Supreme Court : शादीशुदा बहन की प्रॉपर्टी में भाई का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

Supreme Court : शादीशुदा बहन की प्रॉपर्टी में भाई का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

Himachali Khabar – (supreme court)। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शादीशुदा महिला का स्वामित्व उसकी व्यक्तिगत संपत्ति पर होता है, और यह उसके पति से प्राप्त होने वाली संपत्ति पर भी लागू होता है। इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि शादीशुदा महिला को अपने संपत्ति पर पूरा अधिकार है, और उसके भाई या अन्य रिश्तेदार इस पर हक नहीं जता सकते। 

इस फैसले का महत्व यह है कि यह मान्यता (Supreme Court Decision) देता है कि एक शादीशुदा महिला का स्वामित्व उसकी व्यक्तिगत संपत्ति पर होता है, और उसकी संपत्ति पर उसके परिवार के अन्य सदस्य, जैसे कि भाई, कोई दावा नहीं कर सकते। यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह उनके संपत्ति संबंधी अधिकारों को भी मान्यता देता है, विशेष रूप से शादी के बाद भी।

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सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला – 

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए देहरादून निवासी दुर्गा प्रसाद की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक शादीशुदा महिला को उसके पति से विरासत में मिली संपत्ति पर उसके भाई का कोई अधिकार नहीं हो सकता। हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत, यदि किसी महिला को संपत्ति विरासत में मिलती है, तो वह संपत्ति उसकी व्यक्तिगत संपत्ति मानी जाती है और उसमें उसके भाई या अन्य पारिवारिक सदस्य का कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं होता, खासकर जब वह संपत्ति उसके पति से मिली हो।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और जस्टिस आर बानुमथि की अध्यक्षता में यह स्पष्ट किया कि कानून की धारा 15 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि किसी महिला को पति और ससुर (Daughter-in-law’s right in father-in-law’s property) से विरासत में मिली संपत्ति पर उन्हीं के उत्तराधिकारियों का अधिकार है, न कि महिला के भाई का।

दुर्गा प्रसाद ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के मार्च, 2015 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि उनकी शादीशुदा बहन को पति से मिली संपत्ति (brother’s right in sister’s property) पर उनका कोई अधिकार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया, और यह पुष्टि की कि एक महिला की शादी के बाद, उसके पति और ससुर से मिली संपत्ति पर केवल उन्हीं के उत्तराधिकारियों का अधिकार होगा, और न कि उसके परिवार के अन्य सदस्य।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट (high court) के फैसले को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि ललिता के ससुर ने 1940 में विवादित मकान को किराए पर लिया था, और बाद में ललिता के पति इस मकान के किराएदार बन गए थे। उनके निधन के बाद ललिता किराएदार बनीं और बाद में उनकी भी मौत हो गई।

कानूनी प्रावधानों के तहत, ललिता के पति और फिर ललिता के निधन के बाद दुर्गा प्रसाद को उनकी संपत्ति (Property Rights) का उत्तराधिकारी नहीं माना जा सकता है। इसलिए, मकान पर उनका कब्जा अवैध है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि दुर्गा प्रसाद को इस मकान को खाली करना होगा, क्योंकि वह ललिता का वैध वारिस नहीं था।

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