बचपन में माता पिता इस बात पर बहुत अधिक जोर देते थे कि हमारे दोस्त कौन है और कैसे हैं। दरअसल उन्हें हमारी अच्छी बुरी संगत की चिंता सताती थी। कहते हैं आप जिस शख्स के साथ रहते हैं उसके जैसे हो जाते हैं। संगत का कितना अधिक असर पड़ता है इस बात को एक कहानी से समझते हैं।
जब राजा के पीछे पड़ गए डाकू, तोता निकला खबरी
एक समय की बात है। एक बार एक राजा शिकार करने जंगल गया था। हालांकि उसे काफी देर तक कोई शिकार नहीं मिला। फिर रात हो गई और घनघोर अंधेरा होने के चलते वह जंगल में रास्ता भटक गया। इस दौरान उसे डाकुओं का एक अड्डा दिखाई पड़ा।
खतरे को भापते हुए बहुत ही धीरे और चुपचाप उनके अड्डे के पास से गुजरा। लेकिन वहां पेड़ पर बैठे तोते ने उन्हें देख लिया। तीता चिल्लाते हुए बोला “पकड़ो-पकड़ो। एक राजा आ रहा है। इसके पास बहुत सारा सामान है, लूटो-लूटो, जल्दी आओ- जल्दी आओ।”
तोते की आवाज सुनते ही डाकू अड्डे से बाहर आए और राजा के पीछे पड़ गए। राजा जैसे तैसे वहां से जान बचाकर भागा। कुछ देर बाद थककर वह एक पेड़ के पास सुस्ताने लगा। इस पेड़ पर भी एक तोता बैठा था। वह राजा को देखते ही बोला “आओ राजन, हमारे साधु महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है। अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये।”
तोते के यह बोल सुन राजा दंग रह गया। वह सोचने लगा कि एक ही जाति के होने के बावजूद दोनों तोतों की वाणी में कितना अंतर है। फिर जब वह साधु से मिला तो उसने उसे पूरी कहानी सुनाई। साथ ही पूछा कि दोनों तोतों के व्यवहार में इतना अंतर कैसे है?
इस पर साधु ने कहा कि “ये राजन, ये सब बस संगति का असर है। डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा। वह भी उनकी भाषा बोलना सीख गया। वहीं मेरा तोता मेरे साथ रहा तो मुझ जैसी आदतें सीख गया। यह सब वातावरण पर निर्भर करता है। मूर्ख भी विद्वानों संगत में विद्वान बन सकता है, वहीं विद्वान यदि मूर्खों के साथ रहे तो वह भी मूर्ख बन जाता है”
कहानी की सीख
इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हमेशा अच्छे दोस्त बनाए। अच्छी संगत में रहने पर आपके अंदर भी अच्छी आदतें आएंगी। हम जिस तरह के लोगों के साथ रहते हैं हमारे अंदर वैसे ही गुण-अवगुण जाने अनजाने में आ जाते हैं। इसे भी जरूर पढ़ें –