आपने समाज में ऐसे कई मामले देखे होंगे, जहां बेटा अपनी पत्नी के कहने पर अपने माता-पिता से अलग हो जाता है। ऐसे में अक्सर बेटे के मुंह से सुने को मिलता है कि वह मजबूर था, क्योंकि उसकी पत्नी उस पर जोर दे रही थी, लेकिन क्या आपको पता है कि अगर बहु अपने पति को सास-ससुर से अलग रहने को कहे, तो पति के पास भी एक अधिकार है, जिसका वह फैयदा उठा सकता है।
हाल ही मे सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे एक मामले पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। उस मामले से निपटते हुए, जिसमें पति ने अपनी पत्नी से इस आधार पर तलाक मांगा था कि वह उसे अपने माता-पिता को छोड़ने के लिए मजबूर कर रही थी, क्योंकि वह उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा था, अदालत ने कहा कि एक हिंदू समाज में, यह बेटे का एक पवित्र दायित्व है। बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता का ख्याल रखे।
यदि कोई पत्नी समाज की सामान्य प्रथा और सामान्य प्रथा से विचलित होने का प्रयास करती है, तो उसके पास कुछ न्यायोचित कारण होना चाहिए और इसलिए, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह मानने में गलती की कि मात्र मौद्रिक विचार पति को उसके माता-पिता से अलग करने का एक न्यायोचित कारण था।
ए.आर. दवे और एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि कोई भी बेटा अपने बूढ़े माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से अलग नहीं होना चाहेगा, जो उसकी आय पर भी निर्भर हैं। अदालत ने कहा कि पत्नी के लगातार प्रयास को विवश करने के लिए पति का परिवार से अलग होना पति के लिए यातनापूर्ण होगा और इसे ‘क्रूरता’ का कृत्य माना जाएगा।
पति ने यह भी तर्क दिया था कि पत्नी ने उसके चरित्र और ‘कमला’ नाम की नौकरानी के साथ उसके विवाहेतर संबंधों को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। हालांकि, यह पाया गया कि कमला नाम की कोई नौकरानी उनके घर में काम नहीं करती थी। इसलिए, कोर्ट ने कहा कि निराधार और लापरवाह आरोपों को छोड़कर, ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह बताता हो कि पत्नी द्वारा नामित नौकरानी के साथ पति का अफेयर जैसा कुछ था। इस पर कोर्ट ने कहा कि विवाहेतर संबंध रखने के चरित्र से संबंधित आरोप को झेलना किसी भी व्यक्ति के लिए – चाहे वह पति हो या पत्नी, मानसिक क्रूरता के बराबर है। इसे भी जरूर देखें –