Chanakya Niti: चाणक्य नीति के छठे भाग के 9वें श्लोक में बताया है कि व्यक्ति को कब और किसके पाप की सजा स्वंय भुगतनी पड़ती है. इन तकलीफों से दूर रहना चाहते हैं तो आज ही ऐसे लोगों का त्याग कर दें.
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः । भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।। – इस श्कोल में चाणक्य ने राजा-प्रजा, गुरु-शिष्य और पति-पत्नी का उदाहरण देकर समझाया है कि इस तरह से जुड़े लोगों को एक-दूसरे के पाप या गलतियों की सजा भुगतनी पड़ती है.
चाणक्य कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने कर्मों की सजा तो भुगतनी पड़ती ही है लेकिन कई बार ऐसी स्थिति भी बनती है जब दूसरों के पाप कर्मों का बुरा परिणाम खुद को झेलना पड़ता है. चाणक्य के अनुसार इन चीजों से बचने के लिए कैसे लोगों से दूरी बनाकर रखें और मुश्किल हालातों में कैसे व्यवहार करें.
चाणक्य के अनुसार देश की जनता या शासक कोई गलत काम करती है तो उसके परिणाम ऐसे में देश के शासक और जनता दोनों अपनी जिम्मेदारियों को भली भातीं समझकर कोई कदम उठाएं. गलत कार्य न करें. खासकर सत्ता में मौजूद ताकतवर व्यक्ति से दूर बनाने में ही भलाई है क्योंकि इनकी न दोस्ती अच्छी न ही दुश्मनी.
गुरु का काम होता है शिष्य को सही राह दिखाना, वहीं शिष्य की जिम्मेदारी होती है गुरु के बताए मार्ग पर चलना तभी सफलता मिलती है लेकिन अगर गुरु सही नहीं हो तो शिष्य का भविष्य बिगड़ जाता है और शिष्य अगर भटक जाए, गलत कार्य में लिप्त हो जाए तो इससे गुरु की बदनामी होती है. ऐसे में सही गुरु का चुनाव करें, वहीं शिक्षा का संचार वहीं करें जिसे उसकी कद्र हो.
पति और पत्नी परस्पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं. चाणक्य कहते हैं कि अगर जिंदगी में दुष्ट जीवनसाथी मिल जाए तो हर दिन तकलीफें झेलनी पड़ती है. ऐसे में शादी से लाइफ पार्टनर को क्रोध, अहंकार, लालच के मापदंड पर जरुर परखें.