Himachali Khabar – (Property knowledge)। हाईकोर्ट ने माता-पिता की संपत्ति पर संतान के अधिकार को लेकर एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले ने प्रोपर्टी पर संतान के अधिकारों को और अधिक स्पष्ट कर दिया है। अब यह भी साफ किया गया है कि बच्चों को कब तक माता पिता की प्रोपर्टी में अपने हिस्से का हक (sons’s rights on parents property) नहीं मिल सकता। कोर्ट के इस फैसले ने समाज में चल रही कई धारणाओं को चुनौती दी है और यह मामला कई परिवारों के लिए नई सोच और समझ का विषय बन गया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला –
कुछ मामलों में, जब माता-पिता संपत्ति बेचने का निर्णय लेते हैं, तो संतान उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं। इस प्रकार के मामलों में न्यायालयों के फैसले अहम होते हैं। हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने इस तरह के एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसे जानने के लिए इसे विस्तार से समझना जरूरी है। यह फैसला प्रोपर्टी के अधिकारों को समझने में अहम होगा और संपत्ति विवादों (property disputes) में कमी आएगी। इस फैसले के बाद यह भी सोचा जा रहा है कि कि अब परिवारों में संपत्ति को लेकर रिश्तों की क्या दिशा होगी और कितने दिन तक संतान अपने अधिकारों के लिए खामोश रह सकते हैं।
यह है पूरा मामला –
एक बेटे ने अदालत में एक मामले को लेकर आवेदन दायर किया था, जिसमें उसने अपनी मां को संपत्ति बेचने से रोकने की कोशिश की थी। उसके पिता कई सालों से अस्पताल में हैं और उनकी हालत गंभीर है, वे किसी तरह से बेजान स्थिति में हैं। मां उस संपत्ति (Children property rights) को बेचकर पिता के इलाज के लिए पैसे जुटाने का विचार कर रही थी। इस पर अदालत ने अहम दिशा-निर्देश दिए और मामले पर विचार किया।
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि संतान को संपत्ति पर कब तक दावा करने का अधिकार नहीं होता। इस मामले में, जहां मां ने पिता के इलाज के लिए संपत्ति बेची तो बेटे ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद मामला न्यायालय में पहुंचा और कोर्ट ने इस पर अपनी राय दी। अदालत ने माता-पिता के संपत्ति पर अधिकार (son’s property rights) और संतान के अधिकारों के बीच अंतर को समझाया।
बॉम्बे हाईकोर्ट का है यह कहना –
बॉम्बे अदालत ने सुनवाई के दौरान यह निर्णय लिया कि जब तक माता-पिता जीवित हैं, तब तक संतान संपत्ति पर कोई हक नहीं जमा सकती। अदालत ने याचिका की परिस्थितियों को समझते हुए बेटे की मां को यह अधिकार (Property rights for children) दिया कि वह अपने पति के इलाज के लिए संपत्ति बेच सकती हैं। इससे पहले, पिछले साल उन्हें परिवार की देखभाल करने के लिए कानूनी अधिकार मिल चुके थे।
माता-पिता बेच सकते हैं अपनी संपत्ति –
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार ने याचिका दायर करने वाले व्यक्ति को स्पष्ट रूप से कहा कि चूंकि उसके माता-पिता (parents property rights) दोनों जीवित हैं, उसे उनकी संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा कि माता-पिता को अपनी संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार है और इसके लिए उन्हें याचिका दायर करने वाले व्यक्ति की अनुमति की जरूरत नहीं है।
पिता को थी यह बीमारी –
मुंबई के जेजे अस्पताल ने पिछले साल अक्टूबर में अदालत में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया कि याचिका दायर करने वाले व्यक्ति के पिता को 2011 से मानसिक बीमारी डिमेंशिया (dementia) है। इसके अलावा, उन्हें गंभीर श्वसन समस्या और घाव भी हैं। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि उन्हें नाक के जरिए ऑक्सीजन दी जा रही है और खाना ट्यूब के माध्यम से दिया जाता है। उनकी आंखें तो हिलती हैं, लेकिन वह सामान्य रूप से किसी से संपर्क नहीं बना पाते हैं। यानी स्थिति गंभीर है और इलाज पर काफी खर्च हो रहा है।
कोर्ट ने की यह टिप्पणी –
कोर्ट ने बेटे की याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। बेटे के वकील ने दावा किया कि वह लंबे समय से अपने पिता का असली देखभालकर्ता है। इस पर जज ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर बेटे को खुद को कानूनी अभिभावक बनाना था, तो उसे पहले अदालत (Court decision on property rights) में आकर इस बारे में उचित कदम उठाना चाहिए था। इसके बाद जज ने बेटे से सवाल किया कि क्या उसने कभी अपने पिता को डॉक्टर के पास ले जाकर दिखाया और क्या उसने इलाज के खर्चों का भुगतान किया।
इस शख्स ने भरे अस्पताल के बिल –
न्यायाधीशों ने 16 मार्च के आदेश में यह स्पष्ट किया कि याचिका दायर करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत कागजात से यह सामने आया कि बिलों का भुगतान उनकी मां द्वारा किया जा रहा था। हालांकि, उनके समर्थन में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे। कोर्ट ने यह कहा कि चाहे कोई भी समुदाय या धर्म हो, उत्तराधिकार (Successor property rights) से जुड़े कानून के तहत बेटे को संपत्ति पर हक नहीं है। इस प्रकार, उसे प्रोपर्टी पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
कोर्ट ने की बेटे की याचिका खारिज-
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि बेटे को संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि वह अपनी मां को संपत्ति बेचने (Property selling rights) से रोकने का हक नहीं रखता। इसके अलावा, मां को संपत्ति बेचने के लिए किसी सहमति या अनुमति की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में बेटे की अपील को निराधार ठहराया और फैसला मां के पक्ष में दिया।