क्या है महिलाओं का खतना, रिवाज के नाम पर क्यों बच्चियों पर होते हैं अत्याचार? यहां देखें इसकी सभी जानकारी…

आज के वक्त में महिला सशक्तिकरण के नाम पर कई पहल की जाती है। कई सरकारें इस पर नयी योजनाएं बनाती हैं, लेकिन देश में अब भी कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां महिलाओं पर रिवाज के नाम पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार किये जाते हैं। ऐसे ही एक रिवाज का नाम है महिला खतना, जिसे अंग्रेजी भाषा में Female Genital Mutilation कहा जाता है।

क्या है महिलाओं का खतना, रिवाज के नाम पर क्यों बच्चियों पर होते हैं अत्याचार? यहां देखें इसकी सभी जानकारी…

इन दिनों महिलाओं की खतना को लेकर मीडिया में बहुत सारी चर्चा हो रही है, लेकिन इसके बारे बहुत सारे लोगों को अभी भी कोई जानकारी नहीं है। इस वजह से उनके मन में इससे संबंधित बहुत सारे प्रश्न आ रहे होंगे, तो चलिए अब हम आपके उन सवालों का जवाब देने का प्रयास करते हैं।

20 करोड़ महिलाएं हो चुकी हैं इस अत्याचार का शिकार

महिला खतना (एफजीएम) का अर्थ है महिलाओं के जननांग को काटना या हटाना। सुन कर ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कितना दर्दनाक होता होगा। इसे महिला खतना के रूप में जाना जाता है। यह कुप्रथा अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के कुछ देशों में होती है। यूनिसेफ ने 2016 में अनुमान लगाया था कि 30 देशों-इंडोनेशिया, इराक, यमन और मिस्र सहित 27 अफ्रीकी देशों में 200 मिलियन महिलाओं के साथ ये कुप्रथा की जा चुकी है।

काट दिया जाता है महिलाओं का प्राइवेट पार्ट

इस रिवाज में ब्लेड से महिला के प्राइवेट पार्ट को काटा जाता है और ये प्रक्रिया जन्म के बाद के दिनों से लेकर युवावस्था और उसके बाद तक की जाती है। आंकड़ों की मानें, तो अधिकांश लड़कियों पर ये अत्याचार पांच वर्ष की आयु से पहले ही कर दिया जाता है। प्रक्रिया के दौरान महिलाओं के क्लिटोरल हुड (टाइप 1-ए) और क्लिटोरल ग्लान्स (1-बी) को हटाया जाता है और साथ ही आंतरिक और बाहरी लेबिया को हटा कर योनी को बंद किया जाता है। इस प्रक्रिया में, जिसे इन्फिब्यूलेशन के रूप में जाना जाता है, मूत्र और मासिक धर्म द्रव के पारित होने के लिए एक छोटा सा छेद छोड़ दिया जाता है। योनि संभोग के लिए खोली जाती है और बच्चे के जन्म के लिए और खोली जाती है।

महिलाओं की कामुकता को नियंत्रित करने के लिये चलाई जाती है कुप्रथा

यह प्रथा लैंगिक असमानता, महिलाओं की कामुकता को नियंत्रित करने के प्रयासों और शुद्धता और शालीनता के लिये चलायी जाती है। इस प्रथा से लड़कियों को कई शारीरिक समस्याओं जैसे बार-बार होने वाले संक्रमण, पेशाब करने में कठिनाई और मासिक धर्म प्रवाह को पारित करने में कठिनाई, पुराने दर्द, गर्भवती होने में असमर्थता, प्रसव के दौरान जटिलताएं, और घातक रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है।

कुप्रथा की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

1970 के दशक के बाद से इस कुप्रथा की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किए गए हैं, और जिन देशों में यह होता है, उनमें से अधिकांश में इसे गैरकानूनी या प्रतिबंधित कर दिया गया है। 2010 के बाद से, संयुक्त राष्ट्र ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से आह्वान किया है कि वे इस कुप्रथा को बंद करें।

भारत में कुप्रथा

2017 में खबरें सामने आयी थी कि भारत में भी ये कुप्रथा जारी है, जिसके बारे में बेहारा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानकारी दी थी। इस प्रथा को रोकने के लिये पहल भी की गयी। हर साल 6 फरवरी को इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टोलरेंस फॉर फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन मनाया जाता है। इस दिन बैठक कर इस प्रथा की रोकथाम के लिये फैसले लिये जाते हैं।

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