इस दाल ने बढ़ाई सरकार की चिंता, भारी गिरावट में बदला स्वर्णिम दौर, उठाया ये कदम….

बाराबंकी. स्वर्णिम दौर देख चुका ये जिला भारी गिरावट से गुजर रहा है. बाराबंकी जिले में एक समय दलहन के मामले में अरहर की खेती का स्वर्णिम दौर था, जब किसान बड़े पैमाने पर इस फसल की खेती करते थे. पिछले कुछ वर्षों में दलहन की खेती में भारी गिरावट आई है. वर्तमान में यहां अरहर की खेती नाममात्र की रह गई है. कृषि विभाग ने इस चिंताजनक स्थिति को देखते हुए अरहर की खेती को पुनर्जीवित करने के आगे आया है. विभाग किसानों को अरहर की खेती की ओर आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं लेकर आ रहा है. […]
इस दाल ने बढ़ाई सरकार की चिंता, भारी गिरावट में बदला स्वर्णिम दौर, उठाया ये कदम….इस दाल ने बढ़ाई सरकार की चिंता, भारी गिरावट में बदला स्वर्णिम दौर, उठाया ये कदम….

बाराबंकी. स्वर्णिम दौर देख चुका ये जिला भारी गिरावट से गुजर रहा है. बाराबंकी जिले में एक समय दलहन के मामले में अरहर की खेती का स्वर्णिम दौर था, जब किसान बड़े पैमाने पर इस फसल की खेती करते थे. पिछले कुछ वर्षों में दलहन की खेती में भारी गिरावट आई है. वर्तमान में यहां अरहर की खेती नाममात्र की रह गई है. कृषि विभाग ने इस चिंताजनक स्थिति को देखते हुए अरहर की खेती को पुनर्जीवित करने के आगे आया है. विभाग किसानों को अरहर की खेती की ओर आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं लेकर आ रहा है. इस पहल का मुख्य उद्देश्य न केवल जिले में अरहर का उत्पादन बढ़ाना है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करना है.

कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं

बाराबंकी जिले की शान रही अरहर की खेती अब खत्म होने की कगार पर है. विभाग के अनुसार जिले में अरहर की खेती कभी 25000 हेक्टेयर में होती थी लेकिन आज कितने हेक्टेयर में हो रही है, इसका कोई आंकड़ा विभाग के पास नहीं है. इन दिनों 825 हेक्टेयर में चना 4337 हेक्टेयर में मटर और 16918 हेक्टेयर में मसूर की खेती हो रही है, लेकिन अरहर की खेती का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. किसान भी अरहर की जगह मेंथा, आलू, खरबूजा और टमाटर आदि की खेती पर ज्यादा ध्यान देते हैं क्योंकि ये फसलें कम लागत में अधिक पैदावार और बेहतर मुनाफा देती हैं. इसी वजह से किसान अब अरहर की खेती करने में रुचि नहीं दिखा रहे.

जिला कृषि अधिकारी राजितराम बातचीत में कहते हैं कि अरहर की बुवाई को बढ़ावा देने की पूरी योजना तैयार है. इसके तहत इस बार रामनगर फार्म हाउस पर 6 हेक्टेयर में अरहर की बुवाई की गई है. इससे तैयार बीज किसानों में वितरित कर अरहर की बुवाई के लिए प्रेरित किया जाएगा. इससे अरहर की खेती को बढ़ावा देने से क्षेत्र में दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता आएगी और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा.