बेरूत। History of Hezbollah: आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह द्वारा इस्तेमाल पेजर में मंगलवार को लेबनान और सीरिया में एक साथ विस्फोट हुए। इस घटना में आठ साल की एक बच्ची समेत कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई और करीब 3,000 लोग घायल हो गए। हिजबुल्लाह ने इस हमले के लिए इजरायल को दोषी ठहराया था। हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच कई दशकों से तनातनी है। कहा जाता है कि हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच का संघर्ष मध्य पूर्व की राजनीति और संघर्षों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संघर्ष कई दशकों से चला आ रहा है और इसके पीछे जटिल राजनीतिक, धार्मिक और क्षेत्रीय कारक हैं। आज हम हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच के संघर्ष के इतिहास, प्रमुख घटनाओं और इसके प्रभावों के बारे में जानेंगे।
कैसे हुआ हिजबुल्लाह का उदय हिजबुल्लाह का अर्थ “अल्लाह की पार्टी” है। हिजबुल्लाह बतौर राजनीतिक दल 1982 में लेबनान के शिया समुदाय के बीच उभरा। इसका गठन मुख्य रूप से इजरायल के दक्षिणी लेबनान पर कब्जे के जवाब में हुआ था। इजरायल ने 1982 में लेबनान में प्रवेश किया, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठनों को दबाना था। दरअसल जब 1982 में, इजरायल ने फिलिस्तीनी संगठन पीएलओ (PLO) के खिलाफ लेबनान पर हमला किया और दक्षिणी लेबनान के हिस्सों पर कब्जा किया, तब हिजबुल्लाह का गठन हुआ। इस संगठन का उद्देश्य इजरायल को लेबनान से बाहर करना और शिया मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना था। हिजबुल्लाह ने अपनी विचारधारा को ईरानी क्रांति के शिया इस्लामिक सिद्धांतों पर आधारित किया और ईरान के नेतृत्व वाले शिया इस्लामिक शासन को अपना आदर्श माना। हिजबुल्लाह ने इस समय इजरायली सेनाओं के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया और धीरे-धीरे दक्षिणी लेबनान में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया।
1980 और 1990 का दशक: बढ़ता संघर्ष 1980 के दशक और 1990 के दशक में हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच कई छोटे और बड़े संघर्ष हुए। हिजबुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ आत्मघाती हमले, रॉकेट हमले और अपहरण जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया। 1983 में, हिजबुल्लाह ने बेरूत में अमेरिकी और फ्रांसीसी सेना के ठिकानों पर आत्मघाती बम हमले किए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इन हमलों ने संगठन को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई और इसे आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाने लगा।
इजरायल ने भी हिजबुल्लाह के खिलाफ कई सैन्य कार्रवाइयां कीं, जिनमें हवाई हमले और दक्षिणी लेबनान में उसके ठिकानों पर हमले शामिल थे। 1992 में, हिजबुल्लाह के नेता अब्बास मुसावी की हत्या के बाद, संगठन ने अपने नेतृत्व में हसन नसरल्लाह को चुना, जिसने हिजबुल्लाह को और अधिक संगठित और प्रभावी बनाया।
साल 2000: इजरायल की वापसी 2000 में, इजरायल ने अंतरराष्ट्रीय दबाव और लगातार हिजबुल्लाह के हमलों के चलते दक्षिणी लेबनान से अपनी सेना को वापस बुला लिया। इसे हिजबुल्लाह की एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया और इससे उसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। हालांकि, इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच तनाव जारी रहा, और दोनों पक्षों के बीच कई बार छोटी-मोटी झड़पें होती रहीं।
