नई दिल्ली: हरियाणा चुनाव का डंका बज चुका है. इस सियासी अखाड़े में जीत के लिए तमाम दांव-पेंच लगाए जा रहे हैं. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल यानी 14 सितंबर को कुरुक्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए चुनाव प्रचार अभियान का शंखनाद कर दिया है. यह शंखनाद इसलिए भी जरूरी था क्योंकि हरियाणा में BJP उम्मीदवारों की सूची जारी होने के साथ ही बगावत और इस्तीफे सामने आए हैं. सवाल है कि हरियाणा चुनाव में BJP के लिए जीत क्यों जरूरी है.
दरअसल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को डर है कि हरियाणा में हार के दूरगामी परिणाम होंगे. लोकसभा के नतीजों के तुरंत बाद विपक्ष की ताकत में इजाफा होने के अलावा, इसका मतलब संसाधनों और किसान समुदाय के लिए बड़े संदेश दोनों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण राज्य का नुकसान होगा. ऐसे में इस बात पर फोकस किया जा रहा है कि हरियाणा में किसी तरह चुनाव जीता जाए.
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BJP के लिए जीत क्यों जरूरी
रिपोर्ट के अनुसार पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि “दांव बहुत ऊंचे हैं”, उन्होंने बताया कि हरियाणा के नियंत्रण में होने से भाजपा किसान विरोध प्रदर्शनों से कुछ हद तक बच सकती है. हरियाणा में हार का मतलब पंजाब, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के बाद विपक्ष के पास जाने वाला एक और राज्य होगा. जहां विरोध प्रदर्शनों को सबसे ज्यादा समर्थन मिला है. हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक और ऐसे ही राज्य उत्तर प्रदेश में झटका लगा है.
BJP को क्यों है टेंशन?
वरिष्ठ नेता ने कहा, “पंजाब और हरियाणा के प्रदर्शनकारियों को राजधानी दिल्ली में एंट्री करने से पहले बॉर्डर पर रोका गया. किसान आंदोलन के चरम पर, हरियाणा में भाजपा की सरकार होने के कारण इसे राष्ट्रीय विरोध बनने से रोका जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हरियाणा को खोने का नतीजा यह होगा कि विपक्ष द्वारा जुटाए गए इस तरह के विरोध और आंदोलन बिना किसी रोक-टोक के दिल्ली पहुंच सकते हैं.”
हारे तो क्या होगा?
हरियाणा के हाथ से निकलने का एक और पहलू गुरुग्राम है, जो उत्तर प्रदेश के नोएडा के साथ-साथ उत्तर भारत में निवेश और रियल एस्टेट के लिए सबसे तेजी से विकसित होने वाला क्षेत्र है. ऐसे अन्य दो केंद्र, हैदराबाद और बेंगलुरु पहले से ही कांग्रेस शासित राज्यों में हैं. नेता ने कहा, “अगर गुरुग्राम भी विपक्ष के पास चला जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि लगभग सभी तेजी से बढ़ते महानगर विपक्ष के पास होंगे.” भाजपा को नुकसान पहुंचने से ज्यादा इसका मतलब कांग्रेस को मिलने वाले चंदे में भारी वृद्धि हो सकती है. क्योंकि विपक्षी पार्टी संसाधनों की भारी कमी से जूझ रही है, वह एक-एक करके राज्यों और केंद्र में सत्ता खो चुकी है.