यूपीए-2 में केंद्रीय गृहमंत्री रहे सुशील शिंदे ने माना कि उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस ने उन्हें भगवा आतंक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कहा था।
‘भगवा आतंकवाद’…. ये एक ऐसा शब्द था जिसने भारतीय राजनीति की रूख को मोड़ दिया।
बलिदान, त्याग और भारतीय परंपरा से संबंधित केसरिया रंग को बदनाम करने के कारण कॉन्ग्रेस बर्बादी के कगार पर पहुँच गई। राजनीति में इस शब्द के इस्तेमाल का परिणाम ये हुआ कि पिछले 10 सालों से कॉन्ग्रेस सत्ता में लौटने के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन नजदीकी भविष्य में इसकी संभावना नहीं दिख रही है।
कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे ने भी इस बात को मान लिया है कि इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। उन्होंने माना कि उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस ने इस शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद भगवा या रेड या सफेद नहीं होता। आतंकवाद… आतंकवाद होता है।
सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि उस वक्त रिकॉर्ड पर जो आया था, उन्होंने वही कहा था। ये उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस ने बताया था किभगवा आतंकवादहो रहा है। उन्होंने कहा कि उस वक्त पूछा गया था तो उस बारे में उन्होंने बोल दिया था भगवा आतंकवाद। बस इतना ही है। दरअसल, शिंदे से पहले गृहमंत्री रहने के दौरान कॉन्ग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था।
राजनीति से रिटायरमेंट ले चुके सुशील कुमार शिंदे ने कहा, “आतंकवाद शब्द लगाया, लेकिन सही बोले तो क्यों आतंकवाद शब्द लगाया मुझे पता नहीं है। लगाना नहीं चाहिए। ये गलत था। भगवा टेररिस्ट… ऐसा नहीं बोलना चाहिए। ये उस पार्टी की विचारधारा होती है। ये चाहे भगवा हो या रेड हो या सफेद हो। ऐसा कोई आतंकवाद नहीं होता है।”
दरअसल, भारत के गृहमंत्री रहते हुए सुशील कुमार शिंदे ने 20 जनवरी 2013 को जयपुर में आयोजित कॉन्ग्रेस के चिंतन शिविर के दौरान कहा था कि भाजपा और आरएसएस के कैंपों में ‘हिंदू आंतकवादियों’ को प्रशिक्षण दिया जाता है। आलोचना के बाद शिंदे ने कहा था, “ये सब इतनी बार अख़बार में आ गया है। ये कोई नई चीज़ नहीं है जो मैंने आज कही है। ये भगवा आतंकवाद की ही बात मैंने की है।”
कॉन्ग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए अपनाया ‘भगवा आतंकवाद’
दरअसल, अपने बयान के पीछे शिंदे एक कथित रिपोर्ट का हवाला दिया था। उन्होंने कहा था, “हमारे पास रिपोर्ट आ गई है। जाँच में भाजपा हो या आरएसएस के ट्रेनिंग कैंप, हिंदू आतंकवाद बढ़ाने का काम देख रहे हैं।समझौता एक्सप्रेस रेलगाड़ी का धमाका हो, मक्का मस्जिद ब्लास्ट हो या फिर मालेगाँव, हिंदू चरमपंथियों ने वहाँ जाकर बम धमाके करवाए और फिर कह दिया कि ये धमाके अल्पसंख्यकों ने करवाए।”
सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि ऐसी कोशिशों से देश को सतर्क रहना चाहिए। शिंदे के इस बयान पर कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने उन्हें मुबारकवाद दी थी। इससे पहले गृहमंत्री रहते हुए कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने साल 2010 में सबसे पहले भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था।
केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में 25 अगस्त 2010 को डीजीपी और आईजी के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा था, “मैं आपको सावधान करना चाहता हूँ कि भारत में युवा पुरुषों एवं महिलाओं को कट्टरपंथी बनाने के प्रयासों में कोई कमी नहीं आयी है। इसके अलावा हाल में ‘भगवा आतंकवाद’ सामने आया है, जो अतीत में कई बम विस्फोटों में पाया गया है..।”
भगवा आतंक शब्द का सबसे पहले उपयोग
