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पुरानी से पुरानी बबासीर भी होगी जड़ से गायब बस अपना लो ये उपाय.

पुरानी से पुरानी बबासीर भी होगी जड़ से गायब बस अपना लो ये उपाय.

 बवासीर, जिसे पाइल्स (Piles) या हेमोर्राइड्स(Hemorrhoids) भी कहा जाता है, एक प्रकार की विषाणुमार्गीय समस्या है जिसमें गुदा के आसपास की नसों में सूजन और परेशानी होती है। यह एक ऐसी समस्या है जो आंत के शिराओं में सूजन और प्रदाह की स्थिति के कारण होती है। यह समस्या दर्द, खुजली, रक्तस्राव और अनुचितता की समस्याएं पैदा कर सकती है। आयुर्वेद में, बवासीर के उपचार के लिए कई प्राकृतिक औषधियों, जड़ी-बूटियों और आहार-व्यवहार बदल कर इस समस्या का निदान किया जा सकता है। नीचे दिए गए हैं बवासीर के आयुर्वेदिक उपचारों की विस्तृत जानकारी:

त्रिफला:

पुरानी से पुरानी बबासीर भी होगी जड़ से गायब बस अपना लो ये उपाय.

त्रिफला बवासीर के लिए एक प्रमुख आयुर्वेदिक उपाय है। त्रिफला चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए। यह पाचन को सुधारकर और बवासीर की समस्या को कम करने में मदद करता है।

काली मिर्च:

काली मिर्च में पाइपरिन नामक एक संयंत्रीय तत्व होता है जो बवासीर को ठीक करने में मदद करता है। आपको प्रतिदिन खाने में काली मिर्च का उपयोग करना चाहिए।

वासाक कवथ:

वासाक (हरितकी) के पत्तों से बनाए गए काढ़े का सेवन बवासीर के लिए उपयोगी होता है। इसे एक चम्मच गुड़ के साथ सेवन करें। वासाक कवथ दर्द को कम करता है और सूजन को कम करने में मदद करता है।

आंवला:

आंवला बवासीर को ठीक करने में मदद करता है। आप आंवले का रस शहद के साथ दिन में दो बार सेवन कर सकते हैं। यह प्राकृतिक रूप से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है और रक्तस्राव को रोकता है।

योग और प्राणायाम:

योग और प्राणायाम बवासीर के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं। पद्मासन, वज्रासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, और कपालभाति प्राणायाम बवासीर की समस्या को कम करने में मदद कर सकते हैं। ये योगाभ्यास आंत को मजबूत और स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।

ट्रिफला घृत:

ट्रिफला चूर्ण को घी में पकाकर ट्रिफला घृत बनाया जा सकता है। यह घृत दिन में दो बार सेवन किया जा सकता है और बवासीर के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

सिट्स बाथ:

गर्म पानी में नमक डालकर सिट्स बाथ करने से बवासीर के लक्षण कम हो सकते हैं। इसमें आपको नीचे बैठकर गर्म पानी में 15-20 मिनट रहना होता है। यह सूजन को कम करता है और दर्द को शांति प्रदान करता है।

सेवनांगा लेप:

लौंग, टुलसी, दालचीनी, दूध, घी और मधु को मिलाकर एक लेप बनाया जा सकता है और बवासीर के प्रभावित क्षेत्र पर लगाया जा सकता है। इस लेप को सप्ताह में कुछ बार लगाने से लाभ हो सकता है।

अर्शक्तर रस:

अर्शक्तर रस एक आयुर्वेदिक औषधि है जो बवासीर के लिए उपयोगी हो सकती है। इसे एक चम्मच गुड़ के साथ सेवन किया जा सकता है। यह सूजन को कम करता है और रक्तस्राव को रोकता है।

आहार और व्यायाम:

आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ उचित आहार और नियमित व्यायाम भी महत्वपूर्ण हैं। आपको फाइबर से भरपूर आहार लेना चाहिए और पर्याप्त पानी पीना चाहिए। व्यायाम करना आंत की गतिविधियों को सुचारू रूप से स्थानांतरित करने में मदद करेगा और बवासीर की समस्या को कम करेगा।

ध्यान दें कि यदि आपकी बवासीर की समस्या गंभीर है या उपचार से आराम नहीं मिल रहा है, तो आपको एक व्यावसायिक आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। वे आपकी स्थिति का मूल्यांकन करके उचित उपचार प्रदान कर सकते हैं। इसके साथ ही विशेषज्ञ की सलाह के बिना किसी आयुर्वेदिक उपचार का सेवन न करें।

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