जब मौनी अमावस्या पर महाकुंभ पहुंचे नेहरू की वजह से बिछ गईं 1000 लाशें, चीख-पुकार में पार्टी करने लगे नेता..

जब मौनी अमावस्या पर महाकुंभ पहुंचे नेहरू की वजह से बिछ गईं 1000 लाशें, चीख-पुकार में पार्टी करने लगे नेता..Mahakumbh Stampede: प्रयागराज के संगम तट पर मंगलवार रात डेढ़ बजे मची भगदड़ में 20 श्रद्धालुओं की जान जाने की खबर है। हालांकि प्रशासन की तरफ से अभी मौत या घायलों को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है। भगदड़ को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। विपक्षी पार्टी सीएम योगी को घेरने में लग गई है। ऐसा पहली बार नहीं है कि महाकुंभ मचा हो। साल 1954 के महाकुंभ में एक हजार लोगों की जान चली गई। आइए जानते हैं पूरी घटना क्या है?

क्या थी पूरी घटना

साल 1954 में आजाद भारत का पहला कुंभ लगा था। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी, इस वजह से इलाहाबाद में भारी भीड़ थी। लाखों की संख्या में लोग संगम पहुंचे हुए थे। सुबह 8-9 बजे के समय ट्रैफिक नियमों को तोड़कर वन वे सड़क पर दोनों तरफ से लोग आवाजाही करने लगे। तभी अचानक उन्हें खबर मिली की प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। उधर से नागा साधु आ रहे थे। भीड़ को अपनी तरफ आता देखकर वो भी उन्हें त्रिशूल-तलवार लेकर मारने के लिए दौड़ पड़े। भगदड़ मच गई और लोग एक दूसरे पर गिरने लगे। इस भगदड़ में हजार लोगों की जान चली गई।

नेहरू ने सदन में मांगी माफ़ी

सरकार ने यह बात छुपानी चाही लेकिन एक पत्रकार ने तस्वीरें छाप दी। अखबार में तस्वीरें देखने के बाद हंगामा मच गया। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी ने अपनी रिपोर्ट छायाकृति मैगजीन में छापी। इसमें उन्होंने लिखा कि इस हादसे के अगले दिन अमृत बाजार पत्रिका में एक तरफ हादसे की खबर छपी थी तो दूसरी ओर राजभवन में नेताओं की पार्टी की। सरकार ने उस दौरान कहा कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है, हालांकि बाद में नेहरू ने इसके लिए माफ़ी मांगी थी।

 

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