Cakes are injurious to health: पाश्चात्य संस्कृति का प्रतीक ‘केक’ आज घर-घर में कटता है. सनातन और धर्म की बात करने वाले लोग जो ये कहते हैं कि खुशी के मौके पर दीपक (कैंडल) बुझाया नहीं जाता है, वो भी केक में लगी कैंडल्स जलाकर फोटो खिंचा लेते हैं, लेकिन उन्हें फूंक कर बुझाने के बजाय हटाकर, केक कटने के बाद उसे चाव से खाते हैं. घर में बने मंदिर के सामने चौक पूरने के बाद दिया जलाकर मंत्रोच्चार के साथ दूध और गुलगुला खिलाकर आशीर्वाद और शुभकामनाएं देने की परंपरा निभाने वाले घरों में भी जन्मदिन या खुशी के किसी भी मौके पर केक का कटना सामान्य बात हो चुकी है.
जानलेवा हो रहा है केक
बच्चे-बूढे और जवान. शायद ही कोई ऐसा हो जिसे केक ना पसंद हो. जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह केक का कटना खुशियां मनाने का माध्यम बन चुका है. इसे आधुनिक परंपरा कहें या प्रथा में कोई बुराई भी नहीं है. बेकरी में काम करने वाले लाखों लोगों को रोजगार मिलता है. लेकिन यही केक आजकल सेहत बिगाड़ने का जरिया बन चुका है. भारत में एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे केस सामने आ चुके हैं जिनमें या तो केक खाने वाले की जान चली गई या फिर उसकी तबीयत बिगड़ गई.
CAKE SE CANCER: कैंसर वाले केक से सावधान!
कर्नाटक खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता विभाग ने बेकरियों द्वारा तैयार केक में कैंसरकारी तत्वों को लेकर चेतावनी जारी की है. उनकी उस रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु की कई बेकरियों के केक पर किए गए तमाम परीक्षणों में पता चला कि 12 अलग-अलग किस्मों के केक में कैंसर पैदा करने वाले तत्व मौजूद हैं. विशेष रूप से रेड वेलवेट और ब्लैक फॉरेस्ट केक (red velvet black forest cake) में ज्यादा खतरा है.
जितना सुंदर और ज्यादा टेस्टी, उतना ही ‘जहरीला’
केक को आकर्षक बनाने के लिए कृत्रिम रंगों का प्रयोग किया जाता है. केक के सैंपल में अल्लुरा रेड, सनसेट येलो FCF केमिलकल पाए गए. केक के सैंपल में कई तरह के कैंसरकारी रंग पाए गए. रिपोर्ट के मुताबिक ये केमिकल केवल कैंसर के खतरे को ही नहीं बढ़ाते… बल्कि दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं. इस चौंकाने वाले खुलासे ने केक प्रेमियों के बीच चिंता बढ़ा दी है.