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जमीन का बंटवारा होगा अब नई शर्तों के साथ! जानिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, क्या शादीशुदा बेटी को भी मिलेगा हक?

जमीन का बंटवारा होगा अब नई शर्तों के साथ! जानिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, क्या शादीशुदा बेटी को भी मिलेगा हक?
जमीन का बंटवारा होगा अब नई शर्तों के साथ! जानिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, क्या शादीशुदा बेटी को भी मिलेगा हक?
Changes in the rules for land distribution

भारत में खेती की जमीन के उत्तराधिकार में विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव को लेकर एक जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई है। इस याचिका का उद्देश्य है कि विवाहित महिलाओं को भी अपने माता-पिता की कृषि भूमि में बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे अविवाहित बेटियों को मिलता है।

इस याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने संज्ञान लिया है। उन्होंने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का नोटिस भी जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।

क्या है याचिका में उठाए गए मुद्दे?

याचिका में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 और उत्तराखंड के कृषि भूमि कानूनों को चुनौती दी गई है। इन कानूनों में कहा गया है कि माता-पिता की कृषि भूमि में केवल अविवाहित बेटियों को ही प्राथमिकता दी जाएगी। यानि, अविवाहित बेटियां अपने माता-पिता की खेती की जमीन की उत्तराधिकारी मानी जाती हैं, जबकि विवाहित बेटियों को इस जमीन में कोई अधिकार नहीं दिया जाता। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, जो समानता और भेदभाव से सुरक्षा की बात करता है।

पुनर्विवाह से खत्म होता है विधवा का अधिकार

इस कानून के अनुसार, यदि कोई विधवा महिला अपने पति की कृषि भूमि की उत्तराधिकारी बनती है और उसका पुनर्विवाह होता है, तो उसका जमीन पर अधिकार समाप्त हो जाता है। इसे महिला के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना जा रहा है। जबकि पुरुषों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसका मतलब है कि यदि किसी पुरुष का विवाह होता है, तो उसके अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन महिला के पुनर्विवाह से उसका अधिकार समाप्त हो जाता है।

 

क्या कहती है याचिका?

याचिका में कहा गया है कि विवाह किसी भी महिला के उत्तराधिकार के अधिकार को खत्म करने का कारण नहीं बनना चाहिए। विवाह एक व्यक्तिगत और मौलिक अधिकार है, और इसे किसी महिला के संपत्ति के अधिकार से जोड़ना उचित नहीं है। यह भी कहा गया है कि यदि कोई महिला अपने पति की भूमि की उत्तराधिकारी बनती है, तो उसकी मृत्यु के बाद वह भूमि उसके परिवार के सदस्यों के बजाय पति के वारिसों को मिल जाती है।

न्यायालय से क्या उम्मीदें हैं?

यह याचिका समाज में महिलाओं के अधिकारों और बराबरी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद की जा रही है कि वह इस मामले पर सकारात्मक निर्णय देगा, जिससे विवाहित महिलाओं को भी अपने माता-पिता की कृषि भूमि में समान अधिकार मिल सके। यह कानून में बदलाव कर महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

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the authorhimachalikhabar

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