आचार्य चाणक्य को एक लोकप्रिय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार के रूप में जाना जाता है. आचार्य चाणक्य पाटलीपुत्र के महान विद्वान थे. इतने बड़े साम्राज्य के मंत्री होने के बाद भी वह एक साधारण सी कुटिया में रहना पसंद करते थे. साथ ही वह बेहद ही सादा जीवन जीने में यकीन रखते थे. चाणक्य ने अपने जीवन से मिले कुछ अनुभवों को एक किताब ‘चाणक्य नीति’ में जगह दिया है. आचार्य चाणक्य की नीति ग्रंथ में मनुष्य के लिए कई नीतियों का उल्लेख है. यदि मनुष्य अपने जीवनकाल में इन नीतियों का अनुसरण करता है तो उसका जीवन सुखमय हो जाता है. उन्होंने एक श्लोक में कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया है, जो मनुष्य को बिना आग के ही जला देती है. क्या है वो श्लोक, आइये जानते हैं.
कान्तावियोग स्वजनापमानो ऋणस्य शेषः कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषया सभा च विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्।।
इस श्लोक में आचार्य ने कहा है कि पति का पत्नी से वियोग, स्वजनों से अपमानित होना, कर्ज न चुका पाना, दुष्ट राजा की सेवा करना और दरिद्र व धूर्त लोगों की सभा मनुष्य को बिना आग के ही जला देने का काम करती है. इस श्लोक से चाणक्य ये बताना चाह रहे हैं कि भले ही ये बातें बाहरी हों, लेकिन मनुष्य को अंदर ही अंदर जलाती रहती हैं. बस फर्क इतना है कि ये जलन किसी को दिखती नहीं.
पति का पत्नी से वियोग
चाणक्य ने कहा है कि यदि पत्नी-पत्नी एक-दूसरे से बेइंतहा प्यार करते हों और उन्हें किसी कारणवश बिछड़ना पड़ जाए तो ये उनके लिए किसी आग में जलने के बराबर ही है. पति-पत्नी एक दूसरे का वियोग सहन नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर जलते रहते हैं.
स्वजनों से अपमानित होना
साथ ही चाणक्य ने ये भी कहा है कि यदि व्यक्ति अपने परिवार के ही किसी सदस्य से अपमानित हो जाता है या सगे-संबंधी उसके घरवालों की बेज्जती करते हैं, तो ये उस व्यक्ति के लिए आग में जलने के बराबर होता है. ऐसे लोग जिन्दा होते हुए भी मर जाते हैं.
कर्ज न चुका पाना
चाणक्य ने कहा है कि किसी से कर्ज तो आसानी से लिया जाता है, लेकिन उसे चुकाना भी समय पर चाहिए. माथे पर कर्ज हो और व्यक्ति उसे चुकाने में असमर्थ हो तो ये स्थिति भी उसके लिए आग में जलने के बराबर मानी जाती है. कर्ज उसके माथे पर होता है और वह इसी पश्चाताप में जलता रहता है.
दरिद्र व धूर्त लोगों की सभा
वहीं, दरिद्र और धूर्त लोगों की सभा में भाग लेने वाले भी अंदर से परेशान रहते हैं. मजबूरी में वह इस तरह की सभा का हिस्सा बनते हैं और ये बात उन्हें खायी जाती है. वह बिना किसी को बताये अंदर ही अंदर जलते रहते हैं.
दुष्ट राजा की सेवा
दुष्ट राजा की जी हजूरी करने वाले लोग भी अंदर ही अंदर जलते रहते हैं. इस हालात में वह अपनी इच्छा के विपरीत काम करते हैं और खुद को कचोटते रहते हैं. ये न चाहते हुए भी पद में खुद से बड़े लोगों की हां में हां मिलाने को मजबूर रहते हैं.