Himachali Khabar : (High Court Decision) आए दिन कोर्ट में संपत्ति के कई मामले कोर्ट में सामने आते हैं। इनमें से कुछ मामले मकान मालिक और किरायेदारों के अधिकारों से भी जुड़े होते हैं। कुछ दिनों पहले भी कोर्ट (Court ka decision) में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है ओर मकान मालिक और किराएदार के अधिकारों को सपष्ट किया है। खबर में जानिये संपत्ति पर मकान मालिक और किराएदार में से किसकी ज्यादा चलेगी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में दर्ज मामला-
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए बताया है कि किरायेदार आमतौर पर मकान मालिक (property rights of Landlord) की मर्जी के ऊपर ही पूरी तरह से निर्भर करता है। अगर मकान मालिक अपनी जरूरत के लिए चाहे तो किरायेदार (tenant’s rights of property) से संपत्ति को खाली करने के लिए भी कह सकता है। हालांकि किरायेदार के खिलाफ फैसला देने से पहले कोर्ट (Court decision) को इस बात की भी जांच करनी चाहिए थी कि मकान मालिक की जरूरतें वास्तविक हैं या नहीं।
कोर्ट ने कहीं ये बात-
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बताया कि किरायेदार को मकान मालिक (makan malik ke adhikar) की मर्जी पर ही पूरी तरह से निर्भर रहना चाहिए क्योंकि जब भी मकान मालिक को अपने निजी इस्तेमाल के लिए संपत्ति (property Knowledge) की जरूरत होती हैं तो उसे मकान मालिक की संपत्ति का त्याग करना होगा।
मालिक ने दर्ज की याचिका-
अनुच्छेद 227 के मुताबिक जब वास्तविक आवश्यकता और तुलनात्मक कठिनाई में मकान मालिक (Rights of landlord) को मकाल की जरूरत पड़ती हैं तो वो बिना किसी हस्तक्षेप के मकान को खाली करा सकता है। मुकदमे से जुड़े तथ्यों के मुताबिक मकान मालिक (property Rights of landlord) ने निजी जरूरतों को आधार बनाते हुए ही दो दुकानों को खाली करने के लिए आवेदन किया था। मकान मालिक का इरादा दोनों दुकानों के परिसर में मोटर साइकिल और स्कूटर की मरम्मत (kiss situation me ghar khali kraya ja sakta h) का काम करने के लिए एक दुकान खोलने का था। विहित प्राधिकारी ने दुकान खाली करने के आवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि वास्तविक जरूरत और तुलनात्मक कठिनाई मकान मालिक के ही पक्ष में थी।
हाई कोर्ट ने दी टिप्पणी-
किरायेदार की अपील को ट्रायल कोर्ट में खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद किरायेदार (property Rights of tenant) ने अपनी अपील हाई कोर्ट में दर्ज की। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वैकल्पिक आवास को लेकर प्राधिकरण के लिए निर्णय लेना काफी ज्यादा जरूरी है। इसका उत्तर प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर ही दिया जाता है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि वैकल्पिक आवास (Alternative Accommodation) उपलब्ध होने के प्रकार आदि को देखकर ही सब कुछ सही से तय किया जा सकता है। इसलिए उत्तर देना भी इसी बात पर निर्भर है कि वहां की सारी स्थिति देखी जाए। इसमें यह भी देखा जाएगा कि मकान मालिक (makan malik ke adhikar) का परिवार कितना बड़ा है और जो करोबार वह चलाना चाहता है उसके लिए उपयुक्त जगह है या नहीं, उस कारोबारी गतिविधि को रिहायशी जगह पर किया जा सकता है या नहीं आदि बातों को ध्यान में रखकर ही फैसला लिया जा सकता है।
इस मामले में कोर्ट ने नियम, 1972 की धारा 16(1)(डी) के तहत प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश को सही माना।