Supreme Court Decision : क्या प्रोपर्टी पर कब्जा करने वाला बन सकता है उसका मालिक, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

Supreme Court Decision : क्या प्रोपर्टी पर कब्जा करने वाला बन सकता है उसका मालिक, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

Himachali Khabar (Supreme Court on property possession) : प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे की खबरें आए दिन सामने आती हैं। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या कब्जाधारी इस संपत्ति का मालिक बन सकता है। एक ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वूपर्ण फैसला सुनाते हुए यह साफ किया है कि प्रॉपर्टी पर कब्जा (Property Possession) करने वाला व्यक्ति उसका मलिक नहीं बन सकता है।

 

चाहे उसका कब्जा 12 साल से ज्यादा समय से क्यों ना हो। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति का मालिक कब्जाधारी से उसे बलपूर्वक अपनी प्रॉपर्टी (Property News) को खाली करवा सकता है। कब्जाधारी से निपटने के लिए वह कानून की भी मदद ले सकता है। 

 

कोर्ट ने कहा कि ऐसे कब्जेधारी को संपत्ति से बेदखल करने के लिए कोर्ट की आवश्कता नहीं है। दरअसल, कोर्ट (Court Decision) कार्यवाही की जरूरत तब होती है जब किसी व्यक्ति के नाम प्रॉपर्टी नहीं होती है और वह उस संपत्ति पर कब्जा जमा लेता है और वह उस संपत्ति का असली मालिक होने का दावा करता है। ऐसी स्थिति में कोर्ट जाना होगा। 

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कोर्ट पीठ ने कही बड़ी बात

 

जस्टिस एनवी रमणा और एमएम शांतनागौडर की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि अगर कोई व्यक्ति प्रॉपर्टी पर कब्जा (Property Possession) कर लेता है तो उसे डॉक्यूमेंट के साथ साबित करना होगा कि वह उसका मालिक है लेकिन यदि वह कभी कब्जा छोड़ देता है कभी कब्जा कर लेता या दूर से अपने कब्जे में रखता है तो ऐसी स्थिति में कानून उस संपत्ति के वास्तविक मालिक के खिलाफ अधिकार नहीं देता है। 

कोर्ट ने कहा कि कब्जेधारी का प्रॉपर्टी (Property News) पर प्रभावी कब्जा होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि किसी प्रॉपर्टी पर काफी लंबे समय से कब्जा हो और इस कब्जे के खिलाफ वास्तविक मालिक ने कोई कार्रवाई ना की हो। ऐसे में वह उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है। लेकिन वास्तविक मालिक को कब्जा लेने से कब्जाधारी नहीं रोक सकता है। 

12 साल तक कब्जा रहन पर भी नहीं मिलेगा मालिकाना हक

पीठ ने कहा कि अगर प्रॉपर्टी पर कुछ समय के लिए कब्जा कर लेता है तो ऐसे में उस संपत्ति का वास्तविक मालिक कब्जाधारी को बलपूर्वक भगा सकता है। कोर्ट ने कब्जेदार का यह तर्क भी नकार दिया कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 (Limitation Act, 1963) की धारा 64 के तहत मालिक ने कब्जे के खिलाफ 12 साल में कभी भी कोई मुकदमा या शिकायत दर्ज नहीं करवाई है। कोर्ट ने कहा कि यह समय सीमा प्रभावी / सेटल्ड कब्जे (Property Settled Possession) के मामले में ही लागू होती है और कभी कभार किए गए कब्जे के मामले पर यह नियम लागू नहीं होता है। 
 

जानिये क्या है पूरा मामला

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प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे (Illegal occupation of property) का यह मामला बाड़मेर का है। जहां पूनाराम ने जागीरदार से सन् 1966 में प्रॉपर्टी खरीदी थी जो एक से अधिक जगहों पर थी। जब प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक के लिए याचिका दर्ज करवाई गई तो उस संपत्ति पर मोतीराम का कब्जा मिला। लेकिन मोतीराम प्रॉपर्टी का मालिक होने का कोई डॉक्यूमेंट (property document) पेश नहीं कर पाया।

जिसके चलते ट्रायल कोर्ट ने प्रॉपर्टी पर घर बनाने के लिए पास किए गए नक्शे के अधार पर मोतीराम को सन् 1972 में बेदखल करने का निर्देश दिया। मोतीराम ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जहां राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने मोतीराम यानी कब्जाधारी के हक में फैसला दिया। इसके बाद संपत्ति का वास्तविक मालिक इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। 
 

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