2006 का युद्ध और तबाह हो गया अपना ही देश हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच सबसे बड़ा संघर्ष 2006 में हुआ, जिसे “2006 लेबनान युद्ध” कहा जाता है। इस युद्ध की शुरुआत तब हुई जब हिजबुल्लाह ने इजरायली सैनिकों का अपहरण कर लिया और इसके जवाब में इजरायल ने बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया। यह युद्ध लगभग एक महीने तक चला, जिसमें हजारों नागरिकों की मौत हुई और लेबनान के बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा। तेबनान भारी तबाही से आज तक नहीं उबर पाया। युद्ध के अंत में, हिजबुल्लाह ने खुद को एक मजबूत प्रतिरोध बल के रूप में पेश किया और उसकी लोकप्रियता लेबनान के शिया समुदाय के बीच और बढ़ी। हालांकि, इजरायल ने भी दावा किया कि उसने हिजबुल्लाह की सैन्य क्षमता को कमजोर किया है।
2006 के बाद का समय 2006 के युद्ध के बाद, हिजबुल्लाह ने अपनी सैन्य क्षमताओं को फिर से संगठित किया और बढ़ाया। उसने अपनी मिसाइल और रॉकेट क्षमताओं में सुधार किया, जो इजरायल के लिए एक निरंतर खतरा बने रहे। इस दौरान हिजबुल्लाह ने सीरिया और ईरान से भी सैन्य और वित्तीय सहायता प्राप्त की, जो उसे और मजबूत बनाने में सहायक साबित हुई।
क्षेत्रीय राजनीति और संघर्ष हिजबुल्लाह और इजरायल का संघर्ष केवल द्विपक्षीय नहीं है, बल्कि इस पर मध्य पूर्व की व्यापक क्षेत्रीय राजनीति का भी प्रभाव है। ईरान, जो हिजबुल्लाह का प्रमुख समर्थक है, इसे इजरायल के खिलाफ अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण टूल मानता है। दूसरी ओर, इजरायल और उसके सहयोगी, जैसे कि अमेरिका, हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं और इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हैं।
हिजबुल्लाह के उदय से लेबनान बर्बाद हो गया हिजबुल्लाह ने केवल सैन्य क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि लेबनान की राजनीति में भी अपनी गहरी पैठ बनाई है। यह अब लेबनान की संसद में एक महत्वपूर्ण दल है और राजनीतिक फैसलों पर भी इसका प्रभाव है। इसकी राजनीतिक और सामाजिक सेवाओं ने इसे लेबनान के शिया मुस्लिम समुदाय के बीच और अधिक समर्थन दिया है। हालांकि हिजबुल्लाह ने लेबनान के कुछ हिस्सों में सकारात्मक भूमिका निभाई है, लेकिन इसके उदय ने देश के लिए कई गंभीर चुनौतियां खड़ी की हैं।
हिजबुल्लाह को कई पश्चिमी देशों और अरब राष्ट्रों द्वारा एक आतंकवादी संगठन माना जाता है, जिसके कारण लेबनान को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है और विदेशी निवेश घटा है। हिजबुल्लाह का मिलिशिया के रूप में अस्तित्व लेबनान की सरकार और सेना की संप्रभुता पर सवाल उठाता है। हिजबुल्लाह की स्वतंत्र सैन्य शक्ति ने लेबनान में सत्ता संतुलन को बाधित किया है और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। यह अक्सर लेबनान के अन्य धार्मिक और राजनीतिक गुटों के साथ तनाव का कारण बनता है।
इसके अलावा, हिजबुल्लाह ने सीरिया के गृहयुद्ध में बशर अल-असद के शासन का समर्थन किया, जो लेबनान के अंदर भी विवादास्पद रहा है। इसके कारण लेबनान में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच तनाव बढ़ा और हिंसा की घटनाएँ हुईं। इसके अलावा, इस हस्तक्षेप ने लेबनान को क्षेत्रीय संघर्षों में और उलझा दिया।
हिज़बुल्लाह की वजह से लेबनान को अंतर्राष्ट्रीय मदद और निवेश में कटौती का सामना करना पड़ा है। इसकी वजह से देश की आर्थिक स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। हिजबुल्लाह की गतिविधियों से जुड़ी सुरक्षा चिंताओं के कारण पर्यटन, जो लेबनान की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
कुल मिलाकर हिजबुल्लाह और इजराइल के बीच का संघर्ष केवल सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक, धार्मिक और क्षेत्रीय संघर्षों का मिश्रण है। इस संघर्ष ने लेबनान और इजराइल के समाजों पर गहरा असर डाला है और मध्य पूर्व की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भविष्य में इस संघर्ष का समाधान आसान नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से इसे हल करने के प्रयास जारी हैं। इसे भी जरूर देखें –