तब खिड़की से पर्चियां फेंक नकल कराई जाती थी, अब ऑनलाइन पेपर लीक… आखिर क्या बदला?.

केंद्र सरकार ने पेपर लीक पर सख्त कानून बनाया, एनटीए की कार्य प्रणाली की निगरानी के लिए हाई लेवल कमेटी का गठन किया लेकिन छात्रों का प्रदर्शन जारी है और सियासतदां की राजनीति भी. अहम सवाल भरोसा का है. देश के करोड़ों बच्चे आखिर आश्वस्त कैसे हों? क्योंकि हालात तो सालों से एक जैसे हैं. ना स्कूलों में नकल रुकी और ना ही पेपर लीक.
तब खिड़की से पर्चियां फेंक नकल कराई जाती थी, अब ऑनलाइन पेपर लीक… आखिर क्या बदला?.
बारहवीं फेल फिल्म का एक दृश्य था. मुख्य किरदार मनोज शर्मा बने विक्रांत मैसे आईएएस का इंटरव्यू दे रहे हैं. बोर्ड उनसे सवाल करता है- 12वीं में फेल कैसे हो गए? मनोज शर्मा का जवाब- क्योंकि उस साल हमारे स्कूल में चीटिंग नहीं हुई थी. बोर्ड के सारे अधिकारी अचंभित. ये कैसे हो सकता है? चीटिंग नहीं होने से कोई फेल कैसे हो सकता है? आगे विक्रांत मैसे अपनी साफगोई में समझाने में कामयाब होते हैं कि नकल किस तरह से प्रतिभाशाली छात्रों के भविष्य को बर्बाद कर देती है. यकीनन ये फिल्म का दृश्य था लेकिन इसकी बुनियाद वास्तविक थी. रीयल लाइफ का ऐसा ही दंश आज पूरा देश झेल रहा है. नकल, चीटिंग या पेपर लीक ने देश की शिक्षा व्यवस्था को जैसे खोखला कर दिया है. मेहनती और होनहार छात्र आज दोराहे पर जिस द्वंद्व में हैं, उसकी चिंता सरकार भी करना चाहती है लेकिन पैसे और पावर के नेक्सस ने पूरे सिस्टम को पंगु बना दिया है.

आज सड़कों पर उतरे छात्रों के प्रदर्शनों को देखते हुए नकल की कुछ पुरानी तस्वीरें जेहन में कौंधती हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जब हम बोर्ड की परीक्षाओं में खिड़की तोड़ नकल के वाकयों को याद करते हैं तो हंसी आती है. लेकिन तब गुस्सा भी खूब आता था. प्रशासन, स्कूल टीचर-प्रिंसिपल पर तो राज्य सरकारों पर भी. ऊंची दीवार पर पर्चियां या किताबों के पन्ने लेकर चढ़ते छात्र, छात्राओं के अभिभावक या उसके दोस्त स्टंट करने से बाज नहीं आते थे. सब पेपर माफिया की कठपुलती थे. कोई खिड़की से किताबें फेंकता था तो कोई छज्जे पर चढ़कर दूसरी मंजिल के क्लासों में भी पर्चियां फेंकने की वीरता का प्रदर्शन करता था. तस्वीरें मीडिया के कैमरे में कैद होकर वायरल होतीं लेकिन प्रशासन से लेकर सरकारों तक सब के सब सुस्ती के शिकार थे.

एनटीए बनाने के बाद संदेह और विवाद बढ़े

नतीजा आज सामने है. नकल को हमने परीक्षा में कदाचार कहा है. शिक्षा के साथ खिलवाड़ माना है. लेकिन इस कदाचार पर नकेल अगर पहले से कसी गई होती शायद पेपर लीक आज इस तरह बेकाबू नहीं होता. आज एनटीए को नीट यूजी, जेईई मेन, सीयूईटी, यूजीसी नेट जैसी उच्च शिक्षा की परीक्षाएं आयोजित करने का दायित्व दिया गया है. साल 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से इस एजेंसी का गठन हुआ था लेकिन पिछले छह साल में यह संगठन कई आरोपों और संदेहों के घेरे में है. सरकार को समझ नहीं आ रहा, इस पर लगाम कैसे लगाएं. केंद्र सरकार ने कानून बना दिया, हाई लेवल कमेटी का भी गठन कर दिया, ये सब होना भी चाहिए. लेकिन ये प्रभावी कैसे होगा? और कब तक असरदार रहेगा? ये एक अहम सवाल है.

पेपर लीक पर कांग्रेस बनाम बीजेपी का राज

एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 7 साल में 15 राज्यों में भर्ती और बोर्ड परीक्षाओं सहित परीक्षा लीक के 70 से अधिक मामले सामने आए हैं. करीब 1.7 करोड़ आवेदक प्रभावित हुए हैं. इन आंकड़ों को सामने रखते हुए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला. लेकिन कांग्रेस राज भी इस मामले में आरोप मुक्त नहीं है. नकल माफिया, एजुकेशन माफिया रातों रात की उपज नहीं हैं. राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हो चुका है लेकिन इससे पहले अशोक गहलोत की सरकार के समय राजस्थान में पेपर लीक की घटनाओं को लेकर बीजेपी हल्ला बोल चुकी है. गहलोत सरकार के गिरने की प्रमुख वजहों में पेपर लीक कांड भी रहा है.

राजनीति शिक्षा की दुर्दशा की जिम्मेदार

पिछले दिनों केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से एक प्रेस कांफ्रेंस में जब पूछा गया कि राहुल गांधी ने पेपर लीक पर सवाल उठाया है, तो उन्होंने कहा था कि मैं सभी से ये अपील करता हूं कि छात्रों के भविष्य को लेकर राजनीति ना करें. उन्होंने अपने जवाब में राहुल गांधी का नाम नहीं लिया और ना ही पलटवार किया. लेकिन पेपर लीक पर राजनीति आखिर रुके कैसे? ये भी एक अहम सवाल है. बीजेपी के लिए कांग्रेस राज का पेपर लीक बुरा है तो कांग्रेस के लिए भाजपा राज के पेपर लीक खराब. जरा सोचिए पेपर लीक के शिकार छात्रों को इस राजनीति से भला क्या काम?

अगर हमारे देश की सियासी शक्तियां वाकई नकल, चीटिंग और पेपर लीक, भर्ती घोटाला को रोकने के लिए चिंतित हैं तो सबसे पहले उनका पेपर लीक और हमारा पेपर लीक की लड़ाई खत्म करनी होगी. दूसरे, राजनीतिक दलों को सामने आकर ये साबित करना होगा कि पेपर लीक या सॉल्वर गैंग को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नहीं है. पेपर लीक एजुकेशन माफिया की करतूत है, वह अपराध है, उसे कोई राजनीतिक आश्रय ना दे. वरना चीटिंग ना होने पर बच्चे बारहवीं में फेल होते रहेंगे. खिड़कियों और दीवारों पर चढ़कर बच्चों के अभिभावक पर्चियां फेंकते रहेंगे और सड़कों पर लाखों की संख्या में छात्र आज की तरह प्रदर्शन करते रहेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *