भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा क्यों की जाती है? शिवलिंग का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा क्यों की जाती है? शिवलिंग का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान कई स्थलों पर पकी मिट्टी के शिवलिंग मिले जिससे इस बात का सबूत मिलता है कि शिवलिंग की पूजा 3500 ईसा पूर्व से 2300 ईसा पूर्व भी होती थी। अथर्ववेद के स्तोत्र में एक स्तम्भ की प्रशंसा की गई है जिसे अनादि और अनंत स्तम्भ का कहा गया है और या भी कहा गया कि यही वह साक्षात् ब्रह्म है। इन सारी बातों से ये तो समझ आता है कि शिवलिंग का अस्तित्व और उसकी पूजा का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन सवाल यह है कि जब भगवान् शिव का मूर्त रूप भी मौजूद है, तो लोग प्राचीन समय से ही भगवान् शिव के रूप में शिवलिंग की पूजा क्यों करते आ रहे हैं?

शिवलिंग का अर्थ और महत्व क्या है?
वेदों की मानें, तो समस्त ब्रह्माण्ड में भगवान् शिव ही ऐसे हैं जिनकी लिंग के रूप में पूजा होती है और लिंग रूप में इन्हें समस्त ब्रह्मांड में इसलिए पूजा जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने जाते हैं। भगवान शिव को आदि और अंत के देवता की संज्ञा दी गई है। भगवान शिव का न तो कोई रूप है और न ही कोई आकार। वे निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को भगवान शिव का निराकार रूप माना जाता है यानि भगवान् शिव का साकार रूप शंकर हैं जबकि उनका निराकार रूप शिवलिंग है। शिवलिंग को निराकार ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। वायु पुराण के अनुसार, प्रलयकाल में प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में मिल जाता है और फिर संसार इसी शिवलिंग से सृजन होता है। वेदों में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है जो 17 तत्वों से बना होता है।

शिवलिंग कैसे अस्तित्व में आया?
लिंग महापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर जब बहुत विवाद हो रहा था, तब अग्नि की ज्वालाओं के लिपटा हुआ एक लिंग प्रकट हुआ। ब्रह्माजी और विष्णु की ने उस लिंग को समझने और उसके ओर-छोर को जानने का बहुत प्रयास किया लेकिन हजार वर्षों तक की खोज के बाद भी न तो उन्हें उस लिंग का स्त्रोत नहीं मिला और ना ही उसका रहस्य समझ आया। उन्हें वहाँ केवल ओम की ध्वनि सुनाई दी। तब ब्रह्माजी ने प्रकाश स्तम्भ से उनका परिचय पूछा, तो जवाब आया की वे शिव हैं और वही सभी स्रोतों की उत्पत्ति का कारण है, यहां तक कि ब्रह्मा और विष्णु का भी। उसी से भगवान् शंकर की भी उत्पत्ति हुई है। कहते हैं उसके बाद ही भगवान शिव निराकार रूप में एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए जो भगवान शिव का पहला शिवलिंग माना गया। सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने शिव के उस लिंग की पूजा-अर्चना की थी और तब से भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा करने की परम्परा चली आ रही है।

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शिवलिंग का आध्यात्मिक महत्वशिवलिंग को भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि यह अखिल विश्व ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग में शिव और शक्ति दोनों ही समाहित बताए गए हैं जो पुरुष और प्रकृति का प्रतीक हैं। शक्ति मनुष्य के शरीर में प्राण ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होती हैं जबकि शिव मस्तिष्क में स्थित होकर शक्ति को मार्ग बतलाते हैं। शिवलिंग का स्वरूप संयम, ध्यान, तपस्या और आत्मा के अद्वितीयता का प्रतीक होता है। यदि कोई व्यक्ति शिवलिंग की उपासना करता है, तो इसका अर्थ हो सकता है कि वह अपने आत्मा के साथ कनेक्ट हो रहा है और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में बढ़ रहा है।

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