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किस चीज से बनता है साबूदाना, क्या ये कोई अनाज है? कैसे गोल मोती जैसा दिखता है…

किस चीज से बनता है साबूदाना, क्या ये कोई अनाज है? कैसे गोल मोती जैसा दिखता है…
किस चीज से बनता है साबूदाना, क्या ये कोई अनाज है? कैसे गोल मोती जैसा दिखता है…

नवरात्रि के दिनों में व्रत रखने वाले लोग साबूदाने का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. साबूदाने की खिचड़ी से लेकर पकौड़ी, टिक्की जैसी चीजें खाई जाती हैं. पर क्या कभी अपने सोचता है कि आखिर साबूदाना बनता किस चीज से है (Sabudana Kaise Banta), मोती जैसा गोल-गोल दिखने वाली यह चीज क्या कोई अनाज है, यह कहां पैदा होता है और भारत में कैसे आया?

आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे कि साबूदाना किस चीज से बनता है तो ज्यादातर जगह ‘सागो पाम’ के पेड़ का जिक्र मिलेगा, जो ताड़ के पेड़ जैसा दिखता है. दरअसल, सागो पाम कोई एक पेड़ नहीं बल्कि ऐसे पेड़ों के समूह को कहते हैं, जिसके तने से स्टार्च जैसी चीज निकलती है. फिर उसको सुखाकर और साफकर तरह-तरह से खाने में इस्तेमाल करते हैं. सागो के स्टार्च को भी गोल आकार दे देते हैं, जो साबूदाने जैसा ही दिखता है, लेकिन यह गलतफहमी है कि साबूदाना सागो पाम से बनता है.

साबूदाना किस चीज से बनता है?
साबूदाना टैपिओका (Tapioca) नामक एक जड़ वाली फसल से बनाया जाता है, जो शकरकंद जैसी दिखाई देती है. टैपिओका (Tapioca) को दुनिया के अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न नाम से जानते हैं. जैसे यूरोप के कुछ देशों में इसे कासावा (Cassava) के नाम से जानते हैं. तो साउथ अमेरिकी देशों में ‘मेंडिओका’ (Mandioca) कहते हैं, अफ्रीका (Africa) के जिन देशों में फ्रेंच बोली जाती है वहां इसे ‘मैनिऑक’ (Manioc) कहते हैं और स्पेनिश बोले जाने वाले देशों में ‘युका’ (Yuca) कहते हैं. एशिया (Asia) के ज्यादातर देशों में इसे टैपिओका ही कहते हैं.

कैसे गोल-गोल मोती जैसा दिखता है?
टैपिओका (Tapioca) की फसल 9-10 महीने में तैयार होती है. सबसे पहले ऊपरी भाग या तने को काटकर अलग कर देते हैं. फिर जड़ को खोदकर निकाल लेते हैं. इस जड़ को अच्छी तरह साफ करने के बाद पीसते हैं. इससे दूध जैसा दिखने वाला सफेद स्टार्च निकलता है. इस स्टार्च को रिफाइन करने के बाद गर्म करते हैं और फिर मशीन की मदद से दानेदार आकार दिया जाता है. इस तरह मोती जैसा दिखने वाला सफेद साबूदाना बनता है.

भारत में टैपिओका की कौन सी किस्में पाई जाती हैं
भारत में टैपिओका की मुख्य तौर पर 5 किस्में पाई जाती हैं. पहली श्री जया- जो सात महीने में पकने वाली एक अगेती किस्म है. दूसरी- श्री विजया- जो यह 6-7 महीने में पकने वाली एक अगेती किस्म है. तीसरी-श्री हर्ष- यह 10 महीने में पकती है, चौथी- निधि- यह 5.5-6 महीने में पकने वाली एक प्रारंभिक किस्म है और पांचवीं- वेल्लयानी ह्रस्वा- जो यह 5-6 महीने में पकने वाली एक वैरायटी है.

टैपिओका कैसे पहुंचा भारत?
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक टैपिओका की उत्पत्ति साउथ और लैटिन अमेरिकन देशों में हुई. खासकर ग्वाटेमाला, मेक्सिको, पेरू, पराग्वे और होंडुरस जैसे देशों में. यहां कम से कम 5 हजार साल पहले से टैपिओका का इस्तेमाल होता रहा है. 15वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारी इसे अफ्रीकी महाद्वीप में ले आए. फिर 17वीं शताब्दी में एशिया तक पहुंचा. मैकमिलन के मुताबिक 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारी इसे अपने साथ इंडिया ले आए. सबसे पहले यह दक्षिण भारत में पहुंचा. यहां केरल में इसकी खेती शुरू हुई.

केरल, तमिलनाडु जैसे दक्षिण के कई राज्यों में इसे कप्पा के नाम से जानते हैं. थाईलैंड दुनिया का सबसे बड़ा टैपिओका प्रोड्यूसर है.

पूरी दुनिया में दो तरह के टैपिओका (Tapioca) पाए जाते हैं. पहला है स्वीट टैपिओका (Sweet Tapioca) जो आमतौर पर इंसान के खाने लायक होता है. दूसरा होता है कड़वा टैपिओका (Bitter Tapioca) जिसमें काफी मात्रा में हाइड्रो सायनिक एसिड (Hydro Cyanic Acid) होता है. इसको इंसान या जानवर सीधे नहीं खा सकते हैं. बहुत रिफाइन करने के बाद चिप्स से लेकर पैलेट और अल्कोहल में इस्तेमाल किया जाता है.

कैसे अकाल में बचाई जान
1800 के आसपास त्रावणकोर में अकाल पड़ा. खाने-पीने की किल्लत होने लगी. अनाज भंडार खाली हो गए. इससे राजा अयलेयम थिरुनल रामा वर्मा (Ayilyam Thirunal Rama Varma) चिंतित हो गए. उन्होंने अपने सलाहकारों से खाने की वैकल्पिक चीजों का इंतजाम करने को कहा. त्रावणकोर वानस्पति जानकारों ने पता लगाया कि टैपिओका को खाया जा सकता है. इसके बाद लोगों को अलग-अलग तरीके से इसे दिया जाने लगा. फिर धीरे-धीरे ये पॉपुलर होता गया.

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