supreme court decision : पिता की प्रोपर्टी में बेटियों के हक पर सुप्रीम कोर्ट का 51 पन्नों का फैसला, संपत्ति में मिलेगा इतना हिस्सा

supreme court decision : पिता की प्रोपर्टी में बेटियों के हक पर सुप्रीम कोर्ट का 51 पन्नों का फैसला, संपत्ति में मिलेगा इतना हिस्सा

Himachali Khabar (supreme court on daughter property right) : सुप्रीम कोर्ट के फैसले अन्य अदालतों के लिए नजीर बनते हैं। सुप्रीम कोर्ट  के फैसलों से तय कानून की सही व्याख्या हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) के समय समय पर प्रोपर्टी विवाद में भी फैसले आते रहते हैं। ऐसा ही एक फैसला बेटी के प्रोपर्टी से जुड़े अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट सुना चुका है। जिससे बेटी के प्रोपर्टी अधिकार (supreme court property rights) स्पष्ट हो गए हैं।

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प्रोपर्टी विवादों में हुई बढ़ौतरी

अदालतों में प्रोपर्टी का विवाद (property dispute) जाना आज के समय में आम हो गया है। अदालतों में प्रोपर्टी के विवाद को लेकर लगातार मामले बढ़ रहे हैं। वहीं, प्रोपर्टी के केस (Property cases) सालों साल चलते हैं। कहीं, माता-पिता और संतान का केस चल रहा है तो कहीं, भाई-भाई तो कहीं, भाई बहन का। 

 

बेटों को मिलता था पहले अधिकार

पहले होता था कि माता पिता की संपत्ति (Property) बेटों को ही मिलती थी, लेकिन आज के समय में कानून बदल चुका है। आम तौर देखने को मिलता है कि बहन भाई के नाम ही प्रोपर्टी करा देती है। वह संपत्ति (property rights) पर अपना अधिकार जताती ही नहीं है। भाई बहन अपने रिश्ते में सामाजिक परंपराओं को तरजीह देते हैं। जिससे उनका रिश्ता अच्छा भी चलता रहता है। 

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प्रोपर्टी में बेटों के बराबर बेटियों को अधिकार

पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकार के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। यह समाज के लिए बहुत जरूरी फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी परिवार में पिता की मौत बिना वसीयत लिखे हो जाती है तो उसकी संपत्ति (Property) पर बेटियों और बेटों का समान अधिकार है। दोनों में संपत्ति का बंटवारा होगा। 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से स्टपष्ट हुआ है कि अगर संयुक्त परिवार में किसी की मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति में भाईयों के बेटों की बजाय बेटी को प्राथमिकता के आधार से दिया जाएगा। यह व्यवस्था हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 (Hindu Succession Act 1956) के लागू होने से पहले किए गए संपत्ति के बंटवांरे पर भी लागू होगी। 

 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया 51 पन्ने का फैसला

तमिलनाडु की एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) में याचिका लगाई थी। इसका सुप्रीम कोर्ट ने निपटारा कर दिया है। जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बैंच याचिका निपटारा करते हुए 51 पन्नों का फैसला सुनाया है। 

 

पहले था ये कानून

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में पहले परिवार में बेटों को तरजीह दी जाती थी। वहीं, बेटी को बेटों की ओर से संपत्ति (Property rights) चुनने के बाद ही हिस्सा मिलता था। बाद में इस कानून में बदलाव किए गए हैं, जिससे बेटियों को अधिकार मिला है। 

इस कानून में बेटी को घर में रहने का अधिकार था, अगर वह अविवाहिता है, विधवा है या पति छोड़ दिया है तो उसको घर में रहने का अधिकार इस कानून में पहले भी था। वहीं, ससुराल में विवाहित महिला को ससुर की प्रोपर्टी (father-in-law’s property) में अधिकार नहीं मिलता है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में 2005 में संसोधन (daughter’s property rights) किया गया था। इसको बेटियों के हित में बदला गया था। इसके तहत बेटियों को संपत्ति का अधिकार बेटों के बराबर दिया गया। वो पिता की संपत्ति में समान अधिकारी हो गईं। 

 

2020 में फिर हुआ संसोधन

हालांकि उस दौरान 2005 में कानून में दिया गया कि बेटी का पिता कानून में संशोधन से पहले जीवित हो तब ही बेटी को आगे चलकर संपत्ति में अधिकार मिलेगा। पिता की मौत संसोधन से पहले हुई है तो संपत्ति में हक नहीं मिल पाएगा। इस कानून को 2020 में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने फिर से बदला। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिता की मौत 9 सितंबर 2005 (कानून के संसोधन की तारीख) से पहले भी हुई है तो भी बेटी का अपने पिता की संपत्ति में हक मिलेगा।

पिता की स्वअर्जित प्रोपर्टी पर बेटा बेटी का कितना हक

किसी की संतान होने पर यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि हम उसकी संपत्ति (property) के भी अधिकारी हो गए। अगर पिता ने अपने आप से संपत्ति को अर्जित (self acquired property) किया है तो वह अपनी मर्जी से संपत्ति का बंटवारा कर सकता है। वह अपने बेटों में भी संपत्ति को वितरित कर सकता है। चाहे तो बेटी को सारी संपत्ति भी दे सकता है। अगर पिता की मौत बिना बंटवारा किए हो जाए तो सभी संतान संपत्ति की समान अधिकारी होंगी। 

सुप्रीम कोर्ट  ने पलटा मद्रास हाईकोर्ट का फैसला

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे मामले के अनुसार एक बेटी के पिता की मौत 1949 में हुई थी। उनके पिता ने अपनी संपत्ति की कोई वसीयत (property will) नहीं की हुई थी। उनके पिता संयुक्त परिवार में रहते थे। इसी के चलते मद्रास हाई कोर्ट उनकी संपत्ति को उनके भाई के बेटों को अधिकार दिया था। 
वहीं, सुप्रीम कोर्ट (supreme court judgement) ने फैसले को पलटते हुए पिता की इकलौती बेटी के पक्ष में 51 पन्नों का फैसला दिया है। बेटी के वारिस इस संपत्ति के विवाद के मुकदमे को बेटी के वारिसों ने जारी रखा।

 

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