Himachali Khabar : (Daughter’s Property right) आए दिन कोर्ट में संपत्ति से जुड़े अनेक मामले आते हैं, जिनमें से अधिकतर मामले प्रोपर्टी पर हक को लेकर होते हैं। पिता की प्रोपर्टी में बेटियों के हक (Property mein beti ka hak) को लेकर भी अक्सर विवाद सामने आ जाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोपर्टी में बेटियों के हक को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कोर्ट ने क्लियर किया है कि किन बेटियों को पिता की प्रोपर्टी में हक (rights in father’s property) नहीं मिलेगा। यह फैसला यह दर्शाता है कि संपत्ति के मामलों में कभी-कभी परिवार की स्थिति और कानूनी पहलू अहम हो सकते हैं।
कानून में यह है प्रावधान –
आज के मॉर्डन युग में भी अधिकतर लोग पुरानी सोच को लेकर चल रहे हैं कि उनकी प्रोपर्टी (property knowledge) पर पूरा हक उनके घर के चिराग, उनके वारिस का है। कुछ साल पहले ही कानून में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है, जिससे बेटियों को अपने परिवार की संपत्ति में बेटों की तरह ही बराबरी का अधिकार मिला। पहले यह माना जाता था कि केवल बेटा ही संपत्ति का मालिक बनेगा, लेकिन 2005 में एक कानूनी संशोधन के बाद, बेटियों (Daughter’ s property rights) को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक है। पिता की प्रोपर्टी में समान हक होने के बावजूद सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है कि इस स्थिति में बेटी को पिता की प्रोपर्टी में हक नहीं मिलेगा।
कब नहीं मिलेगा बेटी को प्राेपर्टी में हक –
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि यदि एक लड़की अपने पिता से रिश्ता नहीं रखना चाहती है, तो उसे पिता की संपत्ति पर अधिकार (Property rights for daughter) नहीं मिलेगा। साथ ही, वह अपने शिक्षा या शादी के लिए पिता से आर्थिक सहायता भी नहीं मांग सकती। इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि परिवारिक संबंधों का प्रभाव न केवल संपत्ति के अधिकारों (son’s property rights) पर बल्कि अन्य मदद पर भी पड़ता है। यदि परिवार के सदस्य एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते हैं, तो उनका आर्थिक और कानूनी स्थिति पर असर पड़ता है।
यह है पूरा मामला –
इस मामले में एक व्यक्ति ने अपने वैवाहिक अधिकारों को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। फिर उसने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court decision) में तलाक की मांग की। यहां मध्यस्थता के तहत पति-पत्नी और पिता-पुत्री के बीच सुलह की कोशिश की गई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। लड़की अपनी मां के साथ रहती आई थी और 20 वर्ष की उम्र तक उसने अपने पिता से मिलने को इन्कार किया था। अदालत ने कहा कि एक बेटी जो 20 साल की हो गई है और अपनी पसंद का फैसला करने के लिए स्वतंत्र है। अगर वह अपने परिवार के सदस्य के साथ संपर्क नहीं रखना चाहती, तो उसे किसी संपत्ति (Property rules for daughter) या धन का अधिकार नहीं मिलेगा।
यह मांग भी नहीं कर सकती बेटी-
कोर्ट के अनुसार जो बेटी अपने पिता से दूर ही रहना चाहती है तो वह पिता से किसी प्रकार की वित्तीय सहायता, जैसे शिक्षा या विवाह के लिए, नहीं मांग सकती। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब एक व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपने निर्णय ले सकता है, लेकिन उसे किसी भी प्रकार की अनिवार्य मदद या संपत्ति का दावा करने का अधिकार (married women property rights) नहीं रहेगा।
कोर्ट ने पति को दिए ये आदेश –
अदालत ने कहा कि पत्नी के पास आर्थिक संसाधन नहीं हैं और वह अपने भाई के साथ रह रही है, जो उसकी और उसकी बेटी की देखभाल कर रहा है। इस स्थिति को देखते हुए, पति को अपनी पत्नी (wife’s property rights) के लिए नियमित समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है। अदालत ने इसे एक जिम्मेदारी माना, यह सुनिश्चित करने के लिए कि पत्नी की और उसकी बेटी की बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखा जाए।
कोर्ट ने पति को अपनी पत्नी को हर महीने 8,000 रुपए (Alimony rights for women) देने का आदेश दिया है, या फिर वह एक बार में 10 लाख रुपए का भुगतान भी कर सकता है। यह विकल्प पत्नी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है। इस फैसले से पति को दोनों में से एक चुनने की स्वतंत्रता है।
मां कर सकती है बेटी की अपने पैसों से मदद –
सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने यह स्पष्ट किया कि अगर मां चाहती है तो वह अपनी बेटी की सहायता कर सकती है। यदि वह बेटी का समर्थन करती है, तो जो पैसे उसे पति से मिलते हैं, वे वह अपनी बेटी को दे सकती है। इस फैसले को पूरी तरह से समझने के लिए बेटियों के अधिकारों (Women’s property rights) पर एक वकील से सलाह लेने की सलाह दी गई है। इससे जुड़े सवालों के जवाब जानने से प्रोपर्टी पर अधिकारों की शंका दूर हो सकती है।