नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में गैरकानूनी तरीके से किडनी ट्रांसप्लांट का मामला सामने आने के बाद प्राइवेट अस्पतालों में हड़कंप मच हुआ है. इस खुलासे के बाद दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम के कई प्राइवेट अस्पतालों की नींद उड़ गई है.अब इन बड़े अस्पतालो में किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़े फाइलों को दुरुस्त किया जा रहा है. बता दें कि दो दिन पहले ही दिल्ली पुलिस ने एक किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया था. यह गिरोह पिछले पांच साल से दिल्ली के कई अस्पतालों में काम कर रहा है. इस गिरोह ने अब तक तीन दर्जन से भी ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट करवाए हैं.

आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की तफ्तीश में फिलहाल दो अस्पतालों के नाम सामने आए हैं. दिल्ली पुलिस ने सरिता विहार के अपोलो और नोएडा एक्सटेंशन के यथार्थ अस्पताल की कुंडली खंगालना शुरू कर दिया है. बीते मंगलवार को ही जसोला इलाके में एक फ्लैट में छापा मार कर इस गिरोह से जुड़े 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. बाद में डोनर और रिसीवर की पहचान कर एक डॉक्टर सहित 3 और लगों को गिरफ्तार किया गया. पुलिस के मुताबिक इस गिरोह ने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बांग्लादेश में करीब 50 लोगों से संपर्क किया था.

भारत में किडनी ट्रांसप्लांट का काला कोरोबार कब बंद होगा?
दिल्ली पुलिस के मुताबिक, विदेशी नागरिकों को भारत लाकर गलत तरीसे फर्जी एनओसी तैयार कर किडनी ट्रांसप्लांट कराने का खेल दिल्ली-एनसीआर में कई सालों से चल रहा है. कुछ महीने पहले भी नोएडा, गुरुग्राम और जयपुर में इस तरह के किडनी ट्रांसप्लांट के रैकेट का खुलासा हुआ था. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच नोएडा, गुरुग्राम और जयपुर में पकड़े गए किडनी रैकेट से जुड़े लोगों के तार जोड़कर जांच शुरू कर दी है. दिल्ली पुलिस पता लगा रही है कि क्या इन गिरोहों से भी पकड़े गए लोगों के बीच कोई तालमेल था?

क्या कहते हैं किडनी ट्रांसप्लांट के एक्सपर्ट
दिल्ली-एनसीआर में अवैध रूप से हो रहे किडनी ट्रांसप्लांट के इस खुलासे के बाद सर गंगा राम अस्पताल के चेयरमैन और देश के जाने-माने किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. डी एस राणा भी हैरान हैं. राणा न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में कहते हैं, ‘किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर नियम बड़े सख्त हैं. मैं हैरान हूं कि एक डॉक्टर ऐसा काम कैसे करता है? सबसे पहले आपको बता दूं कि मानव अंग प्रत्यारोपण अप्रूवल कमेटी के सदस्यों की सहमति के बिना ट्रांसप्लांट नहीं किए जाते हैं. इस कमेटी में तीन से पांच डॉक्टर और प्रशासन के एसडीएम स्तर के अधिकारी होते हैं.’