निचली अदालतों से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक हर दिन संपत्ति से संबंधित कई मामलों पर सुनवाई होती है। कई मामले तो फाइल बन कर सालों साल बस पड़े ही रहते हैं और उन पर धूल जमती रहती है, तो वहीं, कई मामलों को लेकर कोर्ट ऐतिहासिक फैसले सुनाती है।
आपने कई तरह के संपत्ति के मामलों के बारे में सुना होगा, जैसे भाई-भाई के बीच संपत्ति के बंटवारे को लेकर बहस या फिर बहनों द्वारा पिता की संपत्ति में अपना हक या पत्नी द्वारा हक मांगना। हालांकि, आज के इस लेख में हम आपको जिस केस के बारे में बताने वाले हैं, वो इन सब से काफी अलग है। क्या आपने कभी सुना है कि किसी आदमी ने अपनी बहन के ससुराल की संपत्ति पर अपना हक जताया हो? पढ़ने में ही ये काफी अटपटा लग रहा होगा और आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस मामले में कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया होगा। आइये जानते हैं मामले के बारे में विस्तार से….
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने ये साफ कर दिया कि कोई भी व्यक्ति अपनी बहन के ससुराल की संपत्ति या फिर उसके पति से विरासत में मिली संपत्ति पर अपना अधिकार नहीं जता सकता। कोर्ट ने बताया कि किसी भी संपत्ति पर उसके उत्तराधिकार का हक होता है और महिला का भाई उसके पति से विरासत में मिली संपत्ति का उत्तराधिकार नहीं होता। जस्टिस दीपक मिश्रा और आर की पीठ ने कहा, “धारा 15 में इस्तेमाल की गई भाषा स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करती है कि पति और ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति/ससुर के उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित होगी, जिनसे उसे संपत्ति विरासत में मिली है।”
क्या था मामला?
दरअसल, ये मामला काफी साल पुराना है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय में मार्च 2015 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी, जिस पर ये सुनवाई हुई। व्यक्ति को देहरादून में एक संपत्ति में अनधिकृत रहने वाला माना गया था, जिसमें उसकी मृत, विवाहित बहन किरायेदार थी। पीठ ने कहा कि यह संपत्ति 1940 में महिला के ससुर (पुरुष की बहन) ने किराए पर ली थी और उसके बाद महिला का पति इसका किरायेदार बन गया। अपने पति की मृत्यु के बाद, वह संपत्ति की किरायेदार बन गई। इस लिहाज से ये फैसला सुनाया गया कि उस संपत्ति पर महिला के भाई का कोई अधिकार नहीं है।