिन, महिला को बचाया नहीं जा सका। महिला का पीहर कुशलगढ़ थाना इलाके में खेड़िया गांव हैं।

गर्भती होने के बाद से बीमार थी महिला

कुशलगढ़ थाना के एएसआई सोहनलाल ने बताया- थाना क्षेत्र के खेड़िया गांव की निवासी शीतल (22) छह महीने की गर्भवती थी। वह पांच-छह महीने से ही बीमार चल रही थी। पिता श्यामलाल गरासिया बुधवार को सुबह 10 बजे उसे एमजी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। महिला को भर्ती कर लिया गया। दोपहर 2.30 बजे उसकी मौत हो गई। शीतल का ससुराल पाड़ला गांव में है। महिला के कमर और गर्दन पर सांकल बंधी होने के सवाल पर एएसआई सोहनलाल ने बताया- परिजन का कहना है कि शीतल बीमार चल रही थी। उन्होंने तांत्रिक से इलाज कराया तो उसने सांकल बांधने को कहा था। हालांकि पीहर और ससुराल वालों ने किसी के खिलाफ कोई मामला नहीं दिया है। किसी पर ऐतराज भी नहीं है।

कुछ दिन पहले ही पीहर छोड़ गया था पति

मृतका के पिता श्यामलाल ने बताया- उनकी बेटी शीतल मजदूरी के लिए गुजरात गई थी। 10 महीने पहले अहमदाबाद में उसकी जान-पहचान पाड़ला गांव (बांसवाड़ा) निवासी शैलेश मइडा के साथ हुई। शैलेश भी मजदूरी करता था। शीतल ने शैलेश से नातरा विवाह कर लिया। वे दोनों साथ मजदूरी करने लगे। उसके पति ने बताया कि गर्भवती होने के बाद शीतल अजीब हरकतें करने लगी थी। जिसके बाद पति ने 13 दिन पहले शीतल को पीहर खेड़िया छोड़कर वापिस गुजरात लौट गया।

पिता बोले, बस्ती वालों ने कहा था भोपा के पास ले जाओ

मृतका के पिता श्यामलाल ने बताया-उनके घर में पत्नी, तीने बेटे और तीन बेटियां हैं। छह बच्चों में शीतल तीसरे नंबर की थी। बेटी को खेड़िया के पास ताम्बेसरा पीएचसी में दिखाया। वहां डॉक्टर ने कहा कि कमजोरी है। दवाएं दी लेकिन तबीयत में सुधार नहीं आया। उसकी तबीयत बिगड़ती तो काबू में नहीं रहती थी। तब बस्ती के लोगों के कहने पर तांत्रिक के पास लेकर गए। तांत्रिक ने बताया कि शीतल पर भूत-प्रेत का साया है। उसके इलाज के लिए ही कमर और गर्दन को सांकल से बांधने और ताला लगाने की सलाह दी थी। यह भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बुधवार को सुबह बेटी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। वह बेहोश हो गई। इसके बाद उसे पहले ताम्बेसरा पीएचसी लेकर गए, फिर सज्जनगढ़ सीएचली और उसके बाद बांसवाड़ा जिला हॉस्पिटल लेकर पहुंचे।

डॉक्टर बोले- कम हो गया था हिमोग्लोबिन

एमजी अस्पताल में लाने के बाद डॉक्टरों ने जांचें करवाईं और इलाज शुरू किया। डॉक्टरों के अनुसार शीतल बेहोश थी, उसे जंजीरों से बंधा देख हैरानी हुई। वह एनीमिया से ग्रसित थी, हिमोग्लोबिन सिर्फ 7 ग्राम था। उसे परिजन ने 10 दिन पहले भी दिखाया था। इसलिए शीतल के केस की पहले से जानकारी थी। तब फिजीशियन ने जांच कर भर्ती किया था, लेकिन परिजन बिना बताए अचानक यहां से ले गए थे। इसके बाद बुधवार को लाए। शरीर में ब्लड की कमी होने के कारण ब्लड बैंक से इंतजाम भी किया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। इसकी सूचना विभागाध्यक्ष डॉ. पीसी यादव को दी। महिला की मौत की सूचना डॉक्टरों ने पुलिस को दी। शव को मोर्चरी शिफ्ट कराने और आगे की प्रक्रिया के लिए पुलिस हॉस्पिटल पहुंची तो देखा कि शव जंजीरों में जकड़ा है। मौत के बाद पिता ने मर्ग दर्ज कराई। इसमें किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया। बांसवाड़ा तहसीलदार दीपक सांखला के निर्देश पर मर्ग दर्ज कर पोस्टमॉर्टम करवाया गया। परिजनों को बुधवार शाम शव सौंप दिया गया।

किसी तांत्रिक, झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें

इस मामले में के बाद डॉक्टरों का कहना है कि आज भी राजस्थान के ज्यादातर जिलों में कुछ जनजातीय लोग अब भी बीमार होने पर तांत्रिक और झोलाछाप के पास जाते हैं। इस कारण हालत अधिक बिगड़ जाती है। कई बार वे इस कंडीशन में मरीज को लाते हैं कि बहुत देर हो चुकी होती है, मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। लोगों से अपील है कि वे झाड़फूंक के चक्कर में न पड़कर डॉक्टर से इलाज लें।

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