Divorce Case : पत्नी को तलाक की शर्त नहीं मानना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने कहा इंसाफ के लिए ये जरूरी

Divorce Case : पत्नी को तलाक की शर्त नहीं मानना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने कहा इंसाफ के लिए ये जरूरी

Himachali Khabar, Digital Desk- (Delhi High Court) एक महिला को दिल्ली हाईकोर्ट ने अदालत की अवमानना के लिए एक महीने की कैद की सजा सुनाई। महिला अपने पति के साथ वन टाइम तलाक के लिए किए गए समझौते की शर्तों से मुकर गई थी। हालांकि न्यायालय ने एक महिला के लिए आदेश निलंबित किया, जिससे उसे अवमानना से बचने का अवसर मिला। यदि वह कदम नहीं उठाती, तो उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (Registrar of the High Court) जनरल को उसे हिरासत में लेने का निर्देश दिया गया। इसके बाद, महिला को एक महीने की साधारण कारावास की सजा के लिए तिहाड़ जेल भेजा जा सकता था।

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नहीं किया जा सकता है बर्दाशत-

ऐसा असाधारण आदेश देने के लिए विवश हुईं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने अपने फैसले में कहा- समझौते से पीछे हटने संबंधी पत्नी के आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। यदि प्रतिवादी को समझौता नहीं मानने की छूट दी गई तो न्यायिक प्रणाली और न्यायालय (court) के आदेशों से लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा। बता दें कि छवि अग्रवाल नाम की महिला ने 2015 में अनुराग गोयल से शादी की थी लेकिन स्वभावगत मतभेदों के कारण अप्रैल 2017 से दोनों अलग-अलग रहने लगे थे।

इस प्रक्रिया में पति-पत्नी (Husband wife case) ने एक-दूसरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दिल्ली और मुंबई में लगभग 20 आपराधिक मामलों सहित कई कानूनी वाद दायर किए। अंततः उनका संबंध तलाक (divorce) की ओर बढ़ा। इस स्थिति में, उन्होंने फैमिली कोर्ट (family court) में मध्यस्थता का विकल्प चुना, जहां दोनों पक्षों के बीच समझौते की शर्तें तय की गईं।

इस बात पर सहमति बनी कि पति अपनी शादी को खत्म करने और दोनों पक्षों के बीच सभी लंबित मुकदमों को समाप्त करने के लिए एकमुश्त समझौते (lump sum settlement) के रूप में बॉम्बे में पत्नी को कई करोड़ रुपये की संपत्ति उपहार में देगा। समझौते में कुछ सहायक मुद्दों का भी निपटारा हुआ। पत्नी उस सोसायटी को, जहां घर स्थित है, 13.48 लाख रुपये से अधिक के रखरखाव शुल्क का भुगतान करने पर सहमत हुई। 

सितंबर 2022 में दोनों पक्षों की ओर से समझौते की पुष्टि की गई। एक संयुक्त बयान दायर किया गया। इसमें शर्तों का पालन करने के लिए पत्नी की ओर से भी एक हलफनामा दायर (affidavit filed) किया गया। समझौते में उल्लेख था कि यदि दोनों में से कोई भी समझौते की शर्तों को मानने से इनकार करता है तब उसके खिलाफ अदालत की अवमानना (contempt of court) ​​अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। 

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दो महीने के भीतर, पति को पत्नी से एक मेल प्राप्त हुआ। इसमें पत्नी ने फ्लैट के लिए गिफ्ट डीड को मंजूरी देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह दस्तावेजों को सत्यापित करने पर जोर दे रही थी। वह मांग कर रही थी कि पति की ओर से भुगतान किया जाने वाला भरण-पोषण शुल्क (maintenace fees) बाद में गिफ्ट डीड निष्पादित (Gift deed executed) करते समय प्रतिपूर्ति किया जाए। इससे पूरा समझौता बेकार हो गया क्योंकि गिफ्ट डीड को अंतिम रूप देने के 10 दिन बाद, पार्टियों के बीच आपराधिक मामले वापस लेने थे। 

हाईकोर्ट का खटखटाया दरवाजा-

पत्नी ने भी पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामलों की पैरवी शुरू कर दी। आखिरकार पति ने पिछले साल नवंबर में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) का दरवाजा खटखटाया और अवमानना ​​याचिका दाखिल कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को इस पर कोई पछतावा नहीं था। उसने खुले तौर पर अदालत से कहा कि वह समझौते की शर्तों से बंधी नहीं है। 

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी पत्नी जानबूझकर समझौते का उल्लंघन कर रही है। अदालत ने कंटेप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट (The court invoked the Contempt of Court Act) 1971 के सेक्शन 2 (बी) के तहत उसे नागरिक अवमानना का दोषी माना। इसके परिणामस्वरूप, अदालत ने पत्नी पर 2000 रुपये का जुर्माना (fine) लगाया। यदि वह इस जुर्माने का भुगतान नहीं करती, तो उसे 15 दिन की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी। यह निर्णय पत्नी की अनियंत्रित कार्रवाई पर एक स्पष्ट संदेश है।

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