इस दुनिया में कोई भी चीज बेकार नहीं होती है। लेकिन कुछ लोगों की आदत होती है कि वह दुसरीं की चीजों को बेकार बता देते हैं। लेकिन सच तो ये है कि जिस चीज को आप बेकार समझते हैं वह दूसरों के लिए खजाने से कम नहीं होती है। वे बेकार चीजों को भी अवसर में बदल लेते हैं। चलिए इसे एक कहानी के माध्यम से समझते हैं।
गुरु ने दक्षिणा में मांगी एक बोरी सूखी पत्तियां
एक समय की बात है। एक गुरुकुल में तीन शिष्य थे। उनकी पढ़ाई पूर्ण हो गई थी। ऐसे में उन्होंने अपने गुरु से पूछा कि आपको गुरुदाक्षिणा में क्या चाहिए? इस पर गुरु ने उन्हें गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां लाने को कहा।
यह सुन शिष्य खुश हो गए। उन्हें लगा जंगल में तो ढेरों सूखी पत्तियां होती है। ये बड़ा आसान काम है। आराम से हो जाएगा। फिर तीनों शिष्य उत्साहपूर्वक जंगल पहुंचे। लेकिन यहां उन्हें बहुत खोजने पर भी बस एक मुट्ठी भर ही सूखी पत्तियाँ मिल पाई। वे भी सोच में पड़ गए कि आखिर सूखी पत्तियों जैसी व्यर्थ की चीज को कौन उठा ले गया?
फिर उन्हें दूर से एक किसान आता दिखा। उन्होंने उस से सूखी पत्तियों के बारे में पूछा। किसान बोला कि मैंने तो सूखी पत्तियों का उपयोग ईंधन के रूप में कर लिया। लेकिन गाँव में एक आदमी है जिसके पास आपको सूखी पत्तियां मिल जाएगी।
शिष्य उस आदमी कर पास गए, लेकिन उसने बताया कि मैंने सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए। लेकिन पास में एक बूढ़ी मां है। वहाँ आपको सूखी पत्तियां मिल जाएगी। तीनों शिष्य जब बूढ़ी माई के पास गए तो उन्हें पता चला कि महिला ने उन पत्तियों की औषधियां बना दी।
तीनों शिष्य निराश होकर खाली हाथ गुरुकुल लौट आए। वे गुरु से क्षमा मांगते हुए बोले कि हम आपकी इच्छा पूर्ण नहीं कर सके। हमे लगा कि जंगल में सूखी पत्तियां व्यर्थ पड़ी रहती है, आसानी से मिल जाएगी। लेकिन ये जान हैरानी हुई कि इन सूखी पत्तियों का भी इतना सारा इस्तेमाल किया जाता है।
शिष्यों की बात सुन गुरु मुस्कुराए और बोले- निराश मत हो। तुमने आज जो ज्ञान सीखा वही मेरी गुरु दक्षिणा है। यह सुन शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने घर चले गए।
कहानी की सीख
दुनिया में कोई भी चीज बेकार नहीं होती है। हर किसी का अपना अलग महत्व होता है। इसलिए कभी कभी बिना काम की लगने वाली चीजें भी बड़ी काम आती है। इसलिए किसी व्यक्ति या वस्तु को बेकार समझने की भूल न करें।