इलाज, मौत का खाता-बही और बीमा के पैसे का खेल, संभल का खौफनाक बीमा घोटाला, जामताड़ा से भी खतरनाक मृत्यु के सौदे का काला खेल..

इलाज, मौत का खाता-बही और बीमा के पैसे का खेल, संभल का खौफनाक बीमा घोटाला, जामताड़ा से भी खतरनाक मृत्यु के सौदे का काला खेल..Sambhal Insurance Fraud Jamtara Style: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में एक ऐसा घोटाला सामने आया है जिसने जामताड़ा के साइबर ठगों को भी पीछे छोड़ दिया. यह कहानी इतनी झकझोर देने वाली है कि सुनने के बाद भी यकीन करना मुश्किल है. मरने वाले, मर चुके और मार दिए जाने वाले लोगों की जिंदगी और मृत्यु का सौदा कर यह गैंग अरबों रुपये का खेल खेल रहा था. संभल पुलिस ने इस गैंग के 51 सदस्यों को गिरफ्तार किया और 17 एफआईआर दर्ज की हैं लेकिन यह केवल शुरुआत है. यह गैंग एक समानांतर अर्थव्यवस्था (पैरलल इकॉनॉमी) चला रहा था. जिसमें बीमा कंपनियों, बैंक कर्मियों और सरकारी मुलाजिमों की मिलीभगत शामिल थी.

कैसे शुरू हुआ यह खतरनाक खेल?

इस घोटाले का पर्दाफाश जनवरी 2025 की एक कोहरे भरी रात को हुआ. जब पुलिस ने तुक्के में एक कार रोकी. कार से 11.5 लाख रुपये नकद, 19 डेबिट कार्ड और एक मोबाइल बरामद हुआ. जिसमें 1 लाख से ज्यादा गरीब लोगों की तस्वीरें थीं. जांच में पता चला कि यह गैंग गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को चुनता था. उनके नाम पर बीमा पॉलिसी बनवाता था और मृत्यु के बाद सारी रकम हड़प लेता था. कुछ मामलों में तो स्वस्थ युवाओं को निशाना बनाकर उनकी हत्या कर दी जाती थी और इसे सड़क दुर्घटना का रूप दे दिया जाता था.

प्रियंका के पति की मौत एक दर्दनाक कहानी

संभल के जामताड़ा की जांच की शुरुआत प्रियंका के घर से हुई. उनके पति दिनेश शर्मा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी. मृत्यु से पहले कुछ लोग उनके घर आए और इलाज के खर्चे के नाम पर 25 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी बनवाई. दिनेश की मृत्यु के बाद नॉमिनी प्रियंका के नाम खाता खोला गया लेकिन चेकबुक, पैन कार्ड और पासबुक गैंग ने अपने पास रख लिए. बैंक खाते का नंबर बदल दिया गया और 25 लाख रुपये की पूरी रकम गैंग ने हड़प ली. प्रियंका को एक पैसा भी नहीं मिला.

मृतकों का भी बीमा

यह गैंग केवल बीमार लोगों तक सीमित नहीं था. त्रिलोक नामक व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसके नाम पर बीमा पॉलिसी बनाई गई और दोबारा ‘दिल का दौरा’ दिखाकर उसकी मृत्यु का दावा किया गया. सबसे खौफनाक यह था कि गैंग स्वस्थ युवाओं को निशाना बनाता था क्योंकि उनकी पॉलिसी का प्रीमियम कम होता था. इन युवाओं की हत्या कर दुर्घटना का रूप दिया जाता था. एक मामले में एक भाई ने अपने सगे भाई को ई-रिक्शा से धक्का देकर मार डाला और सिर पर चोट दिखाकर बीमा राशि हड़प ली.

इस गैंग की कार्यप्रणाली सुनियोजित थी. आशा कार्यकर्ता और ग्राम प्रधान गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की जानकारी गैंग तक पहुंचाते थे. बैंक कर्मी नॉमिनी के खाते खोलते और दस्तावेज गैंग को सौंप देते. डेथ सर्टिफिकेट बनाने वाले सरकारी कर्मचारी और बीमा कंपनियों के कुछ कर्मचारी भी इस साजिश में शामिल थे. यह गैंग पिछले 8 सालों से देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सक्रिय था और अनुमानित 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का फ्रॉड कर चुका था.

पुलिस की कार्रवाई

संभल पुलिस ने चार महीनों में इस गैंग के 51 सदस्यों को गिरफ्तार किया और कई ट्रैक्टर, दस्तावेज और डेबिट कार्ड बरामद किए. पुलिस का कहना है कि यह खेल इतना बड़ा है कि इसका पूरा दायरा अभी सामने आना बाकी है. अन्य राज्यों में भी इसी तरह के फ्रॉड की जांच शुरू हो गई है. यह गैंग न केवल बीमा कंपनियों को चूना लगा रहा था बल्कि गरीब और असहाय लोगों की जिंदगी से भी खिलवाड़ कर रहा था.

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