Saffron Terrorism जिसे हिंदी में भगवा आतंकवाद कहा जाता है, का सबसे पहले उपयोग कॉन्ग्रेस के प्रति हमदर्दी रखने वाले अंग्रेजी के पत्रकार प्रवीण स्वामी ने किया था। साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान रिपोर्टिंग करते हुए प्रवीण स्वामी ने ‘Saffron Terror’ नाम के हेडलाइन से एक रिपोर्ट लिखी थी। इसमें स्वामी ने बताया था कि हिंदुओं ने मुस्लिमों पर अत्याचार किए थे।
स्वामी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, “स्कूल शिक्षक नजीर खान पठान 28 फरवरी (2002) को सुबह 9 बजे नरौरा में स्टेट ट्रांसपोर्ट वर्कशॉप के पीछे अपने घर से टहलने के लिए निकले थे। वे याद करते हैं कि नटराज होटल के सामने मुख्य चौक पर पहले से ही भीड़ जमा थी। वे सभी भगवा दुपट्टा और खाकी शॉर्ट्स पहने हुए थे। उनमें से ज़्यादातर के हाथों में तलवारें थीं।”
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने आगे लिखा, “वहाँ दो पुलिस जीप खड़ी थीं और दो सफ़ेद एंबेसडर कारें थीं, जिन पर लाल बत्ती लगी हुई थी। मैं वहाँ से लगभग 100 मीटर दूर था। वहाँ खड़े लोगों में से एक विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया थे। थोड़ी देर बाद वे चले गए और भीड़ ने गाली-गलौज वाले नारे लगाने शुरू कर दिए। हमलावरों ने हम पर पत्थर फेंके और हमने भी उसी तरह जवाब दिया।”
अपनी रिपोर्ट उन्होंने आगे लिखा, “गोलीबारी में चार मुस्लिम लोग मारे गए, जिससे पड़ोस की रक्षा करने वालों को पीछे हटना पड़ा। स्थानीय नूरानी मस्जिद को आग लगा दी गई और उसके गुंबद पर भगवा झंडा फहराया गया। फातिमा बी उन सैकड़ों लोगों में से एक थीं जिन्होंने राज्य परिवहन कर्मचारी कॉलोनी में छिपने की कोशिश की थी।…”
कॉन्ग्रेस ने लपक लिया मौका
कॉन्ग्रेस गुजरात दंगों को लेकर भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर रही है। उन्हें फँसाने के लिए तरह-तरह के जतन किए गए, लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया और कहा कि इसमें तत्कालीन गुजरात सरकार एवं वहाँ के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इसमें कोई भूमिका नहीं है। भाजपा नेता का कहना था कि इसके बावजूद कॉन्ग्रेस उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करती रही।
कॉन्ग्रेस ने अपने वोटबैंक मुस्लिमों को साधने के लिए इस शब्द को अपना लिया और इसका जमकर प्रचार किया। परिणाम ये हुआ कि कॉन्ग्रेस के खिलाफ आक्रोश बढ़ता गया। पी. चिदंबरम ने इसे खूब उछाला। उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गाँधी थी। सत्ता के गलियारे में कहा जाता था कि सोनिया गाँधी ही अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता चलाती थी।
उस समय कॉन्ग्रेस में जनार्दन द्विवेदी, सीपी जोशी, मणिशंकर अय्यर, अहमद पटेल जैसे नेता सोनिया गाँधी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल थे। कहा जाता है कि सोनिया गाँधी से इन नेताओं से सलाह लिए बिना कोई कदम नहीं उठाती थी। जिस समय भगवा आतंकवाद शब्द को राष्ट्रीय मीडिया में कॉन्ग्रेस में हवा दी गई, उस समय केंद्रीय गृहमंत्री आरके सिंह थे।
इन नेताओं ने भगवा आतंकवाद शब्द को मजबूत करने के लिए अंतिम समय तक प्रयास किया। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, मक्का मस्जिद ब्लास्ट, मालेगाँव ब्लास्ट जैसे कई आतंकवादी हमलों में हिंदुओं के नामों को आगे किया गया। मालेगाँव धमाका साल 2008 में हुआ था, लेकिन इससे काफी पहले ही कॉन्ग्रेस सरकार देश की बहुसंख्यक आबादी को विलेन बनाने के लिए काम पर लग चुकी थी।
महाराष्ट्र के मालेगाँव में 29 सितम्बर 2008 को एक मोटरसाइकिल में धमाका हुआ, जिसमें 6 लोग मारे गए। इसी मालेगाँव धमाका मामले के बाद कॉन्ग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को आगे बढ़ाना चालू कर दिया। इस मामले में कई ऐसे लोगों को पकड़ा गया जो कि हिन्दू संगठनों से जुड़े हुए थे। कई ऐसे गवाह लाए गए, जिनसे जबरदस्ती बयान दिलवाए गए।
