युद्ध का मैदान गूंज रहा था। रावण, लंकापति, अपनी अंतिम सांसों को गिन रहा था। चारों ओर उसकी हार का नंगा नाच चल रहा था। लेकिन इस स्थिति में भी, रावण के मन में एक गहरी शांति थी। उसे पता था कि उसकी विदाई का समय आ गया है, और उसने लक्ष्मण को अपने पास बुलाया।
लक्ष्मण, जो राम के छोटे भाई थे, रावण के पास पहुंचे। रावण ने उन्हें ध्यान से देखा और कहा, “लक्ष्मण, मेरी बातें सुनो। आज मैं तुम्हें कुछ महत्वपूर्ण ज्ञान देना चाहता हूँ।”
1. अहंकार का पाठ
रावण ने सबसे पहले कहा, “अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। मैंने अपनी शक्ति और ज्ञान का दुरुपयोग किया, और यही मेरे पतन का कारण बना। तुम हमेशा याद रखो, जो व्यक्ति अहंकारी होता है, वह अंततः स्वयं को ही नष्ट कर लेता है।”
लक्ष्मण ने सिर झुकाकर सुना। रावण की बातें सच्चाई से भरी थीं।
2. समय का महत्व
फिर रावण ने कहा, “किसी भी अच्छे कार्य को करने में देरी मत करो। समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। मैंने अवसरों को गंवाया और इसका खामियाजा भुगता। तुम हमेशा समय की कदर करना।”
3. स्त्री का सम्मान
उसने एक गहरी सांस ली और आगे कहा, “मुझे पता है कि मैंने माता सीता का अपहरण किया, लेकिन इसके दुष्परिणाम बहुत भयानक थे। मैं तुमसे यही कहता हूँ कि किसी पराई स्त्री पर बुरी नजर मत डालो। यह तुम्हारे लिए और समाज के लिए भी ठीक नहीं है।”
4. गोपनीयता का महत्व
आखिर में, रावण ने कहा, “एक और बात, अपने राज किसी से साझा मत करो। मैंने बहुत से लोगों को अपने राज बता दिए थे, और यही मेरी गलती थी। गोपनीयता में सुरक्षा होती है।”
लक्ष्मण ने रावण की बातें ध्यान से सुनीं। उसकी आँखों में आँसू थे, क्योंकि उसने देखा कि रावण, जो एक शक्तिशाली राक्षस था, अपने जीवन के अंत में ज्ञान और सीख के साथ विदा हो रहा था।
कौन थी माँ पार्वती की ननद? क्या हुआ था जब शिव जी के पास उन्ही की बहन की शिकायत लेकर पहुंची थी खुद भाभी गौरा!
रावण ने कहा, “याद रखो, लक्ष्मण, ज्ञान का कोई समय नहीं होता। चाहे तुम कितने भी महान क्यों न हो, सच्चाई हमेशा महत्वपूर्ण होती है।”
इस प्रकार, रावण ने अपने अंतिम क्षणों में लक्ष्मण को जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएं दीं, जो सदियों तक सुनाई जाएंगी। रावण का ज्ञान, उसकी गलतियों से उपजी थी, और यह संदेश हमेशा जीवित रहेगा।