बंदर की मौत पर रोया पूरा गांव, डीजे पर रामधुन के साथ निकली अंतिम यात्रा!!

बंदर की मौत पर रोया पूरा गांव, डीजे पर रामधुन के साथ निकली अंतिम यात्रा!!

राजगढ़ जिले के जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाले राजपुरा गांव में एक बंदर की मौत पर पूरा गांव रोया और उसकी अंतिम यात्रा कुछ इस तरह निकाली मानो गांव के किसी वरिष्ठ व्यक्ति का निधन हो गया हो। गांव के घर घर से लोगों के रोने की आवाजें आ रही थी और डीजे पर रामधुन के साथ बंदर की अंतिम यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में पुरुष वर्ग के साथ ही बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई, जो यात्रा के पीछे चल रही है।

दरअसल, राजगढ़ के राजपुरा गांव में एक बंदर का आकस्मिक निधन हो गया है। यह बंदर गांव में यहां वहां घूमता रहता था, जिससे लोगों का जुड़ाव भी बंदर के साथ हो गया था।  जब उसका निधन हुआ तो गांव के लोगों ने उसे एक परिवार के सदस्य की तरह ही विदाई दी।  हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से बंदर की शव यात्रा निकली गई । अंतिम यात्रा में डीजे के साथ रामधुन बजाई गई, जिसमें रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान जैसे गीतों के साथ यह अंतिम यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में गांव के लगभग सभी जन शामिल हुए।

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धार्मिक प्रवत्ति का है गांव

बता दें कि राजपुरा गांव मैं एक बड़ा मंदिर है, जिसमें सभी गांव के लोग एक साथ पूजा करते हैं। यहां कई तरह के धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। लोग बताते हैं कि यह गांव बड़ा ही धार्मिक प्रवृत्ति का है । यही कारण है कि बंदर की मौत को कहीं न कहीं धार्मिक विधाओं से जोड़ते हुए उसकी अंतिम यात्रा मैं गांव के सभी लोग शामिल हुए और इंसानों की तरह ही बंदर का भी अंतिम संस्कार किया गया।

पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि,” ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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