छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला, रेप और POCSO मामले में आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- ‘लड़की को सेक्स की आदत थी’..

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला, रेप और POCSO मामले में आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा- ‘लड़की को सेक्स की आदत थी’..Chhattisgarh High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को एक रेप और POCSO एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को बरी कर दिया. जिसने कानूनी और सामाजिक हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह साबित नहीं हुआ कि पीड़िता नाबालिग थी और दोनों के बीच सहमति से यौन संबंध बने थे.

ट्रायल कोर्ट का फैसला

12 जुलाई 2018 को पीड़िता के पिता ने रायपुर पुलिस में शिकायत दर्ज की कि उनकी बेटी 8 जुलाई को अपनी दादी से मिलने का कहकर घर से निकली. लेकिन वहां नहीं पहुंची. तलाश के दौरान पीड़िता की सहेली ने बताया कि उसने लड़की को आरोपी तरुण सेन के साथ जाते देखा था. 18 जुलाई को पुलिस ने दोनों को दुर्ग से बरामद किया. ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए उसकी प्रथम कक्षा की मार्कशीट (जन्मतिथि 10 अप्रैल 2001) को आधार माना और आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n) (बार-बार रेप) और POCSO एक्ट की धारा 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी ठहराया. 27 सितंबर 2019 को उसे 10 साल की सजा सुनाई गई.

हाईकोर्ट का फैसला

आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी. जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट के सबूतों को अपर्याप्त माना. कोर्ट ने कहा ‘मार्कशीट अकेले उम्र साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि इसे तैयार करने वाले व्यक्ति की गवाही नहीं थी.’ पीड़िता ने कोर्ट में स्वीकार किया कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और उनके बीच प्रेम संबंध थे. मेडिकल जांच में भी कोई चोट या जबरदस्ती के निशान नहीं मिले. कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़िता के ‘सेकेंडरी सेक्सुअल ऑर्गन्स पूरी तरह विकसित थे और वह यौन संबंधों की आदी थी.’ हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह प्रेम प्रसंग और सहमति से भागने का मामला था, न कि रेप या POCSO एक्ट का. छह साल जेल में बिता चुके आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया.

कोर्ट की टिप्पणी ‘लड़की को सेक्स की आदत थी’ ने सामाजिक और कानूनी हलकों में आलोचना को जन्म दिया. कई संगठनों ने इसे पीड़िता के चरित्र पर अनुचित टिप्पणी करार दिया. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार यह टिप्पणी मेडिकल जांच पर आधारित थी. जिसमें डॉक्टर ने पीड़िता के शारीरिक विकास और यौन गतिविधियों का उल्लेख किया था. हालांकि इस तरह की भाषा को असंवेदनशील माना गया क्योंकि यह पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचा सकती है.

कानूनी और सामाजिक बहस

यह फैसला POCSO मामलों में सहमति और उम्र के निर्धारण जैसे जटिल मुद्दों को फिर से चर्चा में लाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में कहा था कि सहमति से बने संबंधों में खटास आने पर रेप केस दर्ज होने का चलन बढ़ रहा है. जिससे झूठे मामले सामने आते हैं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला भी उसी दिशा में देखा जा रहा है लेकिन ‘सेक्स की आदत’ जैसी टिप्पणी ने इसे विवादास्पद बना दिया. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी भाषा से बचना चाहिए क्योंकि यह पीड़िताओं को न्याय मांगने से हतोत्साहित कर सकती है.

यह भी पढे़ं- 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *