प्लेन में सफर के दौरान कानों में होता है दर्द? जानें इसका कारण व इसे दूर करने के उपाय

कई लोगों को प्लेन में यात्रा के दौरान कान में दर्द होने लग जाती है। हवा का दबाव ज्‍यादा होने के कारण टेक ऑफ या लैंड‍िंग के दौरान ये समस्या होती है। कई लोगों को कानों में भारीपन भी महसूस होता है। जबकि कुछ लोगों का कान बंद हो जाता है। प्‍लेन में यात्रा करते समय अगर आपको भी यहीं परेशानी होती है। तो इस लेख को जरूर पढ़ें। क्योंकि आज हम आपको इस दर्द से बचने के उपाय बताने जा रहा हैं।

कान में दर्द क्‍यों होता है?दर्द दूर करने के उपाय-प्‍याजअदरक का रससिकाई करेंकरें ये उपाय नहीं होगी कानों में दर्द

कान में दर्द क्‍यों होता है?

हवाई यात्रा के दौरान कान में दर्द व भारीपन महसूस होने की श‍िकायत कई लोगों को हो जाती है। डॉक्टरों के अनुसार हवा का दबाव ऊंचाई पर कम होने के कारण कान में दर्द उठता है। हवा के दबाव से ईयरड्रम स्‍ट्रेच होते हैं। ज‍िससे दर्द होने लग जाता है। हालांकि प्लेन से उतरने के बाद ये दर्द अपने आप सही भी हो जाता है। हालांकि यात्रा के 24 घंटे के बाद भी कान का दर्द ठीक न हो तो डॉक्‍टर से जरूर संपर्क करें। क्योंकि ये समस्या आगे जाकर गंभीर बन सकती है। इसके अलावा आप चाहे तो नीचे बताए गए उपायों को भी आजमा सकते हैं। इन घरेलू उपायों की मदद से भी कान की दर्द दूर हो जाती है।

दर्द दूर करने के उपाय-

प्‍याज

प्याज के इस्‍तेमाल से कान में होने वाले दर्द को दूर किया जा सकता है। यात्रा करने के बाद कान में अगर अधिक दर्द हो। तो आप एक प्‍याज को लेकर उसके दो टुकड़े कर ले। एक पैन में तेल डालकर उसके अंदर प्‍याज का टुकड़ा डाल दें। इसे गर्म करें। कुछ देर बाद गैस को बंद कर दें। फिर प्‍याज को साफ कॉटन के कपड़े में लपेटें और कपड़े को कान पर रखें। 10 से 15 म‍िनट तक इसे रखे रहने दें।ये उपाय करने से काम का दर्द सही हो जाएगा।

अदरक का रस

कानों का दर्द दूर करने के लिए अदरक के रस का इस्‍तेमाल करें। अदरक के रस को कानों में डालने से ये दर्द दूर हो जाता है। थोड़ा का अदरक का रस निकाल लें। फिर इसमें ऑल‍िव ऑयल मिला दें। इस म‍िश्रण को कॉटन की मदद से कान में डाल लें।  कानों का दर्द दूर हो जाएगा।

सिकाई करें

गर्म पानी में एक कपड़े को डूबा दें। फिर इसे न‍िचोड़कर सारा पानी न‍िकाल लें। इसके बाद ये कपड़ा दर्द वाले कान पर कुछ देर के लिए रखें और इससे सिकाई करें। इसके अलावा आप चाहें तो नमक से भी कानों की सिकाई कर सकते हैं। नमक को गर्म करके एक थैली में भर लें। फिर इससे कान के ऊपर रखकर सिकाई करें। कान की सिकाई करने से आराम मिलता है और दर्द सही हो जाती है।

करें ये उपाय नहीं होगी कानों में दर्द

हवाई यात्रा के दौरान कान में दर्द न हो इसके लिए आप नीचे बताए गए उपायों को करें। इन उपायों को करने से कान में दर्द नहीं होती है।

  • सफर के दौरान पानी, ब्‍लैक कॉफी, हर्बल टी, ग्रीन टी, नार‍ियल पानी, ताजा जूस, नींबू पानी आद‍ि का सेवन करें। इन चीजों को पीने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है और कान के दर्द से बचाव होता है।
  • सफर करते हुए कानों में रूई डालकर रखें। कान में दर्द व भारीपन की शिकायत नहीं होगी।
  • लैंड‍िंग के समय च्‍व‍िंगम या टॉफी चबाने से कान के बीच वाले ह‍िस्‍से में स्‍थ‍ित युस्‍टेक‍ियन ट्यूब खुली रहती है। ज‍िससे कान में दर्द नहीं होती है।

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उम्मीद है कि आप सभी ने अपने दादी-नानी से यह बात तो जरूर सुनी होगी कि पुराने समय में लोग खाना पकाने और परोसने के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन समय बदलने के साथ यह परंपरा भी कहीं खो सी गई। जी हां रसोई में रखे मिट्टी के बर्तनों की जगह आज स्टील और एल्युमीनियम के बर्तनों ने ले ली है। लेकिन क्या आप जानते हैं मिट्टी के बर्तनों में पकाया और खाया जाने वाला भोजन सेहत के लिहाज से काफ़ी अच्छा होता है। नहीं जानते तो आइए हम बताते हैं कि मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने के और खाने के क्या हैं फ़ायदे…

बता दें कि मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से खाने में आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा खूब पाई जाती है, जो शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है। इतना ही नहीं मिट्टी के बर्तनों में होने वाले छोटे छोटे छिद्र आग और नमी को बराबर सर्कुलेट करते हैं।

इससे खाने के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं और मिट्टी के बने बर्तनों में कम तेल का इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से मिट्टी के बने बर्तनों में खाना स्वादिष्ट बनता है। इन बर्तनों में भोजन पकाने से पौष्टिकता के साथ-साथ भोजन का स्वाद भी बढ़ जाता है। अपच और गैस की समस्या दूर होती है, साथ ही साथ कब्ज की समस्या से भी निज़ात मिलती है।

गौरतलब हो कि एल्यूमीनियम, आयरन के बर्तन में खाना बनाने के दौरान खाना कई बार जल जाता है साथ ही जरूरत से ज्यादा पक भी जाता है। जो बेशक पचने में भले ही आसान है लेकिन स्वाद और न्यूट्रिशन में शून्य हो जाता है। लेकिन मिट्टी के बर्तन में खाना धीमी आंच पर सही तरीके से पकता है।

खाना बनाने के लिए पीतल, कांसा के बर्तन का इस्तेमाल करते हैं तो इसमें भोजन के ज्यादातर न्यूट्रिशन समाप्त हो जाते हैं वहीं अब अगर इनकी जगह मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करेंगे तो भोजन के ज्यादातर न्यूट्रिशन उसमें बने रहते हैं। जो हमारी सेहत के लिए जरूरी हैं।

वहीं नॉन स्टिक को छोड़कर बाकी स्टील, आयरन और एल्यूमिनियम के बर्तनों में खाना पकाने के दौरान तेल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है जिससे खाना और मसाले तली से चिपके नहीं, वहीं मिट्टी के बर्तनों में ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि खाना बर्तन में चिपकता ही नहीं। तेल, मसाले का कम इस्तेमाल सेहत के लिए कितना फायदेमंद होता है इससे तो आप भलीभाँति वाकिफ होंगे ही।

वैसे तो खाना गर्म कर ही खाने की सलाह दी जाती है लेकिन बार-बार गर्म करने से खाने के स्वाद में भी फर्क आने लगता है। लेकिन अगर आप मिट्टी के बर्तन में खाना बनाते हैं तो भोजन ज्यादा समय तक गर्म बना रहता है।

कुल्हड़ की चाय हो या फिर हांडी बिरयानी, इसके स्वाद से तो आप वाकिफ होंगे ही। गांवों में तो आज भी ज्यादातर घरों में मिट्टी के बर्तनों में ही खाना पकाया व खाया जाता है इसलिए वहां के स्वाद में बहुत ज्यादा अंतर होता है। तो स्वाद और सुगंध को बरकरार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाएं।

इसके अलावा भी मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने के कई लाभ हैं। जिनमें से एक लाभ यह है कि मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से भोजन का पीएच वैल्यू मेंटेन रहता है और इससे कई बीमारियों से बचाव होता है।

कैसे हो मिट्टी के बर्तनों का खाना बनाने में इस्तेमाल…

बता दें कि सबसे पहले मिट्टी का बर्तन बाजार से घर खरीदकर लाने के बाद उस पर खाने वाला तेल जैसे सरसों का तेल, रिफाइंड आदि लगाकर बर्तन में तीन चौथाई पानी भरकर रख दें। इसके बाद बर्तन को धीमी आंच पर रखकर ढककर रख दें। 2-3 घंटे पकने के बाद इसे उतार लें और ठंडा होने दें। इससे मिट्टी का बर्तन सख्त और मजबूत हो जाएगा। साथ ही इससे बर्तन में कोई रिसाव भी नहीं होगा और मिट्टी की गंध भी चली जाएगी। बर्तन में खाना बनाने से पहले उसे पानी में डुबोकर 15-20 मिनट के लिए रख दें। उसके बाद गीले बर्तन को सुखाकर उसमें भोजन पकाएं और स्वाद का मस्त आनंद लें। आशा करते हैं यह स्वास्थ्यवर्धक कहानी आपको जरूर पसंद आएगी।

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