पितरों की याद में जो श्राद्ध होता है उसमें ब्राह्मणों को भोज भी कराया जाता है। हालांकि उसके पहले पंचबलि (पंच ग्रास) निकाला जाता है। यानि 5 अलग अलग जानवरों जैसे कौए, कुत्ते, गाय इत्यादि का भोग निकाला जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों करते हैं। इसका ऐसा क्या महत्व है? चलिए जानते हैं।

गोबलि

गाय को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। लोग उसकी पूजा करते हैं। मान्यता है कि उसमें 33 कोटि देवता वास करते हैं। कहते हैं कि गाय की पूजा और सेवा से जीवन के सभी सुख मिलते हैं। यदि वजह है कि पितृपक्ष में गाय के लिए विशेष रूप से ग्रास यानि भोग निकाल लिया जाता है।

श्वानबलि

पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान श्वान यानि कुत्ते का भी भोग निकाला जाता है। कुत्ता यमराज का पशु माना जाता है। कहते हैं कि इसे श्राद्ध में भोजन कराने से हर प्रकार के डर दूर हो जाते हैं। इसके अलावा पितरों का अच्छे से आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाता है।

काकबलि

पितृ पक्ष में काक यानि कौओ का भी बड़ा महत्व होता है। इन्हें यमराज का प्रतीक माना जाता है। इनसे कई प्रकार के शुभ-अशुभ संकेत जुड़े रहते हैं। श्राद्ध में कौए के लिए खासतौर पर ग्रास (भोग) निकाला जाता है। इस चीज को काकबलि कहा जाता है। ऐसा करने से हमारे पितर संतुष्ट होते हैं और हमे आशीर्वाद देते हैं।

देवादिबलि

Pitru dosh

पितरों के श्राद्ध में जानवरों के अलावा देवी देवताओं का भी एक हिस्सा निकाल जाता है। इसे देवादिबलि बलि कहा जाता है। इस भोग को अग्निदेव की सहायता से बाकी देवताओं तक भेजा जाता है। इस दौरान श्राद्ध करने वाला शख्स पूर्व दिशा में मुंंह कर गाय के गोबर से बने उपलों को जलाता है। फिर उसमें घी के साथ 5 निवाले अग्नि देवता के जरिए देवताओं तक पहुंचाता है।

पिपीलिका बलि

पितृपक्ष के श्राद्ध में एक भाग चींटी और अन्य कीड़े-मकोड़ाें के लिए भी निकाला जाता है। कहते हैं कि इससे पितरों को तृप्ति मिलती है। वे पिपीलिका बलि से खुश होते हैं। इससे आपके वंश की वृद्धि होती है। इस भोग को ऐसी जगह रखना चाहिए जहां चीटियां अधिक आती है। ताकि ये भोग उन तक अच्छे से पहुँच जाए।