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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति पर बेटियों का होगा इतना अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति पर बेटियों का होगा इतना अधिकार

पैतृक संपत्ति पर बेटे और बेटी के अधिकारों को लेकर हाल फिलहाल में सुप्रिम कोर्ट के कई अहम फैसले आये हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि बेटियां पिता की स्व-अर्जित संपत्ति की हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि बिना वसीयत या निर्वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की संपत्ति की वारिस होंगी। ऐसे मामलों में, बेटियों को परिवार के अन्य सदस्यों जैसे पिता के भाई-बहनों के बेटे और बेटियों पर प्राथमिकता दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति पर बेटियों का होगा इतना अधिकार

सुप्रीम कोर्ट में पिता की संपत्ति को लेकर मामला चलता रहता है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर बड़ा फैसला सुनाया है, जिसमे बताया गया है कि अगर किसी जमीन के मालिक की मृत्यु वसीयत लिखने से पहले हो जाती है तब उनके बेटे और बेटियों को कितनी संपत्ति दी जाएगी।

निर्वसीयत संपत्ति पर बेटियों को मिलेगा अधिकार

अदालत ने कहा, “यदि निर्वसीयत मरने वाले पुरुष हिंदू की संपत्ति (बिना वसीयत के) एक स्व-अर्जित संपत्ति है या एक कोपार्सनरी या पारिवारिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त की गई है, तो वही विरासत द्वारा न्यायगत होगी, न कि उत्तरजीविता द्वारा, और ऐसे पुरुष हिंदू की बेटी अन्य संपार्श्विक (जैसे मृत पिता के भाइयों के बेटे/बेटियों) की तुलना में ऐसी संपत्ति को प्राप्त करने की हकदार होंगी।”

यह फैसला 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) पर प्रकाश डालता है। 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को सितंबर 2005 में संशोधित किया गया था, जिसके बाद महिलाओं को संपत्ति का संयुक्त धारक या सहदायिक माना गया।

इस केस में सुनाया गया फैसला

खबरों के अनुसार, इस मामले में मारप्पा गौंडर, एक हिंदू पुरुष के पास स्वयं अर्जित संपत्ति थी। उनकी एक बेटी कुपायी अम्मल थी। कुपायी अम्मल की मृत्यु के बाद, मरप्पा गौंडर के छोटे भाई, रामासामी गौंडर के पांच उत्तराधिकारियों द्वारा संपत्ति का अधिग्रहण किया गया था। पांच उत्तराधिकारियों में से एक थंगम्मल ने संपत्ति के बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया था।

अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार, रामासामी गौंडर की बेटी, अपने पिता की श्रेणी-1 वारिस होने के नाते, उत्तराधिकारी भी होगी और मुकदमे की संपत्तियों में हिस्से की हकदार होगी। यह अधिनियम के प्रावधान पर भी प्रकाश डालता है जहां एक हिंदू महिला की विरासत में बिना वसीयत के मरने वाली संपत्ति वापस स्रोत में चली जाती है।

अदालत ने कहा “यदि कोई हिंदू महिला बिना कोई संतान छोड़े निर्वसीयत मर जाती है, तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी, जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को जाएगी।” जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और कृष्ण मुरारी की एससी बेंच ने कहा कि पिता की मृत्यु के बाद, संपत्ति विरासत से प्राप्त होगी न कि उत्तरजीविता से।

अदालत ने कहा “इस अधिनियम की मुख्य योजना संपत्ति के अधिकारों के संबंध में पुरुष और महिला के बीच पूर्ण समानता स्थापित करना है और सीमित संपत्ति की सभी धारणाओं को पूरी तरह से समाप्त करते हुए महिला के अधिकारों को पूर्ण घोषित किया गया। इस अधिनियम ने हिंदुओं के बीच उत्तराधिकार के कानून में बदलाव लाया और अधिकार दिए जो उस समय तक महिलाओं की संपत्ति के संबंध में अज्ञात थे”।

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