Himachali Khabar
हरियाणा के सिरसा में स्थित मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम डेरा जगमालवाली के संत बिरेंद्र सिंह ने कहा है कि संत इस दुनिया में जीवों को जगाने के लिए आते हैं। संत मालिक के घर का रास्ता बताने के लिए आते हैं। यह घर हमारा पक्का ठिकाना नहीं है, हम यहां अस्थायी वीजा पर रह रहे हैं। संत बिरेंद्र सिंह रविवार को डेरा में आयोजित मासिक सत्संग में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।
संत ने कहा कि इस दुनिया में हमारा कोई दुश्मन नहीं है। हमारा असली दुश्मन हमारा मन ही है। इस मन को काबू में कर लें तो सारी दुनिया ही अपनी नजर आती है। अहंकार को ही छोड़ दो, आधी समस्या अपने आप ही हल हो जाएगी। मैं कुछ हूं और मैं किसी से कम नहीं हूं, यह अहंकार ही तो है। बाहर की मान-बढ़ाई का कोई फायदा नहीं है। फायदा है तो केवल सिमरन का है। जैसे पर्यटक बाहर कुछ दिन के लिए घूमने जाते हैं, वहां अपने क्षेत्र का व्यक्ति मिलने पर प्रेम से मिलते हैं और वहां झगड़ा नहीं करते और उस पर्यटन क्षेत्र का आनंद लेते हैं, वैसे ही दुनिया भी पर्यटक स्थल ही है, सबको मिलकर ही रहना है। यहां कोई दुश्मन नहीं और यहां लड़ाई नहीं लड़नी है। ईर्ष्या, निंदा और आलोचना में नहीं पड़ना।
संत ने कहा कि वक्त पूरा होने पर सबको जाना होता है। संतों को भी मानने की बजाय जानना है। जब तक अंदर के गुरु को न जान लें, तब तक मन डोल रहता है। उन्होंने कहा कि संतों के हुक्म में रहना ही सिमरन है। संतों के हुक्म के बाहर काल ही काल है। संतों का काम नाम जपाना है। संत हमारे जन्मों के बंधन को तोड़ने के लिए आते हैं। हमारी श्वास रूपी पूंजी हर रोज कम होती जा रही है। एक-एक दिन कर मौत के नजदीक जा रहे हैं। जिसने राम नाम का व्यापार कर लिया, उसकी इस दुनिया में भी बल्ले-बल्ले है और मालिक की दरगाह में भी बल्ले-बल्ले है। सत्संग सुनने का यह फायदा है कि भजन-सिमरन पर ध्यान रहता है। इस दुनिया में जिस संत ने राम नाम का व्यापार किया, उसको हम दिल से पूजते हैं और जो दुनिया के पुजारी बने, उनको आज कोई नहीं पूछता है। इस दुनिया में बाहर की सुख-शांति नहीं है। अगर दुनिया में बाहर की सुख-शांति होती, तो महात्मा बुद्ध राजमहल को छोड़कर जंगल में जाकर क्यों बैठते? असली सुख-शांति तो अपने आप की खोज करने में है। अंदर जो अमृत का झरना बह रहा है, उस झरने की बूंद पीने में है।
संत ने कहा कि हमें सोचना पड़ेगा कि सुबह उठकर जिस रास्ते की ओर भागकर जा रहे हैं, क्या वह सही रास्ता है। शाम को बेचैन होकर थके-हारे घर के अंदर आते हैं। क्या हम सही काम करके आए हैं? जो व्यापार हम कर रहे हैं, क्या वह सही है? 24 घंटों में हमने भजन-सिमरन नहीं किया, तो हमारा यह दिन व्यर्थ चला गया है। पूरा दिन ही दुनिया के कामों में ही चला गया। हमें दोनों में संतुलन बनाकर ही चलना है। संतुलन बनाकर न रखने के कारण ही हमारे पर इतने दुख-तकलीफ आती हैं। डेरा में अगला सत्संग जुलाई के प्रथम शनिवार व रविवार, 5 और 6 जुलाई को होगा।