RSS और VHP नेताओं को इस मामले में फँसाने की साजिश भी रची गई। यह अब काम तब की महाराष्ट्र ATS ने किया। मालेगाँव धमाके में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, स्वामी असीमानंद समेत कई हिन्दू व्यक्ति आरोपित बनाए गए। कर्नल पुरोहित को इस मामले में RDX देने का आरोपित बताया गया। साध्वी प्रज्ञा पर धमाके के लिए बाइक देने का आरोप लगा।
इस धमाके में आरोपित बनाए गए कई लोगों को समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में भी आरोपित बनाया गया था। इसी के बाद पूरा नैरेटिव बुना जाने लगा कि देश में हिन्दू आंतकवाद भी है। इन लोगों से मनवाफिक बयान दिलवाने के लिए इन लोगों। को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। इन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया गया।
कर्नल पुरोहित को नंगा करके पीटा गया। उनकी टाँग तोड़ी दी गई। उनसे कहा गया किमालेगाँवमामले में तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और RSS और VHP के नेताओं का नाम लें और यह बात स्वीकार कर लें कि धमाका उन्हीं ने किया था। इसके अलावा साध्वी प्रज्ञा को इतना मारा गया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में तक समस्या आ गई और उन्हें वेंटीलेटर पर भर्ती होना पड़ा। उन्हें पोर्न दिखाया गया।
इतना ही नहीं, साल 2013 में भगवा आतंकवाद को स्थापित करने के लिए 10 हिंदुओं को नाम जारी किया। NIA द्वारा जारी लिस्ट में उन लोगों के नाम जारी किए गए, जिनके तार संघ या अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े थे। इनमें सुनील जोशी, लोकेश शर्मा, संदीप डांगे, स्वामी असीमानंद, देवेंद्र गुप्ता, राजेंद्र, चंद्रशेखर लेवे, रामजी कालसांगरा, कमल चौहान, मुकेश वासानी के नाम थे।
ये सभी समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, मक्का मस्जिद ब्लास्ट, अजमेर ब्लास्ट में वांछित बताए गए थे। हालाँकि, बाद में कोर्ट ने असीमानंद को बरी कर दिया। कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को बेल दे दिया। इसके अलावा भी अधिकांश आरोपित बरी हो गए। इन मामलों में गवाह बनाए गए 17 लोग अपने बयान से मुकर गए और कहा कि उनसे जबरन गवाही दिलवाई गई थी।
इस तरह कॉन्ग्रेस ने एक नैरेटिव बुना था। इसमें सोनिया गाँधी और उनके सलाहकारों की महती भूमिका बताई जाती है। हालाँकि, धीरे-धीरे यह नैरेटिव ध्वस्त हो गया और इसका खामियाजा कॉन्ग्रेस को भुगतना पड़ा। भगवा आतंकवाद शब्द कॉन्ग्रेस की ताबूत में एक मजबूत कील साबित हुआ। इसके बाद संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का और विवादास्पद सांप्रदायिक बिल जैसे कारनामों ने कॉन्ग्रेस को गर्त में पहुँचा दिया।
इसका ये परिणाम हुआ कि साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की भारी जीत हुई और वे प्रधानमंत्री बने। इसके बाद साल 2019 और साल 2024 में भी भाजपा अपनी जीत को लगातार दोहरा कर एक इतिहास रच दिया। कॉन्ग्रेस को जब तक इसका अहसास होता, तब तक उसकी नैया डूब चुकी थी। इस तरह कॉन्ग्रेस ने अपनी अस्तित्व को मिटाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया।
आखिरकार यह कदम कितना घातक सिद्ध हुआ, यह सुशील कुमार शिंदे के बयान से सिद्ध हो गया। उनकी आवाज में इस बात का स्पष्ट दर्द है कि कॉन्ग्रेस को भगवा के साथ आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था। भगवा सिर्फ शब्द नहीं है, यह भारतीय संस्कृति का रंग है। यह बलिदान और गर्व का प्रतीक है।
कॉन्ग्रेस के दरबारी नेताओं ने इसे कलंकित करके भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का जो खेल रचा, उसमें सोनिया गाँधी जैसी असली भारत से अनजान नेत्री फँस गईं और लगभग 140 साल अपनी पुरानी पार्टी को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है।