
बीटिंग रिट्रीट के साथ गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों का औपचारिक समापन होता है.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह लगातार चार दिन चलते है. चौथे दिन यानी 29 जनवरी की शाम को बीटिंग रिट्रीट के साथ इसका औपचारिक समापन होता है. रायसीना हिल्स स्थित विजय चौक पर इसका आयोजन किया जाता है. इसमें देश की थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बैंड शामिल होते हैं. आइए जान लेते हैं कि कभी राजा-महाराजाओं के लिए होने वाले इस आयोजन का क्या है इतिहास और इसमें क्या-क्या होता है?
दरअसल, बीटिंग रिट्रीट समारोह का सीधा संबंध किसी समय युद्ध से था. तब युद्ध के समय राजा-महाराजाओं के सैनिक सूर्यास्त के बाद युद्ध रोक देते थे. इसकी घोषणा सूरज ढलते ही बिगुल बजा कर की जाती थी. यह बिगुल बजते ही दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के मैदान को छोड़ देती थीं और अपने-अपने टेंट या फिर महल में चली जाती थीं.
बताया जाता है कि इस समारोह को उस दौर में वॉच सेटिंग कहा जाता था. बिगुल बजने के साथ ही युद्ध समाप्ति की घोषणा के लिए शाम को आसमान की ओर से बंदूक से एक राउंड फायरिंग भी की जाती थी.
इतनी पुरानी है समारोह की परंपरा
बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की परंपरा करीब 300 साल पुरानी है. इसकी शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड में हुई थी. यह 17वीं शताब्दी की बात है. इंग्लैंड में जेम्स II का शासन था. उन्होंने दिन का युद्ध खत्म होने के बाद अपने सैनिकों को शाम को परेड करने के साथ ही बैंड की धुन बजाने का अदेश दिया था.
यह भी बताया जाता है कि इससे भी पहले इसकी शुरुआत आसपास की गश्ती इकाइयों को महल और शिविर में वापस बुलाने के लिए किया गया था. इसके लिए सूर्यास्त के समय एक राउंड बंदूक से फायरिंग की जाती थी. वर्तमान में भारत के साथ ही यूके, अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में सशस्त्र बलों द्वारा ऐसा आयोजन किया जाता है.

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में तीनों भारतीय सेनाओं और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के बैंड शामिल होते हैं.
भारत में ऐसे हुई समारोह की शुरुआत
अंग्रेजों से देश को आजादी मिलने के बाद बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन सबसे पहले 1950 के दशक में किया गया था. अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद इंग्लैंड से एलिजाबेथ द्वितीय और प्रिंस फिलिप तब पहली बार भारत यात्रा पर आए थे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनका स्वागत शानदार कार्यक्रम के जरिए करने का निर्देश दिया था. इस पर समारोह की कल्पना सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के मेजर जीए रॉबर्ट्स ने की थी.
ऐसा होता है पूरा आयोजन
आधुनिक समय में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में तीनों भारतीय सेनाओं और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के बैंड शामिल होते हैं. मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्रपति होते हैं. उनके सामने सभी बैंड एक साथ मार्चिंग धुन बजाते हैं. ड्रमर्स कॉल का प्रदर्शन भी किया जाता है. इसके बाद बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और अपने बैंड वापस ले जाने की उनसे अनुमति मांगते हैं. बैंड मार्च वापसी में लोकप्रिय धुन सारे जहां से अच्छा… बजाते हैं. शाम को ठीक छह बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन के बीच राष्ट्रीय ध्वज उतार लिया जाता है. इसके साथ राष्ट्रगान बजता है और गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक समापन हो जाता है.
महात्मा गांधी की प्रिय धुन हटाई गई
इस बार भारतीय सेना का बैंड वीर सपूत, ताकत वतन, मेरा युवा भारत, ध्रुव, फौलाद का जिगर जैसी धुनें निकालेगा. नौसेना का बैंड राष्ट्रीय प्रथम, निशक निष्पद, आत्मनिर्भर भारत, स्प्रेड द लाइट ऑफ फ्रीडम, रिदम ऑफ द रीफ और जय भारती धुनें बजाएगा. वायुसेना का बैंड गैलेक्सी राइडर, स्ट्राइड, रू-ब-रू, मिलेनियम फ्लाइट फैंटेसी और राइडर्स ऑन द स्टॉर्म की धुन बजाएगा, जबकि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल का बैंड विजय भारत, राजस्थान ट्रूप्स, ऐ वतन तेरे लिए और भारत के जवान जैसी धुन बजाएगा. पहले बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रिय धुन भी बजती थी. सरकार ने समारोह से बापू की प्रिय धुन को हटा दिया है.
अब तक केवल दो बार रद्द हुआ समारोह
भारत में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी शुरू होने के बाद केवल दो बार इसको रद्द करना पड़ा है. 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में भूकंप के कारण पहली बार इसे रद्द किया गया था. 27 जनवरी 2009 को एक बार फिर देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन के निधन के बाद भी इसे रद्द किया गया था.
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