गाजियाबाद का ये केस ऐसा है जिसके बारे में जुर्म और मुजरिमों में दिलचस्पी रखने वाले हर शख्स को जानना चाहिये। क्योंकि बहुत से लोग ये सोचते हैं कि क्राइम करते वक्त अगर सबूत न छोड़ा जाए तो इंसान संगीन से संगीन जुर्म करके भी बच सकता है। मगर ये ख्याल बस ख्याल ही है, क्योंकि हकीकत में पुलिस अगर अपना काम ठीक से कर ले तो तो क्राइम का कोई भी केस ऐसा नहीं है जो अनसुलझा रह जाए।
शीशे के मर्तबान में दिल, गुर्दा, अंतड़ियां
ताजा मामला है गाजियाबाद के प्रहलादगढ़ी इलाके का। यहां रहने वाला महेंद्र सिंह पास ही इंडस्ट्रियल एरिया की एक फैक्ट्री में काम करता था। जुलाई 2022 में संदेहास्पद हालात में ड्यूटी के दौरान महेंद्र की मौत हो गई। चूंकि मौत का कारण साफ नहीं था लिहाजा मृतक का विसरा यानी दिल, गुर्दा, फेफड़े, लीवर और अंतड़ियों जैसे शरीर के आंतरिक अंग सहेज कर रख लिये गये। जिन संदिग्ध मामलों में मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता उनमें इन अंगों को एक शीशे के मर्तबान में प्रिजर्व करके रखा जाता है। पुलिस की आगे की जांच में भी अगर मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता तो फिर मरने की वजह जानने के लिये इन अंगों को फोरेंसिक साइंस लैब भेज कर इनका परिक्षण कराया जाता है। दरअसल शरीर के इन बेहद जरुरी अंगों में किसी भी इंसान की मौत का कारण छिपा होता है। अगर शरीर को ऊपर से देख कर मौत की वजह पता नहीं लगती तो इन अंदरूनी अंगों की जांच से पता लग जाता है कि मृतक की जान कैसे गई।
थाने की बंद फाइलों में छिपा मौत का राज़
बहरहाल महेंद्र सिंह की मौत के बाद उसका विसरा कुछ इसी तरह शीशे के मर्तबान में सहेज कर रख लिया गया। और उसके नमूने जांच के लिये फोरेंसिक साइंस लैब भेज दिये गये। इस कार्रवाई में काफी वक्त निकल गया और महेंद्र सिंह का परिवार भी उसकी मौत के सच से समझौता कर अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गया। एक के बाद एक महीने गुजर गए और देखते-देखते महेंद्र की मौत को एक साल गुजर गया। इसी बीच एक रोज महेंद्र के भाई ओमप्रकाश को उसका ख्याल आया और उसकी मौत की अनसुलझी गुत्थी उसके दिमाग को बुरी तरह कचोटने लगी। ओमप्रकाश से जब न रहा गया तो वो सीधे पुलिस थाने पहुंच गया और भाई की मौत की जांच करने वाले अफसरों से उसके बारे में जानकारी की।
महेंद्र को किसने दी जहरीली मौत?
