
पीरियड्स में महिला नागा सादु कैसे करती है गंगा स्नान , जानें यह | GK Hindi General Knowledge : नागा साधुओं का नाम लेते ही आपके मन में कई तरह के ख्याल आने लगते हैं ! इनका नाम लेते ही आपके मन में सबसे पहला ख्याल यही आता है कि इन्होंने सांसारिक मोह-माया का त्याग कर दिया है ! सर्दी हो या गर्मी ये अपने शरीर पर कपड़े नहीं पहनते ! ये अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं ! कई लोगों को लगता है कि नागा साधु सिर्फ पुरुष ही होते हैं ! लेकिन ऐसा नहीं है, नागा साधुओं में महिलाएं भी शामिल होती हैं ! लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान गंगा में कैसे स्नान करती हैं !
पीरियड्स में महिला नागा सादु कैसे करती है गंगा स्नान
आपको बता दें कि महिला नागा साधु अपने 1 जीवन में कड़े नियमों का पालन करती हैं ! ऐसे में इन्हें गंगा में स्नान को लेकर भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है ! महाकुंभ में महिला नागा साधु पुरुष नागा साधु के स्नान करने के बाद ही स्नान करती हैं ! अगर किसी महिला नागा साधु को पीरियड्स हो रहे हैं तो वो गंगा में स्नान नहीं कर सकती हैं ! ऐसे में महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान अपने शरीर पर गंगा जल छिड़कती हैं ! पीरियड्स के दौरान बहाव को रोकने के लिए नागा साधु उस जगह पर एक छोटा कपड़ा इस्तेमाल करती हैं ! महिला नागा साधु अपने मासिक धर्म के दौरान शिविर में जल स्नान करती हैं ! इस दौरान वे अपने पूरे शरीर पर राख लपेटकर जप करती हैं !
नागा साधुओं के बाद स्नान
उनकी खास बात यह है कि वे पुरुष नागा साधु के महाकुंभ में स्नान करने के बाद नदी में स्नान करने जाती हैं ! अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतनी या नागिन कहा जाता है ! नागा साधु बनने से पहले उन्हें जीवित रहते हुए पिंडदान भी करना पड़ता है और सिर भी मुंडवाना पड़ता है ! नागिन साधु बनने के लिए उन्हें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन भी करना पड़ता है !
भगवा वस्त्र धारण करें
महिला नागा साधु पुरुष नागा साधुओं से अलग होती हैं ! वे दिगंबर नहीं रहती हैं ! वे सभी भगवा रंग के वस्त्र धारण करती हैं ! लेकिन वह कपड़ा सिला हुआ नहीं होता है ! इसलिए उन्हें मासिक धर्म के दौरान कोई परेशानी नहीं होती है ! नागा साध्वियां कुंभ मेले में भाग लेती हैं !
महिलाएं कैसे बनती हैं नागा साधु
नागा साधु या सन्यासी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है ! नागा साधु बनने के लिए गुरु को यह विश्वास दिलाना होता है कि महिला नागा साधु बनने के योग्य है और उसने खुद को भगवान को समर्पित कर दिया है ! इसके बाद गुरु नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं ! नागा साधु बनने से पहले महिला के पिछले जन्म को देखकर यह पता लगाया जाता है कि वह भगवान को समर्पित है या नहीं और नागा साधु बनने के बाद वह कठिन साधना कर सकती है या नहीं ! नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते हुए पिंडदान करना होता है और सिर मुंडवाना भी होता है !
पीरियड्स में महिला नागा सादु कैसे करती है , महिला नागा साधु क्या खाती हैं
सिर मुंडवाने के बाद महिला को नदी में स्नान कराया जाता है और फिर महिला नागा साधु पूरे दिन भगवान का नाम जपती है ! पुरुषों की तरह महिला नागा साधु भी भगवान शिव की पूजा करती हैं ! सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का जाप करती हैं और शाम को भगवान दत्तात्रेय की पूजा करती हैं ! दोपहर के भोजन के बाद भगवान शिव का जाप करती हैं ! नागा साधु जड़, फल, जड़ी-बूटी, मेवे और कई तरह के पत्ते खाते हैं ! महिला नागा साधुओं के रहने के लिए अलग से अखाड़े की व्यवस्था की जाती है !
2013 में कुंभ में पहली बार मिली थी मान्यता
करीब 10 साल पहले यानी 2013 में इलाहाबाद कुंभ में पहली बार नागा महिला अखाड़े को अलग पहचान मिली थी ! यह अखाड़ा संगम तट पर जूना संन्यासिन अखाड़े के नाम से नजर आता था ! तब नागा महिला अखाड़े की प्रमुख दिव्या गिरि थीं, जिन्होंने साधु बनने से पहले इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजीन, नई दिल्ली से मेडिकल टेक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी ! 2004 में वे औपचारिक रूप से महिला नागा साधु बनीं ! तब उन्होंने कहा था कि हम कुछ चीजें अलग तरीके से करना चाहते हैं ! जूना अखाड़े के इष्ट देवता भगवान दत्तात्रेय हैं, हम दत्तात्रेय की माता अनुसूइया को अपना इष्ट देवता बनाना चाहते हैं !
पीरियड्स में महिला नागा सादु कैसे , माता अनुसूइया कौन हैं?
पूजा महिला नागा साधु भगवान शिव और दत्तात्रेय की अनिवार्य रूप से पूजा करती हैं ! ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम अनुसूइया है ! वे अपने पतिव्रत धर्म के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थीं ! जबकि ब्रह्मा, महेश और विष्णु की पत्नियों को लगता था कि वे अपने पतियों के प्रति सबसे ज्यादा समर्पित हैं ! लेकिन जब महर्षि नारद ने तीनों को बताया कि अनुसूइया धरती पर उनसे ज्यादा अपने पति के प्रति समर्पित हैं, तो तीनों को इस बात से बहुत दुख हुआ !
तीनों ने अपने पतियों से कहा कि वे अनुसूइया की परीक्षा लें ! आखिरकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उनकी परीक्षा लेने जाना पड़ा ! यह परीक्षा ऐसी थी कि माता अनुसूइया का देवी के रूप में दर्जा बहुत ऊंचा हो गया