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बस्तर में एक गांव है जिसका नाम है नागफनी। इसी गांव में एक मंदिर है जिसे 11 वीं सदी के आसपास बनाया गया था गांव का नाम नागफनी होने के कारण इस मंदिर का नाम भी नागफनी मंदिर ही है। ये मंदिर बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस प्रचानी मंदिर (Nagfani mandir) के अंदर शेष नाग और नागिन के जोड़े की काफी पुरानी मूर्ति मौजूद है। नाग नागिन की मूर्ति के अलावा यहां पर और भी कई देवताओं की काफी पुरानी पुरानी मूर्तियां रखी गई हैं। हर साल नागपंचमी के दिन यहां पर एक भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और नाग देवता का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।
नागफनी गांव के जंगल में मवेशी चराने पर है प्रतिबंध
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पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यता के अनुसार नागफनी गांव के जंगलों में पहले के समय में वासुकी, तक्षक, शंख, कुलिक, पदम, महापदम जैसे कई नाग पाए जाते थे। साथ ही यहां पर सुमेधा, सुप्रधा, दिधिप्रिया, श्वेतमुखी, सुनेत्रा, सुगंधि, पद्मा जैसे नामों की नागिनों का वास रहा है। सदियों पहले नागवंशी राजाओं ने इसी गांव में एक मंदिर (Nagfani mandir) की स्थापना की थी। आज इस गांव की खासियत ये है कि यहां के जंगलों में मवेशियों का चराने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। बताया जाता है कि इस जंगल में काफी दुलर्भ प्रजाती के विषैले सांप पाए जाते हैं जो मवेशियों को सिर्फ एक ही डंक से बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मुग्लों ने तोड़ा था ये मंदिर
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कई स्थानीय लोगों की मानें तो ये मंदिर काफी (Nagfani mandir) पुराना है, सबसे पहले यहां पर नागवंशी राजाओं ने ही राज किया था , मुगल शासन में नागवंशी राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर को तोड़ दिया गया। हालांकि लोगों ने चालाकी दिखाते हुए मंदिर की मूर्तियों को खंडित होने से बचा लिया और उन्हें जमीन के अंदर गाड़ दिया। 1980 के आसापास भक्तों ने इन मूर्तियों को जमीन से निकाला और उन्हें मंदिर में स्थापित कर दिया गया।