शुरू में तो पुलिसवालों ने उसे टाल दिया। मगर जब महेंद्र का भाई पुलिसवालों से विसरा की रिपोर्ट देखने की जिद करने लगा तो पुलिसवालों ने भी फाइलें खंगालनी शुरू कीं। आखिरकार साल भर पहले आई महेंद्र की विसरा रिपोर्ट उन्हें मिल ही गई। मगर जब उस रिपोर्ट को पुलिसवालों ने गौर से पढ़ा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक महेंद्र की मौत स्वाभाविक मौत नहीं थी, बल्कि उसका तो कत्ल किया गया था। महेंद्र सिंह की विसरा रिपोर्ट के मुताबिक उसकी मौत जहर से हुई थी। लेकिन महेंद्र से किसी की क्या दुश्मनी? कोई उसे जहर क्यों देगा? ये आत्महत्या का मामला भी नहीं हो सकता था क्योंकि मौत के वक्त तो महेंद्र फैक्ट्री में अपनी ड्यूटी कर रहा था। उसके साथ काम करने वाले लोग पहले ही बता चुके थे कि न तो उसकी किसी से दुश्मनी थी न ही वो किसी बात को लेकर परेशान था। उस रोज तो महेंद्र की तबियत अचानक बिगड़ी और थोड़़ी ही देर में उसकी मौत हो गई।
कीड़े मारने की दवा से मार दिया इंसान
ऐसे में मौत की वजह जानने का जिम्मा अब पुलिस के हाथ आया। साल भर पहले ठंडे बस्ते में पड़ी जांच ने अचानक तेजी पकड़ ली। विसरा रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने गाजियाबाद में लिंक रोड इलाके की उस फैक्ट्री का रुख किया जहां मृतक महेंद्र काम करता था। पूछताछ में पता लगा कि महेंद्र ने अपने साथ काम करने वाले एक शख्स धर्मेंद्र के नाम पर फैक्ट्री से कुछ रुपये एडवांस में लिये थे मगर काफी दिनों तक वो रुपये उसने न तो फैक्ट्री मैनेजमेंट को लौटाए और न ही धर्मेंद्र को। इसी बात को लेकर दोनों के बीच तनातनी भी हुई थी। पुलिस का शक यकीन में बदल गया कि हो न हो महेंद्र की मौत का कोई न कोई कनेक्शन धर्मेंद्र से जरूर है। पुलिस ने जब फैक्ट्री में पता किया तो पता लगा कि धर्मेंद्र वहां से नौकरी छोड़ कर कहीं और चला गया है। इसके बाद आरोपी को पकड़ने के लिए गाजियाबाद के एसीपी रजनीश उपाध्याय के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई। इस टीम ने मुखबिरों के जरिये आरोपी का पता तलाश लिया और आखिरकार धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि महेंद्र ने उसके नाम पर कंपनी से कुछ रुपया उधार लिया था। जिसे वो वापस नहीं कर रहा था। इसी से नाराज होकर उसने 6 जुलाई 2022 को उसे चूरन में कीड़ा मारने वाला कैमिकल मिलाकर दे दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई।
तारीख पर तारीख मिलती रही, धूल खाती रही रिपोर्ट
डीसीपी निमिष पाटिल ने बताया कि इस मामले में मृतक के भाई ओमप्रकाश की शिकायत पर हत्या की धाराओं में केस दर्ज कर धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया है। डीसीपी ने ये भी बताया कि इस मामले में विसरा रिपोर्ट एक साल तक क्यों नहीं देखी गई इसको लेकर हुई लापरवाही की जांच की जा रही है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि लापरवाही बरतने वाले पुलिसवालों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा। दरअसल 6 जुलाई, 2022 को हुई महेंद्र की मौत के बाद पुलिस ने उसकी लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा था। भाई ओमप्रकाश के हत्या का शक जताने पर पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने पर एक्शन लेने का वादा किया था। इसके बाद जब पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह साफ नहीं हो पाई तो पुलिसवालों ने उसे विसरा रिपोर्ट आने पर आगे की कार्रवाई का भरोसा दिलाया। सितंबर 2023 में विसरा रिपोर्ट आ भी गई, लेकिन पूरे एक साल तक वो थाने में ही पड़ी रही। उस पर एक्शन लेना तो दूर, थाने के पुलिसवालों ने उसे खोल कर देखा तक नहीं। अगर मृतक का भाई ओमप्रकाश साल भर बाद पुलिसवालों से रिपोर्ट ढूंढ लेने की जिद नहीं करता तो तो शायद महेंद्र के कत्ल का ये मामला हमेशा-हमेशा के लिये दफ्न हो जाता।