…तो अपनों से बिछड़ जाते 54,357 श्रद्धालु, कैसे महाकुंभ में AI और डिजिटल सेंटर लोगों की बने मददगार?..

प्रयागराज महाकुम्भ 2025 दिव्य ,भव्य और सुव्यवस्थित स्वरूप के साथ 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व उपस्थिति से ऐतिहासिक आयोजन बन गया है. संगम के तट पर आयोजित प्रयागराज महाकुम्भ में 144 साल बाद बने पुण्य संयोग में देश दुनिया से श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ा. इस जन सैलाब के कारण कई लोग कुछ पलों के लिए अपनों से बिछड़ गए. महाकुम्भ के इस विराट मेले में कुल 54,357 लोगों को उनके परिवारों से मिलाने में बड़ी सफलता हासिल हुई है. इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की रही. यही नहीं पुलिस द्वारा देश के विभिन्न राज्यों और नेपाल से आए श्रद्धालुओं का उनके परिवारों से सफलतापूर्वक पुनर्मिलन कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई.

महाकुम्भ में खोए हुए लोगों को शीघ्रता से उनके परिवारों से मिलाने के लिए योगी सरकार ने डिजिटल खोया-पाया केंद्रों की स्थापना की. 45 दिन के महाकुंभ में 35 ,952 लोग अपनों से बिछड़े. महाकुम्भ में इनसे 35 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को उनके परिजनों से मिलाने का कार्य किया गया. इसके अलावा अन्य स्नान पर्वों और सामान्य दिनों में खोए हुए 24,896 लोगों का भी उनके परिवारों के साथ पुनर्मिलन कराया गया. इस तरह महाकुम्भ के समापन पर 35,083 लोगों को उनके परिजनों से मिलाया गया.

निजी संस्थाओं ने भी किया पूरा सहयोग, पूरे महाकुम्भ क्षेत्र में 10 डिजिटल खोया-पाया केंद्र स्थापित किए गए. इनमें अगर अत्याधुनिक एआई आधारित चेहरा पहचान प्रणाली, मशीन लर्निंग और बहुभाषीय समर्थन जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं का संगम देखने को मिला. वहीं गैर सरकारी सामाजिक संस्थाओं के प्रयास में मानवता और सेवा का अद्भुत मेल देखने को मिला. इनमें सबसे पुराना भारत सेवा केंद्र एवं हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति समिति भी शामिल है. भारत सेवा केंद्र के भूले भटकों के शिविर के संचालक उमेश चंद्र तिवारी के मुताबिक, महाकुम्भ के समापन तक शिविर ने 19,274 बिछड़े महिला और पुरुष को अपनों से मिलाया. इसके अलावा कुम्भ मेले में बिछड़ गए सभी 18 बच्चों को भी उनके परिजनों से मिलाया गया है. शिविर के माध्यम से न सिर्फ खोए हुए लोगों को खोजा गया, बल्कि उनके घरों तक पहुंचाने में भी मदद की गई.

समापन के आखिरी दिन तक होता रहा पुनर्मिलन
महाकुम्भ के आखिरी स्नान पर्व महा शिवरात्रि के दिन तक खोया पाया केंद्रों और भूले भटके शिविरों के बिछड़ हुए लोगों को उनके अपनों से मिलाने की प्रक्रिया चलती रही. खोया पाया केंद्र विशेष रूप से कारगर रहे. उन्होंने न सिर्फ बिछड़े लोगों का परिजनों से मिलया, बल्कि बिछड़े लोगों की ट्रैकिंग भी की और जब तक वो परिवार से मिल नहीं गए तब तक प्रक्रिया को रिपीट किया गया. मुजफ्फरपुर धरकरी बिहार के कपलेश्वर साहनी की सास कृष्णा देवी को केंद्र ने आखिरी दिन परिजनों से मिलाया. इसी तरह रायपुर छत्तीसगढ़ के बृजलाल चौहान की पत्नी जंगी देवी को भी अपने घर पहुंचाया.

 

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