
नागा साधु.
संगम नगरी प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ से एक बार फिर सुर्खियों में छाए नागा साधुओं के बारे में कई ऐसी जानकारियां हैं, जो कि बेहद चौंकाने वाली हैं. लंबे-लंबी जटाओं वाले नागा साधु महीनों और सालों तक तप में ऐसे डूब जाते हैं कि नहाते तक नहीं. बाल लंबे होते जाते हैं. पानी न लगने से जटाएं काफी मोटी हो जाती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधु अपने केश क्यों नहीं काटते. क्यों जटाएं बनने के लिए छोड़ देते हैं?
दरअसल, बाल न कटाना इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने सांसारिक बंधनों, इच्छाओं और भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग दिया है. यह उनकी साधना और तपस्या का हिस्सा है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, बालों को बढ़ने देना और जटाएं बनाना आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करने में सहायक होता है. इसे ध्यान और योग में लाभकारी माना जाता है.
बाल और दाढ़ी को बढ़ने देना उनके प्रकृति से जुड़ाव और जीवन की सरलता का प्रतीक है. नागा साधु अपने बालों को जटाओं (मैले और उलझे हुए बालों) में रखते हैं. यह शिव के प्रति उनकी भक्ति और साधना का संकेत है, क्योंकि भगवान शिव को ‘जटाधारी’ कहा जाता है. भगवान शिव की भी लंबी-लंबी जटाएं होती हैं. नागा साधु भगवान शिव की आराधना करते हैं, इसलिए माना ये भी जाता है कि वो भगवान शिव को प्रसन्न रखने के लिए ऐसा करते हैं.
कुछ नागा साधुओं का कहना है कि अगर वो बाल कटवाते हैं तो भगवान उनसे नाराज हो जाते हैं. इससे उनकी भक्ति अधूरी रह जाती है. जो भी तपस्या उन्होंने की होती है उसका उन्हें फल नहीं मिलता. इसलिए नागा कभी भी अपने केश नहीं कटवाते.
नागा साधु बनने के तीन चरण
नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिनाई से भरी होती है. साधकों को पंथ में शामिल होने के लिए तकरीबन 6 साल का समय लगता है. नागा साधु बनने के लिए साधकों को तीन स्टेज से होकर गुजरना पड़ता है. जिनमें से पहला महापुरुष, दूसरा अवधूत और तीसरा दिगंबर होता है. अंतिम संकल्प लेने तक नागा साधु बनने वाले नए सदस्य केवल लंगोट पहने रहते हैं. कुंभ मेले अंतिम संकल्प दिलाने के बाद वे लंगोट का त्याग कर जीवन भर दिगंबर रहते हैं. नागा साधु जब बनते हैं तो पहली बार उनके बाल काटे जाते हैं. उनका मुंडन होता है. इसके बाद वो ताउम्र बिना बाल कटवाए रहते हैं.
चार प्रकार के नागा साधु
प्रयाग में होने वाले कुंभ से दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं. उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है. इनका स्वभाव काफी उग्र होता है. हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते है, ये शांत स्वभाव के होते हैं. नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को खिचड़ी नागा कहलाते हैं. इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है.