father's property rights : पिता की संपत्ति पर बेटा बेटी का कितना कम ज्यादा अधिकार, दावा करने से पहले जानिये कानून

father's property rights : पिता की संपत्ति पर बेटा बेटी का कितना कम ज्यादा अधिकार, दावा करने से पहले जानिये कानून

Himachali Khabar : (property rights in hindi) प्रोपर्टी को लेकर बनाए गए नियम और कानुनों की जानकारी के अभाव के कारण ही लोग अपना हक पाने में वंचित रह जाते है। प्रोपर्टी के बंटवारे के समय अच्छे-अच्छे रिश्ते तबाह हो जाते है। जब बेटी का जन्म होता है तो भारत देश में उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। लेकिन जब बात संपत्ति बंटवारे की आती है तो हर कोई इसमें पैर पीछे करने लग जाता है। 

अक्सर लोगों में पिता की जमीन पर अधिकार (right to father’s land) को लेकर जानकारी का अभाव होता है। देखा गया है कि प्रोपर्टी पर ज्यादातर विवाद जानकारी के अभाव और उन तमाम उलझनों की वजह से भी पैदा होते हैं जिनको लेकर स्पष्टता नहीं होती। अपनी इस स्टोरी में हम पिता की संपत्ति पर अधिकार से जुड़ी बातों को आसान भाषा में समझायेंगे-

भारत में अगर जमीन के सामान्य वर्गीकरण (General classification of land) को देखें तो मुख्यत: किसी भी व्यक्ति के द्वारा दो प्रकार से जमीन अर्जित की जाती है। पहली वह जो व्यक्ति ने खुद से खरीदी है या उपहार,दान या किसी के द्वारा हक त्याग (अपने हिस्से की जमीन को ना लेना) आदि से प्राप्त की है। इस तरह की संपत्ति को स्वयं अर्जित की हुई संपत्ति (self acquired property) कहा जाता है। इसके अलावा दूसरे प्रकार की वह जमीन होती है जो कि पिता ने अपने पूर्वजों से प्राप्त की है। इस प्रकार से अर्जित की गई जमीन को पैतृक संपत्ति की श्रेणी में रखते हैं।

स्वयं अर्जित की गई जमीन पर अधिकार और उत्तराधिकार के नियम 

जहां तक सवाल है पिता की खुद की अर्जित की गई जमीन (property related news) का तो, ऐसे में वह अपनी जमीन को बेचने, दान देने, उसके अंतरण संबंधी किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है।

पिता द्वारा खुद अर्जित की गई जमीन से संबंधित उनके फैसले को कोई भी ना तो प्रभावित कर सकता है और ना ही कोई अन्य फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकता है। ऐसे में अगर इस जमीन पर अधिकार (rights to land) कि कानूनी किताब को देखें तो हम पाते हैं कि पता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन पर किसी भी निर्णय को लेकर सिर्फ उनका ही अधिकार होता है।

अगर वो अपनी स्वअर्जित जमीन की वसीयत (will of self acquired land) तैयार करते हैं और जिस किसी को भी उसका मालिकाना हक देना चाहते हैं तो इस जमीन पर उसी का अधिकार होगा। संबंधित व्यक्ति के बच्चे अगर इस मुद्दे को लेकर न्यायालय का रुख करते हैं तो वसीयत पूरी तरह से वैध होने की स्थिति में यह संभावना है कि इस मामले में कोर्ट (court decision) पिता के पक्ष में ही फैसला सुनाएगा।

लेकिन इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष यह कि अगर पिता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन संबंधी कोई फैसला (property news)लेने से पहले ही उनका देहांत हो जाता है,तब बेटे और बेटियों को इस जमीन पर कानूनी अधिकार मिल जाता है।

हिंदू और मुसलमानों के संपत्ति से जुड़े नियम

जानकारी के लिए आपको बता दे कि भारत में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुसलमानों के अलग-अलग नियम हैं। 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों का पिता की संपत्ति पर बराबर अधिकार (right over father’s property) माना जाता है। वो अलग बात है कि भारतीय सामाजिक परंपराओं के चलते अनगिनत बेटियां पिता की संपत्ति पर अपना दावा (Claim on father’s property) नहीं करतीं लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 उन्हें बेटों के बराबर अधिकार देता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में इस तरह की संपत्ति पर अधिकार (rights to property) में बेटों को ज्यादा महत्व दिया गया है। लेकिन न्यायालयों की प्रगतिशील सोच और बराबरी के अधिकार के चलते उन्हें भी धीरे-धीरे हिंदू बेटियों की तरह ही अधिकार दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। गौर करने वाली एक बात यह है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति की वसीयत (bequest of acquired property) में अगर पिता अपनी बेटियों को हक नहीं देता तो ऐसे में न्यायालय भी बेटी के पक्ष में फैसला नहीं सुनाएगी। लेकिन पैतृक संपत्ति (ancestral property) के मामले में स्थिति अलग है।

पैतृक संपत्ति को लेकर नियम

पिता पैतृक संपत्ति से संबंधित वसीयत नहीं बना सकता है। ऐसे में इस संपत्ति पर बेटे और बेटियों का हक (Rights of sons and daughters on property) होता है। पैतृक संपत्ति को लेकर पिता फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है। पैतृक संपत्ति पर बेटे और बेटी दोनों को बराबर अधिकार प्राप्त हैं। पहले बेटी को इस संपत्ति में बराबर अधिकार (equal rights in property) प्राप्त नहीं थे,लेकिन 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए और बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार पैतृक संपत्ति में प्राप्त हुए।
 

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