UP News : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की
शुरुआत हो गई है। उत्तर प्रदेश में चले रहे इस महाकुंभ में देश विदेश से
श्रद्धालु संगम नगरी में डुबकी लगाने आ रहे हैं। वहीं महाकुंभ में जिस तरह
नागा साधु आर्कषण का केंद्र बने हैं ठीक उसी तरह इस बार महाकुंभ में नागा
साध्वी भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। आपने पुरुष नागा साधुओं के बारे
में तो जरूर सुना होगा लेकिन महिला नागा साधु के बारे में कम ही लोगों को
जानकारी होती है। आइए लेखक धनंजय चोपड़ा की किताब ‘भारत में कुंभ’ से जानते
हैं कि महिला नागा साधु कौन होती हैं और कैसे बनती हैं और इन्हें साध्वी
बनने के लिए क्या क्या मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
कौन होती हैं महिलाएं नागा साधु ? UP News
जिस तरह नागा साधु बनाने के लिए एक पुरुष को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है
ठीक उसी तरह एक महिला नागा संन्यासी बनने के लिए मुश्किलों का सामना करना
पड़ता है। दरअसल प्रयागराज कुंभ के दौरान माई बाड़ा की ही एक संन्यासिनी ने
बताया कि नागा संन्यासी बनने का निर्णय लेने वाली महिला के घर-परिवार और
सांसारिक जीवन की गहन जांच-पड़ताल की जाती है। इसी के साथ नागा संन्यासी
बनने के लिए महिलाओं के लिए को भी मोह-माया छोड़नी पड़ती है। यह सिद्ध करने
में दस से बारह साल का समय भी लग जाता है। जब अखाड़े के गुरु को इन सब
बातों पर विश्वास हो जाता है, तभी वे उसे दीक्षा देते है। दीक्षा प्राप्त
करने के बाद महिला संन्यासी को सांसारिक वस्त्र त्याग कर अखाड़े से मिले एक
पीले वस्त्र से संन्यासिनों की तरह अपने बदन ढक को रहना पड़ता है।
इसके बाद मुंडन, पिंडदान और नदी स्नान का क्रम चलता है। इस पंच संस्कार
में इन्हें गुरु की ओर से पहले भभूत, वस्त्र और कंठी दी जाती है। पिंडदान
के बाद उन्हें दंड-कमंडल प्रदान किया जाता है। इसके बाद महिला नागा
संन्यासिन पुरुष साधुओं की तरह ही पूरा दिन जप करती हैं। सुबह
ब्रह्ममुहूर्त में शिव जी का जप और उसके बाद अखाड़े के इष्टदेव की पूजा
करती हैं। इसके बाद अखाड़े में उसे नागा संन्यासिन मान लिया जाता है और
‘माता’ की पदवी देकर उसका सम्मान किया जाता है।
नागा साध्वी बनने की कठिन होती है प्रक्रिया
जिस तरह नागा साधु पुरुष बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ठीक उसी
तरह नागा संन्यासिन बनने की भी कठिन प्रक्रिया होती है। वह एक ही वस्त्र
लपेट कर रहती है।
नदी स्नान या शाही स्नान भी वे वस्त्र लपेट कर ही करती हैं। महिला नागा
संन्यासियों से भी अवधूतनी की दीक्षा देने से पहले तीन बार पूछा जाता है कि
वह अपने सांसारिक जीवन में लौटना चाहती हैं तो लौट सकती है, ऐसा एक
मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत किया जाता है, ताकि संन्यास जीवन लेने वाले
को कोई पछतावा या भ्रम या संकोच न रहे और वह अपने नए जीवन का पालन करें।
कैसा होता है नागा साध्वी का जीवन
महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन होता है। इसमें 10
से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है। गुरु को अपनी
योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है। महिला नागा
साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी जरूर किया जाता है। एक
रिपोर्ट के मुताबिक इस बार महाकुंभ में अकेले श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े
के अंतर्गत 200 से अधिक महिलाओं की संन्यास दीक्षा होगी। सभी अखाड़ों को
अगर शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या एक हजार का आंकड़ा पार हो सकता है।