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Delhi Chunav Exit Poll Result: दिल्ली में एग्जिट पोल के नतीजे आ गए. ज्यादातर एग्जिट पोल ने भाजपा की सरकार बनवा दी. आम आदमी पार्टी हैट्रिक जीत से चूकती नजर आ रही है. अब फाइनल नतीजों का इंतजार है. पर दिल्ली के वोटिंग पैटर्न से लगता है कि पिक्चर अभी बाकी है. अब भी दिल्ली की सियासी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है. दिल्ली में इस बार वोटिंग की रफ्तार बहुत धीमी रही. या यूं कहिए कि जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है, तब से सबसे कम वोट पड़े हैं. इस बार दिल्ली में 60.40 फीसदी वोटिंग हुई. इसका मतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 से करीब 2.15 फीसदी कम. अब सवाल है कि कम वोटिंग के सियासी मायने क्या हैं, इससे किसकी सीटों पर असर पड़ेगा? दिल्ली में इस बार जिस तरह वोटिंग हुई है, उससे समझने की कोशिश करते हैं कि यह किसके लिए फायदे का सौदा है और किसके लिए खतरे की घंटी.
सबसे पहले जानते हैं कि दिल्ली का वोटिंग पैटर्न इस बार क्या रहा. दिल्ली में इस बार बहुत धीमी शुरुआत हुई. इसका असर फाइनल वोट प्रतिशत में भी दिखा. चुनाव आयोग ने देर रात आंकड़ा जारी किया. उसके मुताबिक, दिल्ली में इस बार 60.40 फीसदी वोट पड़े. जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 62.55 फीसदी था. इसका मतलब है कि इस बार 2.15 फीसदी कम वोट पड़े. अगर 2013, 2015 विधानसभा चुनाव के भी वोटिंग आंकड़े को देखें तो इस बार सबसे कम वोटिंग हुई है. इसका मतलब है कि 2013 के बाद से सबसे कम वोटिंग.
आंकड़ों से समझिए वोटिंग का पैटर्न
यहां ध्यान देने वाली बात है कि 2013 में ही आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था. आम आदमी पार्टी ने पहली बार 2013 में ही चुनाव लड़ा था. उस वक्त 2008 की तुलना में करीब 8 फीसदी वोटिंग ज्यादा हुई थी. इसका असर हुआ था कि कांग्रेस हारी थी और आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ था. नतीजों का असर त्रिशंकु विधानसभा था. कांग्रेस और आप ने मिलकर सरकार बनाई थी. मगर यह ज्यादा दिन तक नहीं चली. अब यहां समझने की कोशिश करेंगे कि कम वोटिंग आम आदमी पार्टी के लिए क्या मायने हैं.
कम वोटिंग मतलब आप को घाटा?
इन आंकड़ों से साफ है कि दिल्ली के चुनावों में जब-जब वोटिंग कम हुई है, आम आदमी पार्टी को घाटा हुआ है. इस बार भी वोटिंग कम ही है. ऐसे में यह तय है कि आम आदमी पार्टी की सीटें घटेंगी. ज्यादातर एग्जिट पोल भी यही अनुमान लगा रहे हैं. मगर आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं ही बनेगी, यह कहना भी अभी अतिश्योक्ति ही होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है देर शाम तक हुई वोटिंग. एग्जिट पोल के नतीजे 6.30 के बाद जारी हो गए. इसका मतलब है कि सैंपल फाइनल वोटिंग आंकड़ा से नहीं लिया गया होगा. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि एग्जिट पोल के नतीजे क्या 8 फरवरी को सही साबित होते हैं?
कम वोटिंग के मायने
अब वोटिंग फीसदी घटने के दूसरे मायने को समझते हैं. अगर दिल्ली में इस बार कम वोटिंग हुई तो क्या इसका असर हार-जीत पर पड़ता है? क्या वोट बढ़ने-घटने से सियासी फेरबदल की संभावना होती है? अब तक देश में जो सियासी पैटर्न रहा है, उसे देखें तो ज्यादा वोटिंग का मतलब जनता परिवर्तन चाहती है. वोटिंग फीसदी कम होता है तो ओके-ओके मामला रहता है. दूसरे शब्दों में कहें तो बदलाव की संभावना बहुत कम. यानी जनता न बहुत ज्यादा मौजूदा सरकार से खुश है और न ज्यादा दुखी. इसका उदाहरण 2013 और 2-15 के दिल्ली चुनाव हैं. दोनों बार दिल्ली में बंपर वोटिंग हुई. इसका नतीजा हुआ कि दिल्ली में बदलाव हुआ. आम आदमी पार्टी की सरकार बनी. हालांकि, हर बार यह फॉर्मूला लागू हो, ऐसा जरूरी नहीं. लेकिन पिछली बार और इस बार की तुलुना में वोटिंग फीसदी का अंतर बहुत कम है. ऐसे में देखने वाली बात है कि आखिरी वक्त की बाजी किसके हाथ लगती है.