
सिंहासन पाने के लिए शाहजहां ने साल 1622 ईस्वी में विद्रोह कर दिया पर असफल रहा.
ताजमहल का निर्माण कराने वाले मुगल बादशाह शाहजहां का पूरा नाम मिर्जा साहबउद्दीन बेग मुहम्मन खान खुर्रम था. जहांगीर के उत्तराधिकारी शाहजहां को वैभवविलास के साथ ही न्याय के लिए भी जाना जाता है. 5 जनवरी 1592 ईस्वी को लाहौर में जन्मे शाहजहां का निधन 22 जनवरी 1666 को आगरा में हुआ था. आइए जान लेते हैं कि शाहजादा खुर्रम को शाहजहां नाम किसने दिया था और उसने कितनी जंग लड़ीं?
जहांगीर के पुत्र शाहजहां के बचपन का नाम खुर्रम था. बचपन से ही वह तेज बुद्धि का मालिक था. साहस और अपने शौक के लिए भी जाना जाता था. साल 1606 ईस्वी में मुगल बादशाह जहांगीर ने छोटे बेटे खुर्रम को 8000 जात और 5000 सवार का मनसब सौंपा. साल 1614 ईस्वी में मुगल सेना ने खुर्रम की अगुवाई में मेवाड़ पर जीत हासिल की, तो उसकी धाक जम गई. साल 1616 ईस्वी में जहांगीर ने खुर्रम को दक्षिण में अभियान पर भेजा. इसमें विजय मिलने पर जहांगीर ने उसे शाहजहां की उपाधि से नवाजा था.
शाहजहां की नजर मुगल सिंहासन पर थी
जहांगीर के चार बेटे थे, खुसरो मिर्जा, परवेज मिर्जा, शहरयार मिर्जा और शाहजहां. छोटा बेटा होने के बावजूद शाहजहां महत्वाकांक्षी था और उसकी नजर मुगल सिंहासन पर थी. हालांकि, जहांगीर की बेगम नूरजहां खुर्रम के खिलाफ थीं, जबकि शाहजहां का विवाह नूरजहां के भाई आसफ खान की बेटी आर्जुमंद बानों से साल 1611 ईस्वी में हुआ था, जो आगे चलकर मुमताज महल के नाम से प्रसिद्ध हुई. उन्हीं की याद में शाहजहां ने ताजमहल बनवाया था.
सिंहासन पाने के लिए शाहजहां ने साल 1622 ईस्वी में विद्रोह कर दिया पर असफल रहा. साल 1627 ईस्वी में जहांगीर के निधन के बाद अपने ससुर आसफ खां की मदद से शाहजहां ने सिंहासन संभाला.शाहजहां का राज्याभिषेक 24 फरवरी 1628 ई. को आगरा में अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन, मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि संग किया गया. उसने ससुर आसफ खां को 7000 जात, 7000 सवार और राज्य के वजीर का पद दिया. नूरजहां को दो लाख रुपये सालाना पेंशन देकर लाहौर भेज दिया.
गद्दी पर बैठते ही हमला
जिस साल शाहजहां गद्दी पर बैठा उसी साल उसने बुंदेलखंड के वीरसिंह बुन्देला के पुत्र जुझार सिंह को आदेश दिया कि प्रजा पर कड़ाई कर उसने जो धन जुटाया है, उसकी जांच कराए. मना करने पर शाहजहां ने उस पर साल 1628 ई. में ही हमला कर दिया तो जुझार सिंह ने शाहजहां के सामने समर्पण कर माफी मांग ली. हालांकि, इसके पांच साल बाद जुझार सिंह ने मुगलों के खिलाफ जाकर गोंडवाना के शासक प्रेम नारायण की राजधानी चैरागढ़ पर हमला कर अपने कब्जे में ले लिया. इस पर शाहजहां ने अपने बेटे औरंगजेब की अगुवाई में सेना भेजी, जिसने जुझार सिंह को हरा दिया.
अफगान सरदार ने किया विद्रोह
शाहजहां ने अफगान सरदार पीर खान उर्फ खानेजहां लोदी को मालवा की सूबेदारी दी थी. हालांकि, साल 1629 ई. में वह अहमदनगर के शासक मुर्तजा निज़ामशाह के पास चला गया. निज़ामशाह ने उसे जागीरदारी दी और मुग़लों के क़ब्जे में चले गए अहमदनगर के क्षेत्रों को वापस करने की शर्त रखी. इसी साल शाहजहां ने दक्षिण में अभियान किया तो पीर खान को हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसे किसी से कोई मदद नहीं मिली. वह उत्तर-पश्चिम की ओर भाग गया. बाद में बांदा जनपद के सिंहोदा नामक स्थान पर साल 1631 में उसकी हत्या कर दी गई. साल 1633 ईस्वी में अहमदनगर का मुगल साम्राज्य में विलय हो गया.
बीजापुर का शासक आदिलशाह मुगलों के सामने अड़ा था. इस पर शाहजहां ने तीन ओर से आक्रमण कर घेर लिया था. बचाव का कोई रास्ता न पाकर आदिलशाह ने साल 1636 ईस्वी में शाहजहां की अधीनता स्वीकार कर समझौता कर लिया.
पुर्तगालियों का व्यापारिक केंद्र कब्जाया
जहांगीर के शासनकाल में विदेशियों का व्यापार आदि के लिए आगमन बढ़ चुका था और शाहजहां के शासनकाल में पुर्तगालियों का प्रभाव काफी बढ़ रहा था. इसको खत्म करने के लिए शाहजहां ने साल 1632 में पुर्तगालियों के व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र हुगली पर कब्जा कर लिया. शाहजहां के शासन काल में ही सिखों के छठवें दुरु गुरु हरगोविंद सिंह से भी संघर्ष हुआ. इसमें मुगलों की जीत हुई थी.
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